राजेश कुमार वर्मा
समस्तीपुर(मीडिया दर्शन कार्यालय)।समस्तीपुर शहर के युवा नौजवान समाजवादी विचारधारा के संजय कुमार ने आज मीडिया दर्शन/मिथिला हिन्दी न्यूज को एक शिष्टाचार भेंट में कहां की आज हमलोग कितने निष्ठुर हो गए हैं या कहें तो हम सभी एक निष्ठुर समाज का हिस्सा बनकर रह गए हैं।* *मालूम हो की कल ही दिनांक 21 मई 2019 की देर शाम 08.00 बजे के आसपास जिला मुख्यालय से मात्र 03-04 किलोमीटर के फासले पर एक छात्रा, जो अपने पिता के साथ बाईक से घर जा रही थी, हथियारबंद अपराधियों ने उसका अपहरण कर लिया और आज 22 मई को हमलोग सारे दिन इस चर्चा में मशगूल रहें की कल 23 मई को चुनाव परिणाम है क्या होगा?*
*कल की घटना पर अगर गौर करें तो यह उस दौर की पूर्णवापसी का संकेत है, जिस दौर में अपहरण, बिहार में एक उद्योग का रूप अख़्तियार कर चुकी थी।*
*समस्तीपुर जिले में बढ़ रही आपराधिक घटनाएँ भी उसी दौर का हिस्सा लगने लगी है, जब कहा जाने लगा था की समस्तीपुर अपराध में पड़ोसी जिले को पीछे छोड़ प्रथम स्थान प्राप्त कर चुका है। जरा सोचिए, उस घर की स्थिति क्या होगी, जिसकी बेटी का अपहरण कर लिया गया, यही नहीं जब ग्रामवासी जिले के वरीय अधिकारियों के यहाँ विरोध दर्ज कराने पहुंचे तो उन पर लाठीचार्ज तक किया गया। लेकिन हमें क्या, हमें तो इस बात की चिंता सताये जा रही है की कल मोदी लहर फिर से अपना परचम फहराने में कामयाब होंगे या राहुल कोई तिलिस्मी करामात कर अपनी पार्टी की खोई चमक वापस लाने में सफल होंगे। रामचन्द्र पासवान और नित्यानन्द राय अपनी सीट पर दुबारा काबिज रह पाएंगे या अशोक राम और उपेन्द्र कुशवाहा हमारे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे।*
*बहुत आशा जगी थी, जब जिले में “लेडी सिंघम” के तौर पल वर्तमान पुलिस अधीक्षक का आगमन हुआ था। तब लगा था की अब जिले की कमान सुरक्षित हाथों में आ गयी है। अब हमारे घर की लड़कियां उन्मुक्त वातावरण में सांसे लेंगी। सरकार ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का जो नारा दिया था, लगा था की अब वो नारा सौ फीसदी सफल हो ही जाएगा। लेकिन जिले में बेतहासा हो रही हत्या और लूट के बाद अब ये अपहरण वाले मामले ने ये जतला दिया की वो खुशी का जो एहसास हमलोग अपने जेहन में पाल बैठे थे, वो क्षणभंगुर था। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, जिले के आलाकमान चाहे कोई भी रहे, हमलोग उसी दमघोंटू वातावरण में सांस लेने को मजबूर होते रहेंगे, जहां केवल अपराधियों की चलती हो। लेकिन जिलेवासियों, अब भी अगर हमलोग सचेत नहीं हुए तो लिख कर रख लीजिये, कल हमारे और आपके बाल-बच्चो की ही बारी है। आवाज उठाईये, ऐसे पंगु हो चुके सिस्टम के खिलाफ। इस पंगु सिस्टम का हिस्सा मुख्य रूप से कार्यपालिका और विधायिका ही हैं और कार्यपालिका की कमान कहीं-न-कहीं विधायिका के हाथों में ही होती है। बहिष्कार करिए ऐसे जनप्रतिनिधियों का (चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल से हों) जो हमारी और आपकी समस्याओं के लिए कभी सड़क पर नहीं उतरती है, कभी कार्यपालिका से प्रश्न नही पुछती है की हमारी व्यवस्था इतनी चौपट कैसे हो गयी? निकलिए अपने घरों से बाहर, अपने लिए और अपने बाल-बच्चो के लिए वरना इंतजार करिए अपनी बारी का।