गुरु के बिना ज्ञान को प्राप्त करना असंभव : पंकज झा शास्त्री
राजेश कुमार वर्मादरभंगा/मधुबनी ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । प्राचीन काल से ही गुरु और शिष्य की अटूट संबंध रहा है। गुरु के बिना ज्ञान को प्राप्त करना असंभव रहा है।
गुरु ही अपने शिष्य को अंधेरा से उजाला की ओर ले जाने में पूर्ण सक्षम है।
सर्वपल्ली राधकृष्णन उनके जन्म दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति में संपूर्ण भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक और स्वतंत्र भारत के, पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे।
एक शिष्य को चाहिए कि वह अपने हृदय को, मन को इतना शुद्ध और दिव्य ले कि जिससे गुरु उसमे स्थापित हो सके। इतना चेतन्य बना लें कि बाहर की दूषित हवाएं उस पर असर नही कर पाए, उस पर जीवन के विकारों का कोई असर न हो।
आलस्य, द्वेष, क्रोध, असत्य भाषण ये सब शिष्य को समाप्त कर देते है। इनसे बचना और इनपर विजय प्राप्त करना हर शिष्य का धर्म और कर्तव्य है।
शिष्य की आंखे गुरु के सामने नमन हो, उसमे सरधा भाव हो, उनकी आंखो में प्रेम और समर्पण का भाव हो।
केवल गुरुदेव कहने से व्यक्ति शिष्य हो जाता। शिष्य वह होता है जो पूर्ण समर्पण और गुरु सेवा द्वारा गुरु के हृदय पटल पर अपना नाम अंकित कर देता है।
इसी तरह गुरु को भी चाहिए कि अपने शिष्य को स्नेह और प्रेम के साथ उनमें दीक्षा का ज्ञान भर दे जिससे शिष्य का जीवन प्रकाशित हो।
जब गुरु से दीक्षा प्राप्त होती है तब व्यक्ति को ज्ञान होता है कि मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, मेरे जीवन का कर्तव्य क्या है, उद्धश्य क्या है और मुझे किस जगह पहुंचना है।
गुरु से दीक्षा प्राप्त करना वह अमृत वर्षा है जो पूरे शरीर को अमृतमय बना देती है। दीक्षा के द्वारा गुरु-शिष्य के तार मिल जाते है। दीक्षा कुण्डलिनी को अज्ञा चक्र तक पहुंचाने की क्रिया है, सहस्त्रसार तक पहुंचाने की प्रक्रिया है।
आज देखा जाय तो गुरु और शिष्य दोनों में ही दूरियां बढ़ती ही जा रही है जो भविष्य के लिए बहुत चिंता का विषय है दोनों ही अपने कर्तव्य मार्ग से पीछे हट रहे है। गुरु जी दीक्षा दान करने से ज्यादा सड़कों पर आंदोलन करते नजर आते है तो शिष्यों में संस्कारहिन की भावना अधिक पैदा हो रहा है।
आधुनिक समय में शिक्षा का विकास जरूर हुआ है परन्तु इसमें सुधार की आवश्यकता पर ध्यान देने की जरूरत है।
पंकज झा शास्त्री 9576281913 ,