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अचेतन की झंझावत ने दिये विरोध के हौसले :- डॉ० मनोज कुमार

 राजेश कुमार वर्मा 
 डॉ० मनोज कुमार
पटना ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । पटना के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक चिकित्सक डॉ० मनोज कुमार ने कहा है की हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है। संविधान भी महिला-पुरूष की समानता की वकालत करता है। लेकिन हर मामले में महिलाओं को वो अधिकार नही मिलें हैं जिनकी दरकार बदलते दौर में देखा जा रहा।
सदियों से महिलाओं को एक वस्तु समझने वाली पुरूषवादी सोच ने अबतक महिलाओं की एक कमजोर छवि प्रस्तुत की।हजारो सालों से चले आ रहे प्रथा, रिति-रिवाजों व संस्कृतियों के वहन का दायित्व इनके कंधे पर दे दिया गया था।
बच्चों को पालने, पति के नखरे उठाने, शादी के बाद मिली नयी जिम्मेवारीयों का मामला हो या घर चलाने की बात हो , नौकरी मे मिले जिम्मेदारी का अहसास व नैतिक मूल्यों का निर्वाह बदलते समय में इनके व्यक्तित्व को निखारने का काम कर रहा।


बदल रही महिलाओं की मानसिकता 

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दरअसल सैकड़ों सालों से महिलाओं के अचेतन में यह बात डाली गयी की उनकी निर्बलता व असहायता ही उनकी पहचान है। वो उस काम को कदापि नही कर सकती जिन कामों पर पुरूषों का अधिपत्य रहा है। इनके अचेतन में यह हमेशा कशमकश रहता रहा हैं की जिस समाज में महिलाओं की शिक्षा व उनके जन्म से जुड़े अनेकानेक भ्रातियां फैले हो।जहां बङे व्यापक रुप में व पूरे साज-सज्जा के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक अभ्यास करा-करा करके अनुभवों को इनके दामन में जोङा जा चुका था।
इस घूंट भरे कसावटपन ने उनमे चुप्पी व सबकुछ होता हैं जैसे मौन धारणा व बर्दाश्त करने के स्त्रीतत्व के गुण को नियति बनाकर इनके व्यवहार में शामिल करा दी गयी।
चाह कर भी महिलाएं अपने खिलाफ होनेवाले अन्याय को पीती रही।सब्जबाग दिखाकर व उनकी निर्बलता का झांसा देकर पुरूषवादी समाज एक समय से अबतक उनको उपभोग करता रहा।
कुछ मामले में महिलाओं ने आवाज बुलंद करनी भी चाही पर पुरूषवादी चेतना ने सदियों से कमजोर मानी जानी वाली नारी की जागृत चेतना को झकझोंर दिया और मामला जहाँ का तहां हरबार रह गया।
पिछले दिनों का मी टू अभियान महिलाओं में उनके अचेतन की छटपाहट को समझाने में कामयाब रहा था।उनके हौसले को एक राह दिखा गया ।अब उन लम्हों से उपजे विचार ने उन्हें एक मंच पर लाकर बिठा दिया है।
जहाँ वह अपने साथ हो चुके वाक्यां को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कर पा रहीं है।
इसके पीछे मूल वजह यह हैं कि हर स्त्री में पुरूषों जैसे गुण भी होते हैं जिन्हें एनिमा कहा जाता है। स्त्री की यह विशेषता उसे पुरुषों जैसे सारे कामों को करने की छूट देता है। जिन महिलाओं में शिक्षा व ग्लोबलाइजेशन के मार्फत यह स्त्रीत्व गुण पुरजोर होता हैं वह मी टू जैसे अभियान में अपनी बात को रख रही।

उदेश्य साफ-सुथरा

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मी टू अभियान से कामकाजी पुरूषों को डरने की जरूरत नहीं क्योंकि उनमें भी एनीमस जैसे पौरूषत्व गुण होते हैं ।फर्क सिर्फ इतना हैं की पुरूष इन गुणों का दुरूपयोग सदियों से करता रहा है। महिलाओं की चेतना अब आंदोलित हुयी।जिसका असर अब घरों में भी दिख रहा।अब समय आ गया है कि समाज इनके मुद्दों को स्वीकार करे और बहुत सारे मानसिक विकारों को पनपने से रोके।
उक्त कथन हमारे सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक, पटना ने इलेक्ट्रॉनिक संवाद के माध्यम से प्रेस को दिया है इनसे सलाह मशविरा के लिए इनका नं० मो.9835498113 दिया जा रहा है। 

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