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मॉब-लिचिंग -मानसिक दिव्यांगजनों पर हत्यारी भीङ का उबलता आक्रोश। -- डॉ॰ मनोज कुमार



वह आस-पास कचङे के ढेर से खाना ढूंढ कर खा रहा था।अचानक एक पत्थर उसके सिर पर आकर लगा ।ठीक पीछे कुछ अङियल बच्चे बेपरवाह खिलखिला रहे हैं। तभी चिथङों में लिपटा वह शक्स बच्चों की ओर लपका।भागते- शोर मचाते बच्चों को देख कुछ लोग उस रहस्यमयी युवक की ओर बढे।"देखो!देखो लोग बच्चा चोर आ गया!"देखते ही देखते सैकडों लोगों का हूजूम लाठी डंडे से लैस पहुंचने लगे।पहली लाठी उस निहत्थे पर जैसे ही पङी वह बदहवास होकर भीङ की ओर लपका।अबतक लोगों की ओर से वार पर वार होने लगे और वह विक्षिप्त बेदम होकर गिर गया।

राजेश कुमार वर्मा

पटना/समस्तीपुर ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । पटना के सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा० मनोज कुमार ने मिथिला हिन्दी न्यूज को बताया की उसकी आँखों पर लंबे घुंघराले बाल भरी दोपहर में सूकून दे रहें थे।वह आस-पास कचङे के ढेर से खाना ढूंढ कर खा रहा था।अचानक एक पत्थर उसके सिर पर आकर लगा ।ठीक पीछे कुछ अङियल बच्चे बेपरवाह खिलखिला रहे हैं। तभी चिथङों में लिपटा वह शक्स बच्चों की ओर लपका।भागते- शोर मचाते बच्चों को देख कुछ लोग उस रहस्यमयी युवक की ओर बढे।"देखो!देखो लोग बच्चा चोर आ गया!"देखते ही देखते सैकडों लोगों का हूजूम लाठी डंडे से लैस पहुंचने लगे।पहली लाठी उस निहत्थे पर जैसे ही पङी वह बदहवास होकर भीङ की ओर लपका।अबतक लोगों की ओर से वार पर वार होने लगे और वह विक्षिप्त बेदम होकर गिर गया।लोगों की हैवानियत इतने में भी नहीं मानी और अपने आक्रोश को जनसैलाब बनाना उचित समझ कुछ विडियो बनाना उपयुक्त समझने लगे।डीएसपी लां एंड आर्डर मौका ए वारदात पर पहुंचे तबतक वह मानसिक दिव्यांग चंद सांसे ले रहा था।
दरअसल इस तरह की घटनाएं पटना में ही नहीं बल्कि पूरे सूबे में धधक रही।भीङ तंत्र का इंसाफ सदियों से भयावह रहा है। कुछ मामलों में यह भीङ निर्णायक भूमिका में होती है तो बहुतेरे मसले में दबे-कुचले लोगों को अपना आवेश खाली करने का एक मौका देती है। बिहार के संदर्भ में इन दिनों भीङ तंत्र के इंसाफ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस अफसरान की अनगिनत टोलियां हरकत में है।
भीङ हो रही बेकाबू
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अबतक घटनाओं में कुछेक मामलों को छोङ दिये जाये तो भीङ की हिंसा का शिकार ज्यादातर मानसिक दिव्यांगजन ही हुए।समाजविरोधी किसी काम को अंजाम दे रहे अपराधी पर पुलिस की विफलता पर लोगों का गुस्सा बढ रहा।कानून और न्याय व्यवस्था पर जनसमूह का विश्वास घट रहा।हालांकी बिहार डीजीपी इस बाबत लगातार लोगों के विश्वास पाने का प्रयास कर रहें लेकिन बिहार पुलिस अपना आत्मविश्वास नही पा सकी अबतक।रोजमर्रा से उपजे तनाव लोगों में रोष पैदा कर रहा और अपने उबलते आक्रोश को कहीं किसी व्यवस्था पर व्यक्त करना चाह रहें ।नतीजतन कमजोर व निस्सहाय लोगों को बच्चा चोर समझकर जनसमूह न्याय कर रहें।
मानसिक दिव्यांगजन बन रहें निशाना।
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समाज में मानसिक दिव्यांगजन के पुनर्वास के लिए मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 पुरजोर वकालत करता है। अबतक हमारे समाज ने मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास नही किया है। हालांकि समाज कल्याण विभाग के तहत दिव्यांगजन सशक्तिकरण निदेशालय भी लगातार इस दिशा में प्रयासरत दिख रहा।इसके बावजूद भी मानसिक दिव्यांग लोगों का समय पर उपचार नही हो पा रहा।वह दर-दर की ठोकरे खाने को विवश हैं। सङकों-गलियों में जब इनकी चहलकदमी होती हैं तो बहुत से लोगों के लिए इनका आचरण संदेहास्पद लगता है और भीङ अपने अंदर के कुंठाओ को इन्हें चोटिल कर निकाल दे रही।
मानसिक रोगियों में कुंद होती हैं भावनाएं ।
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जो लोग गंभीर मानसिक रोगों से पीड़ित होते हैं। उनको परिजन त्याग कर देते हैं। कुछ मामलों में जानकारी के आभाव में ऐसे लोग घर से विस्थापित हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि मानसिक रोगियों में सूझबूझ की भारी कमी देखी जाती है। इनकी मनोदशा इस काबिल नही होती हैं की वह किसी के पुछने पर उपयुक्त जवाब दे सके।हालात यह होती हैं की ये दिन को रात या रात को दिन भी समझ बैठते हैं नतीजतन लोग इन्हें बहूरूपिया समझ अपना शिकार बना देते हैं।
जीवन की साधारण आवश्यकताओं से होते हैं महरूम।
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अबतक के ज्यादातर केसेज में बच्चा चोर की जो अफवाह हुयी है। उसमे सबसे बङा मसला यह रहा हैं की बहुत सारे मामले में शारीरिक खूबियों से लैस लोगों को भी भीङ के हिंसा का कोपभाजन बनना पङा है। मसलन वैसे लोगों को जो अपने जीवन की साधारण आवश्यकता को पुरा करने में किसी कारणवश अक्षम रहें हैं। इनका व्यवहार भी इस तरह का दिखता हैं की लोगों में यह संदेश तुरंत फैल जाती हैं कि अच्छा खासा व्यक्ति ग्रुप में अजीब आचरण कर रहा।मानसिक दिव्यांगजन अपनी अभिव्यक्ति नही कर पाते और भीङ में पूर्वाग्रह से ग्रसित या अंदरूनी कुंठा को पाल रहे लोगों के लिए यह मौका अपने भीतर के गुब्बार निकालने का जरिया बन रहा है। जरूरत इस बात की हैं कि सरकार द्वारा ऐसे यायावर , खानाबदोश मानसिक दिव्यांगजन के उपयुक्त पुनर्वास कार्यक्रम चलाने की।समाज के लोगों की संवेदनाओं को झकझोङ कर जगाने की दरख्वास्त करनी होगी जो इस जघन्य काम को अंजाम दे रहें हैं।
--(लेखक डॉ॰ मनोज कुमार,बिहार के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हैं।

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