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रूप का बाजार कोई क्यूँ सजाए, जले दिल मे आग कोई क्यूँ लगाए - सुबोध



राजेश कुमार वर्मा
"रूप का बाजार कोई क्यूँ सजाए, जले दिल मे आग कोई क्यूँ लगाए" । उक्त कविताओं के माध्यम से सेवानिवृत रेल राजभाषा अधिकारी सह कवि द्वारिका राय सुबोध ने प्यार मे धोखा खाये प्रेमी की व्यथा को ज्योंही अपने लफ्जों मे पिरोकर सुनाना प्रारंभ किया त्योही सारी महफिल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा । मौका था राम दुलारी साहित्यिक मंडल के तत्वाधान मे अंतर्राष्टीय मातृ दिवस के अवसर पर आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी, कवि सम्मेलन एवं वृक्षारोपण समारोह का । श्री सुबोध के संयोजकत्व, रामचन्द्र चौधरी की अध्यक्षता एवं इंजीनियर अवधेश कुमार सिंह के संचालन मे आयोजित उक्त समारोह की शुरुआत बाल कवि जयंती पुष्पम के सरस्वती वंदना से की गई । तत्पश्चात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कवि दिनेश प्रसाद ने मातृ दिवस की महता पर प्रकाश डालते हुए अपने शायराना अंदाज मे कहा कि - माँ के दिल जैसा, दुनिया मे कोई दिल नही है । वही विशिष्ट अतिथि राधारमण चतुर्वेदी ने कहा कि माँ की महता का जितना भी वर्णन करे बहुत कम ही होगा । उन्होने कहा कि माँ के चरणों मे ही स्वर्ग है । उसके बाद समारोह मे उपस्थित कवि शरदेन्दु शरद ने अपनी कविता - माँ तुम भूखे की रोटी, औऱ प्यासे की पानी हो । माँ तुम महान दाता, औऱ दानी हो ॥ माँ तुम साज हो, आवाज हो । माँ तुम जिंदाबाद हो पर जमकर तालियां बटोरी । इसके अलावे विमलेंदु विमल, ब्रह्मदेव राय एवं देवेश जग्गनिवास आदि ने भी अपनी अपनी कविता से समारोह मे चार चाँद लगा दिया । समारोह की समाप्ति पूर्व पर्यावरण संरक्षण - एक अभियान के संयोजक सह पर्यावरणविद वशिष्ठ राय वशिष्ठ के नेतृत्व मे वृक्षारोपण भी किया गया । मौके पर दर्जनों लोग उपस्थित थे ।

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