आपको यह सुनकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि हम किसी भी वस्तु को अपनी आँखों से नहीं, बल्कि अपने दिमाग की मदद से देखते हैं। हमारी आँखें केवल एक माध्यम हैं, जो प्रकाश को ग्रहण करके उसे दिमाग तक पहुँचाती हैं। असली "देखने" की प्रक्रिया हमारे मस्तिष्क में होती है। आइए इस अद्भुत वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझते हैं।
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आँखें केवल लेंस का काम करती हैं
हमारी आँखें एक कैमरे की तरह काम करती हैं। जब कोई वस्तु हमारे सामने होती है, तो उससे टकराने वाली प्रकाश किरणें हमारी आँखों तक पहुँचती हैं। आँखों में मौजूद कॉर्निया (Cornea) और लेंस (Lens) इन किरणों को केंद्रित (Focus) करके रेटिना (Retina) पर एक उल्टी छवि बनाते हैं।
लेकिन यह छवि सिर्फ एक संकेत (Signal) होती है, जिसे देखना तभी संभव होता है जब दिमाग इसे समझे।
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दिमाग ही असली 'देखने' का काम करता है
रेटिना पर बनी छवि को ऑप्टिक नर्व (Optic Nerve) के माध्यम से दिमाग तक भेजा जाता है। फिर दिमाग उस छवि को सही दिशा में पलटकर हमें एक स्पष्ट तस्वीर दिखाता है।
दिमाग इस प्रक्रिया में सिर्फ छवि को पहचानने का काम नहीं करता, बल्कि वह रंग, दूरी, गति, गहराई और वस्तु का अर्थ भी समझता है।
अगर किसी व्यक्ति का दिमाग इस सूचना को सही से प्रोसेस न कर पाए, तो वह देख तो सकता है, लेकिन उसे समझ नहीं पाएगा कि वह क्या देख रहा है।
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अगर दिमाग न हो तो आँखें बेकार हैं!
वैज्ञानिक शोधों से यह साबित हो चुका है कि अगर किसी व्यक्ति का ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाए या दिमाग का वह हिस्सा जो दृष्टि को प्रोसेस करता है, खराब हो जाए, तो वह व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है, भले ही उसकी आँखें पूरी तरह स्वस्थ हों।
ऐसा ही एक दुर्लभ रोग होता है "कॉर्टिकल ब्लाइंडनेस" (Cortical Blindness), जिसमें व्यक्ति की आँखें ठीक होती हैं लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं देख पाता, क्योंकि दिमाग तक सही सिग्नल नहीं पहुँचते।
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हमारा दिमाग हमें धोखा भी दे सकता है!
कभी-कभी हमारा दिमाग जो देखता है, वह वास्तविकता नहीं होती।
ऑप्टिकल इल्यूजन (Optical Illusion) इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।
कुछ चित्र ऐसे होते हैं जो हमारी आँखों को भ्रमित कर देते हैं, लेकिन असल में दिमाग ही हमें गलत तस्वीर दिखाता है।
कई बार जब हम डरते हैं, तो हमें अंधेरे में कोई आकृति या परछाई दिखने लगती है, जबकि असल में वहाँ कुछ नहीं होता।
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निष्कर्ष
हम जो कुछ भी देखते हैं, वह हमारी आँखों से नहीं, बल्कि हमारे दिमाग से देखा जाता है। आँखें सिर्फ प्रकाश ग्रहण करने का काम करती हैं, लेकिन असली "देखने" और "समझने" का काम हमारा मस्तिष्क करता है। इसलिए, यह कहना सही होगा कि हमारी आँखें सिर्फ कैमरा हैं, असली स्क्रीन तो हमारे दिमाग में होती है!
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