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शिक्षा का अधिकार कानून व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की सरकारी मुहिम का उड़ रहा माखौल

राजेश कुमार वर्मा

समस्तीपुर जिस देश मे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये शिक्षकों को शिक्षादान के अलावे अन्य काम भी करना पड़े।उस देश के अधिकांश जनता को शिक्षा का अधिकार 2009 कानून प्रदान कर सरकार सिर्फ उन्हें ठग रही हैं।शिक्षा के अधिकार कानून के नाम पर सरकार पहले डिग्री दिखाओ नौकरी पाओ के तर्ज पर शिक्षकों की बहाली पंचायत प्रतिनिधियो से करवाती हैं तदुपरान्त सरकार स्वयं उसे जनता के सामने अयोग्य व अक्षम साबित कर सरकारी विद्यालयों के प्रति अविश्वास पैदा कर रही हैं। जिससे कि सरकारे उन सरकारी विद्यालयो को बन्द कर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के नाम पर बड़े बड़े शिक्षा की दुकाने खोल सके। जिसमे उच्च व उच्च मध्यम वर्ग के बच्चे पढ़ सके।सरकारे गरीब - गुरबों को संविधान प्रदत्त समानता का अधिकार का सब्जबाग दिखा उन्हें शिक्षा से वंचित करना चाहती हैं।दूसरी तरफ शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन न देकर संविधान प्रदत्त बंधुआ मजदूर उन्मूलन एक्ट,न्यूनतम मजदूरी एक्ट,लेवर एक्ट आदि का उलंघन कर रही हैं।जिससे बड़े - बड़े उद्योगपति अपने - अपने फैक्ट्रीयो में मजदूरों को मनमाने मजदूरी व शर्तों पर काम करवाएंगे।अगर कोई मजदूर संगठन इसका विरोध करेगा तो शिक्षकों का समान काम समान वेतन का यह मुकदमा उदाहरण के रूप पेश किया जाएगा।। देश की अधिकांश जनता सरकार की इस कुत्सित चाल को अभी समझ नही रही हैं और जबतक समझेगी तब तक कही बहुत देर न हो जाये..।??

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