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बडी़ ख़बर : दिल्ली से बिहार तक के बीच आ सकता है 8.5 तीव्रता वाला भूकंप


राजीव रंजन कुमार

नई दिल्ली/भारत/पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 25 फरवरी,20 ) । दिल्ली से बिहार के बीच बड़ा भूकंप आ सकता है जहां इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.5 से 8.5 के बीच हो सकती है। आपकों बता दें कि आईआईटी कानपुर ने एक ताजा अध्ययन के बाद यह चेतावनी जारी की है। वहीं आईआईटी कानपुर के सिविल इंजिनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जावेद एन मलिक कहना है कि पिछले 500 सालों में गंगा के मैदानी क्षेत्र में कोई बड़ा जलजला रेकॉर्ड नहीं किया गया है वहीं प्रोफेसर मलिक का कहना है कि रामनगर में चल रही खुदाई में 1505 और 1803 में भूकंप के अवशेष मिल रहे हैं।जहां प्रोफेसर जावेद ने बताया कि शहरी नियोजकों, बिल्डरों और आम लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार के आदेश पर डिजिटल ऐक्टिव फॉल्ट मैप ऐटलस तैयार किया जा रहा है जहां इसमें सक्रिय फॉल्टलाइन की पहचान के अलावा पुराने भूकंपों का रेकॉर्ड भी तैयार हो रहा है वहीं ऐटलस से लोगों को पता चलेगा कि वे भूकंप की फॉल्ट लाइन के कितना करीब हैं और नए निर्माण में बेहद सावधानियां बरती जाए।
वहीं इस ऐटलस को तैयार करने के दौरान टीम ने उत्तराखंड के रामनगर में जमीन में गहरे गड्ढे खोदकर सतहों का अध्ययन शुरू किया जहां जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क से 5-6 किमी की रेंज में हुए इस अध्ययन में 1505 और 1803 में आए भूकंप के प्रमाण मिले हैं वहीं रामनगर जिस फॉल्ट लाइन पर बसा है उसे कालाडुंगी फॉल्टलाइन नाम दिया गया है। 
आगे प्रोफेसर जावेद के अनुसार 1803 का भूकंप छोटा था लेकिन मुगलकाल के दौरान 1505 में आए भूकंप के बारे में कुछ तय नहीं हो सका है की जमीन की परतों की मदद से इसे निकटतम सीमा तक साबित करना बाकी है।और उनका दावा है कि कुछ किताबों में भी इसके प्रमाण मिले हैं जहां सैटलाइट से मिली तस्वीरों के अध्ययन से यह भी पता चला है कि डबका नदी ने रामनगर में 4-5 बार अपना अपना ट्रैक बदला है जहां अगले किसी बड़े भूकंप में यह नदी कोसी में मिल जाएगी।वहीं बरेली की आंवला तहसील के अहिच्छत्र में 12वीं से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच भूकंपों के अवशेष मिले हैं। आगे प्रोफेसर मलिक ने बताया है कि मध्य हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आया तो दिल्ली एनसीआर आगरा कानपुर लखनऊ, वाराणसी और पटना तक का इलाका प्रभावित हो सकता है जहां किसी भी बड़े भूकंप का 300-400 किमी की परिधि में असर दिखना आम बात है और इसकी दूसरी बड़ी वजह है कि भूकंप की कम तीव्रता की तरंगें दूर तक असर कर बिल्डिंगों में कंपन पैदा कर देती हैं।जहां गंगा के मैदानी क्षेत्रों की मुलायम मिट्टी इस कंपन के चलते धसक जाती है।
और आगे उन्होंने बताया कि 1885 से 2015 के बीच देश में सात बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं जहां इनमें तीन भूकंपों की तीव्रता 7.5 से 8.5 के बीच थी। तो वहीं 2001 में भुज में आए भूकंप ने करीब 300 किमी दूर अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर अपनी तबाई मचाई थी। राजीव रंजन कुमार की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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