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दरभंगा महाराज की बर्बादी की कहानी: एक ऐतिहासिक विरासत का पतन


रोहित कुमार सोनू 

दरभंगा, जिसे मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है, एक समय पर भारत के सबसे समृद्ध और प्रभावशाली रजवाड़ों में गिना जाता था। यहाँ का राजघराना, जिसे आमतौर पर "दरभंगा राज" या "दरभंगा महाराज" के नाम से जाना जाता है, सिर्फ़ संपत्ति के लिए ही नहीं, बल्कि शिक्षा, संगीत, कला और संस्कृति के संरक्षण और विकास के लिए भी विख्यात था। लेकिन आज वही राजघराना इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है।

दरभंगा राज की स्थापना और वैभव

दरभंगा राज की नींव 16वीं सदी में मैथिल ब्राह्मणों के कर्ता परिवार ने रखी थी। राजा लक्ष्मेश्वर सिंह और महाराज कामेश्वर सिंह जैसे शासकों ने इस राज को अत्यंत वैभवशाली बनाया। इस रजवाड़े के अधीन हज़ारों गाँव थे, विशाल भूमि संपत्ति, दर्जनों महल, निजी रेलवे स्टेशन, हाथी-दल, घोड़े और एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र था।

महाराज कामेश्वर सिंह, जो स्वतंत्रता पूर्व के अंतिम दरभंगा महाराज थे, भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, और कई अन्य शैक्षणिक संस्थानों को भारी दान दिया।

पतन की शुरुआत

भारत की स्वतंत्रता के बाद जब जमींदारी उन्मूलन कानून 1950 के दशक में लागू हुआ, तब दरभंगा राज की अधिकांश संपत्ति सरकार के अधीन चली गई। यही वह मोड़ था, जहाँ से दरभंगा राज का पतन आरंभ हुआ।

संपत्ति का नुकसान: हजारों एकड़ ज़मीन, बगान, और परिसंपत्तियाँ धीरे-धीरे जब्त कर ली गईं।

पारिवारिक विवाद: उत्तराधिकार को लेकर राजघराने में भीतरी झगड़े हुए, जिसने संपत्ति को और बाँट दिया।

प्रशासनिक उपेक्षा: दरभंगा राज परिसर, राजकिला, और अन्य ऐतिहासिक इमारतों की देखरेख पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

कानूनी पेचिदगियाँ: संपत्ति विवादों में सालों-साल केस चलते रहे, जिनका निपटारा आज तक नहीं हो सका।


आज का हाल

आज दरभंगा राज का वह वैभव केवल दीवारों पर लटकी पुरानी तस्वीरों में, टूटी-फूटी हवेलियों में, और कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में सिमट कर रह गया है। लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस, जो कभी पूरे भारत में सबसे बड़े निजी महलों में से एक था, अब उपेक्षा का शिकार है।



दरभंगा महाराज की बर्बादी केवल एक राजघराने की समाप्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस विरासत की भी कहानी है जिसे हमने समय के हवाले कर दिया। आज आवश्यकता है कि सरकार और समाज मिलकर इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ मिथिला के स्वर्णिम अतीत को जान सकें।

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