राजेश कुमार वर्मा
समस्तीपुरशहर के निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के अभिभावक इन विधालयों की चमक दमक देखकर प्रभावित तो होते है लेकिन विधालय की ओर से वसूली की जाने वाली मोटी से परेशान रहते हैं। हजारों से ऊपर खर्च करने के बाद भी बच्चे विधालय की पढ़ाई के बाद भी ट्यूशन के लिए विवश हैं। नामांकन फार्म की फीस से लेकर परीक्षा फल की घोषणा होने तक अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ पड़ता रहता है। निजी विद्यालयों की प्रकाशन की पुस्तकें जो काफी महंगी होती है। इन विधालयों में पढ़ाई जाती है। यही हाल विधालय पोशाक का है। ज्ञात हो कि इन सब के बदले एक फिक्स रकम के रूप में मिल जाती है। इस प्रकार विधालय का यह कारोबार सालों चलता रहता है। जिले के अधिकतर विधालय में पढ़ने वाले बच्चे को एन0सी0ई0आर0टी0 की पुस्तके नहीं पढ़ाई जाती है। इस के अतिरिक्त विधालय प्रशासन विशेष प्रकाशक की पुस्तक खरीद ने को विवश करते हैं। जितने विधालय है इतने प्रकाशक भी मैदान में हैं। इस कारण अभिभावक वित्तीय बोझ उठाने को विवश हैं। बच्चों का बोझ कम करने के लिए सी0बी0एस0ई0 ने एक कानून जारी किया था जिसमें आयु और वर्गवार बैग निधारित किया गया था। इन तमाम प्रतिबंधों के बाद निजी विधालय के मालिक विशेष प्रकाशक की पुस्तकें अभिभावकों को लेने को विवश करते हैं। आश्चर्य तो इस बात की है कि अक्सर निजी विधालय वाले ही खूद ही अपने विधालय से ही खरीदने को कहा जाता है। पुस्तक तो पुस्तक निजी विधालय वाले स्कूल ड्रेस भी अपने विधालय से खरीदवाते हैं।
समस्तीपुरशहर के निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के अभिभावक इन विधालयों की चमक दमक देखकर प्रभावित तो होते है लेकिन विधालय की ओर से वसूली की जाने वाली मोटी से परेशान रहते हैं। हजारों से ऊपर खर्च करने के बाद भी बच्चे विधालय की पढ़ाई के बाद भी ट्यूशन के लिए विवश हैं। नामांकन फार्म की फीस से लेकर परीक्षा फल की घोषणा होने तक अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ पड़ता रहता है। निजी विद्यालयों की प्रकाशन की पुस्तकें जो काफी महंगी होती है। इन विधालयों में पढ़ाई जाती है। यही हाल विधालय पोशाक का है। ज्ञात हो कि इन सब के बदले एक फिक्स रकम के रूप में मिल जाती है। इस प्रकार विधालय का यह कारोबार सालों चलता रहता है। जिले के अधिकतर विधालय में पढ़ने वाले बच्चे को एन0सी0ई0आर0टी0 की पुस्तके नहीं पढ़ाई जाती है। इस के अतिरिक्त विधालय प्रशासन विशेष प्रकाशक की पुस्तक खरीद ने को विवश करते हैं। जितने विधालय है इतने प्रकाशक भी मैदान में हैं। इस कारण अभिभावक वित्तीय बोझ उठाने को विवश हैं। बच्चों का बोझ कम करने के लिए सी0बी0एस0ई0 ने एक कानून जारी किया था जिसमें आयु और वर्गवार बैग निधारित किया गया था। इन तमाम प्रतिबंधों के बाद निजी विधालय के मालिक विशेष प्रकाशक की पुस्तकें अभिभावकों को लेने को विवश करते हैं। आश्चर्य तो इस बात की है कि अक्सर निजी विधालय वाले ही खूद ही अपने विधालय से ही खरीदने को कहा जाता है। पुस्तक तो पुस्तक निजी विधालय वाले स्कूल ड्रेस भी अपने विधालय से खरीदवाते हैं।