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कोरोना से तो हम फिर भी जीत जाएंगे लेकिन इन नफरतों से हार गए

अगर कहीं भी कोई चूक रह गई तो उसका खामियाजा सबको भुगतना होगा। जब हमारे प्रधानमंत्री ने 'जनता कर्फ्यू' का आह्वान किया 

उसके बाद जो घटनाएं हुईं, यकीन मानिए उनसे दिल टूट गया। इस बीच,कुछ की तो लॉटरी लग गई।

अनूप नारायण सिंह

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 15 अप्रैल,20 ) ।
इस वक्त जब मैं ये शब्द लिख रहा हूं तो मेरा मन बहुत उदास है। कोरोेना महामारी से तो हम लड़ लेंगे और भरोसा है कि जीत भी जाएंगे लेकिन इस दौरान समाज में जितनी नफरत घुल चुकी होगी, शायद उसकी कभी भरपाई न हो।यकीनन कोरोना एक बहुत बड़ा संकट है जिसे परास्त करने के लिए सबके सहयोग की जरूरत है। अगर कहीं भी कोई चूक रह गई तो उसका खामियाजा सबको भुगतना होगा। जब हमारे प्रधानमंत्री ने 'जनता कर्फ्यू' का आह्वान किया था, तो मेरे दिल में एक उम्मीद जगी थी कि अब हम सब एक होकर इस महामारी को पराजित करेंगे, पर उसके बाद जो घटनाएं हुईं, यकीन मानिए उनसे दिल टूट गया।इस बीच,कुछ की तो लॉटरी लग गई। ट्विटर पर ऐसे शब्द ट्रेंड हो रहे हैं जिनका मैं यहां जिक्र नहीं करना चाहता। फेसबुक पर ऐसी पोस्ट शेयर की जा रही हैं जिन्हें पढ़ने के बाद दिल करता है कि अपना अकाउंट बंद कर दूं।तबलीगी जमात के बारे में दावे (नहीं जानता कि कितने सही हैं, लेकिन एहतियात बरतते तो नुकसान टाला जा सकता था) और इंदौर में चिकित्साकर्मियों से मारपीट के बाद देश के कुछ शहरों में सरकारी कर्मचारियों के साथ अभद्रता की ऐसी घटनाएं हुईं, जो नहीं होनी चाहिए थीं। बाकी कसर कुछेक ने पूरी कर दी, जो मौके की ताक में बैठे थे।मेरा परिचय ऐसे कई मुस्लिम सज्जनों से है जो शिक्षा, चरित्र, बुद्धि, नेकनीयत और देशप्रेम में मुझसे हजार गुना बेहतर हैं। उनमें जज, वकील, लेखक, डॉक्टर, उद्यमी, पुलिसकर्मी, शिक्षक और विभिन्न पेशों से जुड़े लोग हैं। एक बुजुर्ग से तो बहुत आत्मीयता है जो सैनिक रहे हैं, उन्होंने देश के लिए युद्ध लड़े हैं। सच कह रहा हूं लोगों, आज वो मुझसे और मैं उनसे नजरें मिलाकर बात करने लायक नहीं रहे। कोरोना से तो हम फिर भी जीत जाएंगे, लेकिन इन नफरतों से हम हार गए।मैं किसी को दोषी नहीं ठहरना चाहता। मुझे नहीं पता कि कौन कितना दोषी और कितना निर्दोष है। मैं किसी का पक्ष नहीं लेना चाहता। आज जब एक अखबार में मुसलमानों द्वारा हमले की घटना पर आम माफी मांगने का विज्ञापन छपा तो उसके एक-एक शब्द पढ़कर मेरी अंतरात्मा हिल गई। कुछ सिरफिरों की वजह से जब समाज के बुजुर्ग हाथ जोड़कर माफी मांगने को मजबूर हो जाएं, तो उससे बुरा दिन और क्या हो सकता है? किसी को इतना भी शर्मिंदा मत कीजिए। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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