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बिहार दिवस: शांति और क्रांति की धरती, जिसने दुनिया को पहली बार समझाया 'गणतंत्र' का मतलब


संवाद 

22 मार्च का दिन हर साल बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि बिहार की गौरवशाली परंपरा, संस्कृति और इतिहास का उत्सव है। बिहार वह धरती है, जिसने शांति और क्रांति दोनों का संदेश दुनिया को दिया और 'गणतंत्र' का असली अर्थ समझाया।

कैसे हुई बिहार दिवस की शुरुआत?

22 मार्च 1912 को बिहार को बंगाल से अलग कर एक स्वतंत्र प्रांत बनाया गया था। इस ऐतिहासिक दिन को याद रखते हुए 2009 में बिहार सरकार ने इसे आधिकारिक रूप से बिहार दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की।

बिहार: ज्ञान, धर्म और गणतंत्र की भूमि

1. गणतंत्र की जननी – वैशाली, जो आज बिहार का हिस्सा है, दुनिया का पहला गणराज्य (रिपब्लिक) था, जहां जनता की राय से शासन चलता था।


2. बुद्ध और महावीर की धरती – बिहार ही वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ और महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया।


3. नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय – ये दुनिया के पहले विश्वविद्यालयों में गिने जाते हैं, जहां हजारों छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे।


4. 1857 की क्रांति में भूमिका – भारत की आजादी की पहली लड़ाई में वीर कुंवर सिंह जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला।



आधुनिक बिहार: विकास की ओर बढ़ते कदम

आज बिहार शिक्षा, बुनियादी ढांचे, औद्योगिक विकास और कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। सरकार भी इसे आत्मनिर्भर और डिजिटल बिहार बनाने की दिशा में लगातार काम कर रही है।

बिहार दिवस का जश्न

इस दिन पूरे बिहार में रंगारंग कार्यक्रम, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, सेमिनार और प्रदर्शनी आयोजित की जाती हैं। सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में झंडोत्तोलन और विशेष आयोजन किए जाते हैं।

"जय बिहार" – गर्व से कहिए!

बिहार दिवस सिर्फ एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि अपनी मिट्टी से जुड़ने और इसके गौरवशाली इतिहास को याद करने का अवसर है। यह हमें याद दिलाता है कि बिहार ने दुनिया को क्या दिया और हमें इसे और आगे ले जाने की जरूरत है।

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