संवाद
सोमवार को नागपंचमी पर्व की धूम मिथिलांचल भर के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों बनी रही। परंपराओं को मानने वाले ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के परिवारों ने इस पर्व पर नागदेवता के दर्शनों व पूजन का लाभ लिया। हालांकि जीव हिंसा विरोधी प्रावधानों के कारण संपेरों की मौजूदगी इस बार कम रही। बावजूद इसके दीवारों पर सर्प की आकृति बनाकर विधि-विधान से पूजन का उत्साह महिलाओं में बना दिखाई दिया।
इस बार सिद्धयोग, सर्वार्थ सिद्धि योग व अमृत योग के महासंयोग ने भी श्रद्धालुओं के आस्थामय उत्साह को बढ़ाने का काम किया। चूल्हे पर तवा ना चढ़ाने, चावल ना पकाने और कैंची सहित सुई आदि का उपयोग ना करने की परंपराओं का निर्वाह भी तमाम परिवारों में इस पर्व पर हुआ। उल्लेखनीय है कि श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को यह पर्व लंबे समय से मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य सर्पदंश जैसी घटनाओं को टालने की कामना के साथ-साथ जनमानस को प्रकृति व जीवों से जोड़े रखना भी मिथिलाचंल में नागपंचमी की धूम, नागों को दूध पिलाने के लिए उमड़े श्रद्धालुमाना जा सकता है। मंदिरों पर पूजा में कई श्रद्धालु शामिल हुए।इ
सोमवार को नागपंचमी पर्व की धूम मिथिलांचल भर के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों बनी रही। परंपराओं को मानने वाले ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के परिवारों ने इस पर्व पर नागदेवता के दर्शनों व पूजन का लाभ लिया। हालांकि जीव हिंसा विरोधी प्रावधानों के कारण संपेरों की मौजूदगी इस बार कम रही। बावजूद इसके दीवारों पर सर्प की आकृति बनाकर विधि-विधान से पूजन का उत्साह महिलाओं में बना दिखाई दिया।
इस बार सिद्धयोग, सर्वार्थ सिद्धि योग व अमृत योग के महासंयोग ने भी श्रद्धालुओं के आस्थामय उत्साह को बढ़ाने का काम किया। चूल्हे पर तवा ना चढ़ाने, चावल ना पकाने और कैंची सहित सुई आदि का उपयोग ना करने की परंपराओं का निर्वाह भी तमाम परिवारों में इस पर्व पर हुआ। उल्लेखनीय है कि श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को यह पर्व लंबे समय से मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य सर्पदंश जैसी घटनाओं को टालने की कामना के साथ-साथ जनमानस को प्रकृति व जीवों से जोड़े रखना भी मिथिलाचंल में नागपंचमी की धूम, नागों को दूध पिलाने के लिए उमड़े श्रद्धालुमाना जा सकता है। मंदिरों पर पूजा में कई श्रद्धालु शामिल हुए।इ