राजेश कुमार वर्मा
डॉ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक के विशेष -
मौत की आगोश में समाने से पहले
हांङ-मांस के इस शरीर को करने हैं बङे यत्न।
बाल्यावस्था में स्नेह की दरकार
तरूणावस्था में प्रेम की खोज
किशोरावस्था में सपनों से प्यार
बालिग होते-होते जीवनसाथी की तलाश।
जब मन और बङा हुआ
थोङे थपेङे सहने लायक।
कुछ बनने की खातिर जुटा रहा
नित्य प्रयास में और नये- नये अभ्यास में ।
पंख से जब वह अपने उङने लगा
तब वह दुसरों के लिए जीने लगा ।
हर रोज खुद को तलाशता
जब समय ने ली अंगङाई।
खुद को बुढापे में देख
रोज-रोज डरने लगा फिर जीने लगा।
कभी बीमारी तो कभी यह मलाल
कब जीया खुद के लिए ।
सबकुछ किया धरा एक दिन
यूं ही छोङ चला गया।