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आधुनिक शिक्षा वह हथियार है जिसके द्वारा एक दिन हमारा सर्वनाश होगा...


प्रायः यह माना जाता है कि शिक्षा सभी समस्याओं का समाधान है ! किन्तु व्यवहारिक जगत में ऐसा नहीं है ! शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य जो व्यावहारिक जगत में नजर आता है, वह यह है कि व्यक्ति को स्वतंत्र चिंतन की जगह नियंत्रित चिंतन की ओर ले जाना ! अर्थात जब व्यक्ति स्वशिक्षित होता है तो व्यक्ति अपने-अपने तरीके से स्वाभाविक रूप से अपने संस्कार, परिवेश और समझ के अनुरूप चिंतन करता है ! यह चिंतन उत्कृष्ट चिंतन है ! इससे समाज और व्यक्ति दोनों को अत्यधिक लाभ होता है !

किन्तु जब व्यक्ति एक निश्चित पाठ्यक्रम के अंतर्गत शिक्षित होता है, तब उसके संस्कार, परिवेश और समाज का प्रभाव उसके जीवन में कम हो जाता है और व्यक्ति स्वाभाविक अवस्था में पनपने की जगह अपने शिक्षा पाठ्यक्रम के अनुरूप अपना विकास करने लगता है ! यह मन और मस्तिष्क की अस्वाभाविक अवस्था है ! इसी का परिणाम है कि अब समाज में गोस्वामी तुलसीदास, रहीम दास, कबीर दास, महात्मा बुद्ध, महावीर जैन, आदि जैसे लोग नहीं हो रहे हैं ! इसी तरह मौसम विज्ञानी घाघ, आयुर्वेदाचार्य चरक, गणितज्ञ आर्यभट्ट, संगीतज्ञ तानसेन, राजनीतीज्ञ चाणक्य या वायुयान निर्माता महर्षि भरद्वाज जैसे लोगों का विकास होना ही समाप्त हो गया है !

यह स्थिति समाज को नियंत्रित करने वालों के लिये तो उचित है, किंतु समाज के लिए घातक है ! समाज को नियंत्रित करने वाला वर्ग हमेशा यह चाहता है, कि समाज उसके द्वारा निर्देशित हो और उसके अनुरूप काम करे ! इससे समाज का लाभ होगा या न हो पर समाज को नियंत्रित करने वाले वर्ग लाभ अवश्य होना चाहिये ! समाज को नियंत्रित करने वाला वर्ग सदैव अपने निजी लाभ के लिये समाज से कार्य करवाना चाहता है या कहिये कि वह सदैव जन सामान्य को अपने लाभ के लिये प्रयोग करने की इच्छा रखता है !

इसी तरह जब एक देश जो दूसरे देश को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है, तो वह दूसरे देश के नागरिकों के शिक्षा के लिए अरबो-अरब रुपए खर्च करता है ! जिससे दूसरे देश के नागरिक नियंत्रित करने वाले देश के अनुरूप ही अपना जीवन यापन करें ! इसके लिये नियंत्रक देश तरह तरह के सीमिनर, क्लासेस या यात्रा शिक्षा आयोजित करते हैं ! जिससे कम संपन्न दूसरे देश के नागरिक संपन्न देश के अनुरूप जीवन यापन करें ! उन्हीं के अनुसार सोचें और उनका बाजार विकसित हो ! विश्व सुंदरी प्रतियोगिता भी इसी योजना का अंश है !

यह एक गुप्त युद्ध है ! इसमें एक देश बौद्धिक चिंतन को नियंत्रित करके शत्रु देश को नियंत्रित कर लेता है और प्रत्येक व्यक्ति का एक निश्चित गुप्त कोड बना दिया जाता है ! जिसे आप अपना आधार कार्ड कह सकते हैं और उस गुप्त कोड के द्वारा नियंत्रित करने वाला देश दूसरे देश के प्रत्येक नागरिक के ऊपर नजर रखता है और जब कोई भी नागरिक सामान्य नियंत्रण के बाहर जाता है, तो पहले उसे उस देश के कानूनी व्यवस्था से डराया धमकाया जाता है ! उसे यातना व कारावास दिया जाता है ! यदि वह मान जाता है तो ठीक है और यदि नहीं मानता है, तो उस मेधावी व्यक्ति की ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिये नियंत्रित करने वाला देश उस व्यक्ति को अपने ही देश के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करने के नाम पर तरह-तरह की मदद और प्रलोभन देता है ! यदि महत्वाकांक्षी व्यक्ति नियंत्रित करने वाले देश के मदद और प्रलोभन में फंस जाता है तो एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचने के बाद नियंत्रित करने वाला देश उस व्यक्ति के माध्यम से उस देश का शोषण आरंभ कर देता है !

