राजेश कुमार वर्मा
समस्तीपुर नई दिल्ली से प्रकाशित हिन्दी राष्ट्रीय पत्रिका "विकलांगता समीक्षा" के सम्पादक व प्रगतिशील लेखक संघ के जिला उपाध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार डॉ परमानन्द लाभ ने कहा है कि हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान के नाम पर सत्ता में आने वाली नरेन्द्र मोदी की राजग सरकार भी भाषा के सवाल पर कन्नी काट रही है। भारत के सिवा संसार में और कोई देश नहीं है, जहाँ अपनी भाषा रहते हुए विदेशी भाषा राज-काज, न्यायालय व शिक्षा में प्रतिष्ठित होती हो। जन्मदात्री माँ देवकी की तरह हमारी मातृभाषा सत्तालोलुप कंस के कारागार में बन्द है, लालन-पालन करने वाली माँ यशोदा हिन्दी हाकिम - हुक्मरानो जैसे स्वार्थी तत्वों की उपेक्षा की शिकार बनी हुई है और दानवी -मायावी अंग्रेजी पूषणा बन कर मालपुए उड़ा रही है।यह कहाँ का न्याय है? गाँधीजी शिक्षा और शासन के क्षेत्र में एक ही दिन में भाषा परिवर्तन कर देने के पक्ष में थे।उन्होंने शर्त यह रखा था कि सरकारी दफ्तरों और अदालतो में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग लागू कर दिया जाय। अंग्रेजियत के पैरोकार नेहरुजी ने ऐसा नहीं होने दिया। आज जब सब कुछ बदल चुका है, तो यथार्थ रुप में गाँधी के प्रशंसक प्रधानमंत्री मोदीजी से भारत की अपेक्षा है कि हिन्दी को उसका वाजिब हक मिले। डॉ लाभ ने संसद से, महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, शिक्षामंत्री से मांग की है कि हिन्दी को हिन्दी दिवस के अवसर पर राष्ट्रभाषा घोषित किया जाय, साथ ही मातृभाषा के माध्यम से प्रारंभिक व मध्य विद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था लागू हो। उन्होंने हिन्दी को भारती नामाकरण करना तर्कयुक्त बताया है।
समस्तीपुर नई दिल्ली से प्रकाशित हिन्दी राष्ट्रीय पत्रिका "विकलांगता समीक्षा" के सम्पादक व प्रगतिशील लेखक संघ के जिला उपाध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार डॉ परमानन्द लाभ ने कहा है कि हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान के नाम पर सत्ता में आने वाली नरेन्द्र मोदी की राजग सरकार भी भाषा के सवाल पर कन्नी काट रही है। भारत के सिवा संसार में और कोई देश नहीं है, जहाँ अपनी भाषा रहते हुए विदेशी भाषा राज-काज, न्यायालय व शिक्षा में प्रतिष्ठित होती हो। जन्मदात्री माँ देवकी की तरह हमारी मातृभाषा सत्तालोलुप कंस के कारागार में बन्द है, लालन-पालन करने वाली माँ यशोदा हिन्दी हाकिम - हुक्मरानो जैसे स्वार्थी तत्वों की उपेक्षा की शिकार बनी हुई है और दानवी -मायावी अंग्रेजी पूषणा बन कर मालपुए उड़ा रही है।यह कहाँ का न्याय है? गाँधीजी शिक्षा और शासन के क्षेत्र में एक ही दिन में भाषा परिवर्तन कर देने के पक्ष में थे।उन्होंने शर्त यह रखा था कि सरकारी दफ्तरों और अदालतो में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग लागू कर दिया जाय। अंग्रेजियत के पैरोकार नेहरुजी ने ऐसा नहीं होने दिया। आज जब सब कुछ बदल चुका है, तो यथार्थ रुप में गाँधी के प्रशंसक प्रधानमंत्री मोदीजी से भारत की अपेक्षा है कि हिन्दी को उसका वाजिब हक मिले। डॉ लाभ ने संसद से, महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, शिक्षामंत्री से मांग की है कि हिन्दी को हिन्दी दिवस के अवसर पर राष्ट्रभाषा घोषित किया जाय, साथ ही मातृभाषा के माध्यम से प्रारंभिक व मध्य विद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था लागू हो। उन्होंने हिन्दी को भारती नामाकरण करना तर्कयुक्त बताया है।