केशव कुमार ठाकुर
मुग़ल काल में राजा सुर सेन द्वारा स्थापित किआ गया राज्य सुरसंड वर्तमान में सीतामढ़ी जिले में प्रखंड मुख्यालय है। देश को चर्चित हस्तियां देने वाला ये शहर सीतामढ़ी में प्राचीन मंदिरों का समागम है। इन्ही प्राचिन्ताओं में सबसे भव्य है रानी मंदिर।
सुरसंड के मुख्य बाज़ार से नेपाल जाने वाली सड़क पर बाएं तरफ अवस्थित इस मंदिर का निर्माण सन् 1700 के आसपास रानी श्रीमती धन्वंतरि कुंवर के द्वारा की गयी थी। तीन गुम्बजों वाला यह मंदिर मिथिला के वास्तुशिल्प का अनोखा उदहारण है। इसके निर्माण में पतली ईंटें , सुर्खी , पत्थर , दाल एवं मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था। मंदिर के पश्चिमी भाग में चार लोगों की मूर्ति बनाई हुई है जिसमें एक की एक हाथ कटी हुई है , दूसरे के दोनों हाथ और पैर दोनों कटे हुए हैं तीसरे की दोनों दोनों पैर कटी हुई है
मंदिर के शीर्ष पर कलश स्थापित है, जो पित्तल से बना है और सोने की परत चढ़ी हुयी है. मंदिर के आगरा भाग में धोलपुर के पत्थर का इस्तेमाल किआ गया है. सोचा जा सकता है की ३०० वर्ष पहले वहां से पत्थर लाकर बनाना कितना मुश्किल रहा होगा.
मंदिर बनने के बाद 90 साल बाद तक इसका प्रयोग किया गया ,पूजा अर्चना होती रही उसके बाद रानी धन्वंतरी कुंवर के परिवार का शासन कमजोड़ होता चला गया और पूजा अर्चना बंद हो गयी। मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया, भगवन की मूर्तियां चोरी हो गयी और आसपास जंगल बन गया। पांच गुम्बदों में से एक गुम्बद भी ढह गया। जंगल होने के वजह से यह नाग देवता का शरण स्थल भी बन गया। आज भी यहाँ नाग देवता का साक्षात दर्शन कुछ ही पल में किआ जा सकता है। आजतक नाग देवता ने किसी के ऊपर कोई हमला नही किआ है और स्थानीय लोगों ने भी कभी किसी नाग देवता को नही छेड़ा है।
मुग़ल काल में राजा सुर सेन द्वारा स्थापित किआ गया राज्य सुरसंड वर्तमान में सीतामढ़ी जिले में प्रखंड मुख्यालय है। देश को चर्चित हस्तियां देने वाला ये शहर सीतामढ़ी में प्राचीन मंदिरों का समागम है। इन्ही प्राचिन्ताओं में सबसे भव्य है रानी मंदिर।
सुरसंड के मुख्य बाज़ार से नेपाल जाने वाली सड़क पर बाएं तरफ अवस्थित इस मंदिर का निर्माण सन् 1700 के आसपास रानी श्रीमती धन्वंतरि कुंवर के द्वारा की गयी थी। तीन गुम्बजों वाला यह मंदिर मिथिला के वास्तुशिल्प का अनोखा उदहारण है। इसके निर्माण में पतली ईंटें , सुर्खी , पत्थर , दाल एवं मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था। मंदिर के पश्चिमी भाग में चार लोगों की मूर्ति बनाई हुई है जिसमें एक की एक हाथ कटी हुई है , दूसरे के दोनों हाथ और पैर दोनों कटे हुए हैं तीसरे की दोनों दोनों पैर कटी हुई है
मंदिर के शीर्ष पर कलश स्थापित है, जो पित्तल से बना है और सोने की परत चढ़ी हुयी है. मंदिर के आगरा भाग में धोलपुर के पत्थर का इस्तेमाल किआ गया है. सोचा जा सकता है की ३०० वर्ष पहले वहां से पत्थर लाकर बनाना कितना मुश्किल रहा होगा.
मंदिर बनने के बाद 90 साल बाद तक इसका प्रयोग किया गया ,पूजा अर्चना होती रही उसके बाद रानी धन्वंतरी कुंवर के परिवार का शासन कमजोड़ होता चला गया और पूजा अर्चना बंद हो गयी। मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया, भगवन की मूर्तियां चोरी हो गयी और आसपास जंगल बन गया। पांच गुम्बदों में से एक गुम्बद भी ढह गया। जंगल होने के वजह से यह नाग देवता का शरण स्थल भी बन गया। आज भी यहाँ नाग देवता का साक्षात दर्शन कुछ ही पल में किआ जा सकता है। आजतक नाग देवता ने किसी के ऊपर कोई हमला नही किआ है और स्थानीय लोगों ने भी कभी किसी नाग देवता को नही छेड़ा है।