और यदि आंदोलन करने वाला व्यक्ति राष्ट्रभक्त होता है और नियंत्रित करने वाले देश का षड्यंत्र समझ लेता है और वह व्यक्ति उस नियंत्रक देश के झांसे में नहीं आता है, तो नियंत्रित करने वाला देश उस स्वतन्त्र समझ वाले व्यक्ति की मृत्यु करवा देता है ! जैसे कि लाल बहादुर शास्त्री, दीनदयाल उपाध्याय, भगत सिंह, राजीव दीक्षित आदि आदि ! या वह व्यक्ति गुमनामी में खो जाता है जैसे सुभाषचंद्र बोस आदि !!

अतः मेरे कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि व्यक्ति को शिक्षा नहीं लेना चाहिये, लेकिन शिक्षा का प्रभाव इतना विकृत नहीं होना चाहिये कि व्यक्ति का अपना निजी व्यक्तित्व ही समाप्त हो जाये ! वास्तव में शिक्षा का मूल उद्देश्य है व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करना ! लेकिन आज जो शिक्षा दी जा रही है, वह व्यक्ति को अक्षर ज्ञान तो करवा रही है लेकिन शिक्षा के पाठ्यक्रम इस तरह से निर्मित हैं कि यह व्यक्ति को मानसिक गुलाम भी बना रही है ! यह शिक्षा हमारे समाज के लिए घातक है और इस तरह आने वाले युग में हमारी आने वाली पीढ़ियां पाठ्यक्रम निर्धारण करने वालों की मानसिक गुलाम होंगी !


अगर यही शिक्षा व्यवस्था चलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे आने वाली पीढ़ियों में आत्म चिंतन करने का कोई भी स्तर नहीं बचेगा ! वह सदैव अपने को विकसित देशों के मुकाबले दीन, हीन, निर्बल, असहाय और अविकसित महसूस करती रहेंगी !

इसलिए अगर अपने आने वाली पीढ़ीयों को आत्मग्लानि से बचा कर रखना है, तो हमारा यह कर्तव्य है कि हम बच्चों को पाठयक्रमीय शिक्षा के अलावा अन्य परंपरागत संस्कारों की भी शिक्षा देकर विकसित करें ! क्योंकि यदि बच्चे में परंपरागत संस्कार नहीं होंगे और व्यक्ति अपने राष्ट्र धर्म के प्रति संवेदनशील नहीं होगा तो आज नहीं कल इन शिक्षा देने वाले षड्यंत्रकारियों के प्रभाव में निश्चित रूप से आ जायेगा और इन षड्यंत्रकारियों का स्थाई गुलाम बनने के अलावा और कुछ नहीं बन सकेगा !

इसलिये हम सभी सनातन धर्मियों का यह कर्तव्य है कि वह आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपने आने वाली पीढ़ियों को परंपरागत शिक्षा भी अवश्य दें ! पहले परंपरागत शिक्षा देने का दायित्व घर के बुजुर्गों का होता था ! दादी, नाना, नानी, बुआ, चाची आदि इस कर्तव्य का निर्वहन करते थे किंतु आज के आधुनिक परिवेश में यह संबंध अब इतने प्रभावशाली नहीं रहे हैं ! इसलिए यह दायित्व भी अब माता-पिता का ही हो गया है कि वह बच्चों को अपने राष्ट्र, अपनी परंपरा, अपने धर्म के प्रति संवेदनशील और संस्कारवान बनाये।
  

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