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भ्रष्टाचार व घूसखोरी मानसिक रोग की माया :- डॉ॰ मनोज कुमार

राजेश कुमार वर्मा
डॉ॰ मनोज कुमार


पटना/समस्तीपुर मजदूर अपने सशरीर श्रम से इमारते खङी करता हैं, सङक बनाते समय अपनी पसीने की बूंदें से उसे न्रम बनाता हैं ताकि पढे- लिखे लोग उस पर सरपट अपनी वाहन को गति दे सके। वह हर पल समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाता हैं ।रिश्ते खून की अनदेखी कर तो कभी खेतों में काम कर स्वादिष्ट सब्जी - फल उगाता हैं और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग उसे अपना निवाला बनाते हैं  ताकि ज्यादा दिन जिया  जा सके ।यही मजदूर जब कोई काम कराने किसी दफ्तर में अपने घर नल, शौचालय या कोई बुनियादी सुविधाओं के लिए अपनी बात रखना चाहता हैं तब हम पढे-लिखे लोग उसे दुत्कार देते है और भगा देते हैं। कभी उस गरीब को मिलने वाले मुआवजे की रकम हथियाने की कोशिश करते हैं तो कभी किसी काम के एवज में रिश्वत की पेशकश।

कौन होते हैं रिश्वत मांगने वाले


यह बाबू या साहब कम  पढे-लिखे नही होते।प्रतियोगिता में सफलता के पहले इनके कुछ सपने रहे होते हैं ।सुबह से शाम तक इनके यह सपने उन्हें उस समय सोने नही दिया करते थे।वो दिन-रात अध्ययन और सिर्फ तैयारी के लिए अपनी  जान की  बाजी तक लगा देते थे।उस समय लाखो लोगो के बीच खुद को उम्दा साबित करने की होङ सी इनमें रहा करती थी ।अब यह अधिकारी बन गये हैं ।यह कोई भी काम बगैर भ्रष्टाचार के नही करते ।इनका जमीर आम लोगो के लिए मर चुका हैं वह पहले देश व समाज के लोगों के लिए कुछ सोचते थे।अब उनकी सोच निजी व स्वार्थी हो चुकी है। अब वह मजदूरों के हित के लिए नही वरन उनके हिस्से के भोजन भी डकार मारना चाह रहें।
तभी सिमरन को उसके नाना ने पानी मार जगा दिया। दरअसल वह अपने डेली वेज पर काम करने वाले अपने बाबूजी के बकाये वेतन भुगतान के लिए सरकारी दफ्तर के चक्कर काट रही थी।उसके बाबूजी दैनिक मजदूरी पर सरकारी विभाग में मरम्मत का काम करते थे।अभी उनको टीबी रोग हो गया हैं और सरकारी स्कूल मे पढी सिमरन उनके हक के लिए भाग-दौङ कर रही।

क्या होता हैं घूसखोरी

दरअसल लालच व घुसखोरी सिर्फ पढे-लिखे लोगो में ही नही होता बल्कि कम पढे-लिखे लोगों में भी यह समस्या आम हो जाती है।

क्या कारण हैं इसका


इस तरह की मानसिकता के लिए बचपनावस्था से अब तक हुए पोषित व्यक्तित्व का अकुशल कारक ही मुख्य जिम्मेवार होता है। इस समस्या से पीड़ित इंसान स्वार्थ सिद्धि के फिराक मे होता हैं ।वह लालच व भ्रष्टाचार का आसक्त बन जाता हैं और लोगो की भीङ मे शामिल हो अपनी महत्वाकांक्षा को पुरा करता रहता है। हालांकि समाज में इस तरह जब एक व्यक्ति किसी दफ्तर मे ऐसा करता हैं तब उसके साथी कार्यालय कर्मी भी उसको आदर्श के रूप में देखने लगते है। नतीजतन घूस लेने की हिमाकत बढ जाती हैं ।ऊपर से नीचे तक कर्मचारी इस खेल को खेलते हैं और आम लोग व मजदूर इस दोहन में पीसते हैं ।भ्रष्टाचार मे लिप्त लोग नित्य नये नये बंगले व लक्जरी गाडियां लेते हैं और समाज का निचला तबका,पिछङा लोग इसे चमत्कार व सिस्टम के प्रति नकारात्मक सोच रखकर सामाजिक बुराइयो को जन्म देने लगते है। मसलन आप भी देख सकते हैं की कुछ लोग उचित चरित्र व मेहनत से उच्च शिखर तक पहुँचे हैं उनको सही से काम करने मे कितना दिक्कत हो रहा होता हैं ।जमीनी हकीकत में कोई अगर कोई कुछ करना चाह रहा तब उसे काफी परेशानियों का सामना करना पङता है।

व्यक्तित्व के अकुशल कारक विलेन


सिर्फ व्यक्तित्व के अकुशल कारक तुरंत लालच से समन्वय स्थापित कर लेता हैं जबकि एक मजदूर के व्यक्तित्व का कुशल कारक सादगी,परिश्रम व संतोषजनक जीवनशैली से आसक्ति स्थापित कर लेता हैं जो शहर , महानगर , कल- कारखाने अनगिनत निर्माण करा देता हैं बगैर उफ करें।

संभव हैं समाधान


लालच एक प्रकार का असंतुष्ट व असंतुलित व्यवहार हैं जिस व्यक्ति को यह बीमारी अपनी चपेट में लेता हैं वह जीवन की वास्तविक सुखों से मरहूम होता है। जरूरत हैं किशोरावस्था का विकास के समय ही इगो का संतुलित विकास करवाया जाये।समाजिक चेतना भी दवा का काम करती है। संतुष्ट रहें व यूनिवर्स से जुङे।
(लेखक डॉ॰ मनोज कुमार बिहार के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हैं। इनका संपर्क नं-8298929114,9835498113 है।

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