संवाद
होली की असली धूम अगर कहीं देखने को मिलती है, तो वो है मथुरा और वृंदावन। यहां होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और आनंद का अद्भुत संगम होता है।
बरसाना की लट्ठमार होली
बरसाना में होली का नजारा देखने लायक होता है। यहां की लट्ठमार होली दुनिया भर में मशहूर है, जहां महिलाएं लाठियों से पुरुषों को मारती हैं और पुरुष उन्हें ढाल से बचाने की कोशिश करते हैं। यह परंपरा राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हुई है और हजारों श्रद्धालु इसे देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
फूलों की होली (वृंदावन)
बांके बिहारी मंदिर में खेली जाने वाली फूलों की होली बेहद खास होती है। गुलाल के बजाय यहां फूल बरसाए जाते हैं, जिससे पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। जैसे ही पुजारी मंदिर के पट खोलते हैं, श्रद्धालु ‘राधे-राधे’ के जयकारों के साथ भगवान कृष्ण के प्रेम में रंग जाते हैं।
गुलाल कुंड की होली (गोकुल)
गोकुल और नंदगांव में होली खेलने का एक अलग ही अंदाज देखने को मिलता है। खासतौर पर गुलाल कुंड में कलाकार श्रीकृष्ण और गोपियों की लीला को मंचित करते हुए रंगों की वर्षा करते हैं, जिससे वहां मौजूद श्रद्धालु खुद को द्वापर युग में महसूस करने लगते हैं।
ढोल, नगाड़ों और भांग का जश्न
मथुरा-वृंदावन में होली के दौरान मंदिरों और गलियों में ढोल-नगाड़ों की गूंज सुनाई देती है। भक्त भजन-कीर्तन करते हुए भक्ति में लीन हो जाते हैं। वहीं, कान्हा की नगरी में ठंडाई और भांग का भी खास महत्व होता है, जिसे पीकर लोग झूमते नजर आते हैं।
यूं कहें कि मथुरा-वृंदावन की होली सिर्फ रंगों की नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति की भी होली होती है, जिसे देखने देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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