सिविल सेवा की परीक्षाएं देश के प्रतिष्ठित सेवाओं में शुमार है।इस सेवा में प्रवेश हेतु तीन चरणों वाली परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
गैर पारदर्शिता और भ्रष्टआचरण की वजह से स्थिति चिंतनीय बनती जा रही है ।
लेखक: श्री सियाराम यादव, पेशे से इंजिनियर एवं बिहार पुलिस सेवा मे पुलिस उपाधीक्षक (डी.एस.पी. ) हैं।
राजेश कुमार वर्मा/धर्मविजय गुप्ता
समस्तीपुर ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । सियाराम यादव, पेशे से इंजिनियर एवं बिहार पुलिस सेवा में पुलिस उपाधीक्षक (डी.एस.पी. ) हैं जिन्होंने सिविल सेवा की परीक्षाओं में पारदर्शिता का नया अध्याय विद्यार्थियों को बताया हैं ।
सिविल सेवा की परीक्षाएं देश के प्रतिष्ठित सेवाओं में शुमार है।इस सेवा में प्रवेश हेतु तीन चरणों वाली परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।प्रारंभिक परीक्षा बहुविकल्पीय प्रकार के सामान्य अध्ययन का होता है । जबकि मुख्य परीक्षा जिसमें लिखित एवं व्यक्तित्व परीक्षण या साक्षात्कार होता है। भारतीय संविधान की अनुच्छेद 315 के अनुसार, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) एवं राज्य लोक सेवा आयोग को इस परीक्षा के संचालन का अधिकार प्राप्त है। आज के परिदृश्य में इतने बड़े देश में परीक्षा संपन्न कराना एक मुस्किल कार्य होता है। यह तब और भी कठिन हो जाता है। जब निष्पक्षता एवं पारदर्शिता के साथ कराना होता है। इस दिशा में एक और नये अध्याय की शुरुआत हुई है।जिसमें बिहार लोक सेवा आयोग, (बीपीएससी) ने परीक्षा संपन्न किया है। साक्षात्कार के दौरान जहां पर छात्रों का संपूर्ण बायोडाटा भेजा जाता था, एवं साक्षात्कार के लिए छात्रों को बोर्ड के समक्ष नाम बताने की परंपरा थी । वहीं बिना नाम और पृष्ठभूमि वाला एक कोडेड सार पेज भेजा जाता है। और छात्र के साथ भी एक कोड भेजा जाता है । दोनों कोड समान होने के बाद इसकी पुष्टि होती है, कि यह वही छात्र है जिसका साक्षात्कार किया जाना है । 56वीं-59वीं, वर्ष 2018 से इस पद्धति की शुरुआत की गई। जिसकी बहुत सराहना भी हुई । इसके परिणाम स्वरूप जहां छात्रों में विश्वास और संतोष बढ़ा वही पारदर्शिता के माहौल की चर्चा होने लगी और उड़ीसा लोक सेवा आयोग ने भी इस पद्धति का अध्ययन किया एवं अपनाकर वर्ष 2019 के जुलाई माह में लागू करने का संकल्प लिया । इस पद्धति का लाभ यह भी हुआ कि कतिपय पैरवी में विश्वास रखने वालों के हौसले कमतर हुए । यदि सभी अन्य लोक सेवा आयोग एवं संघ लोक सेवा आयोग भी इसी प्रकार की पारदर्शी मॉडल को अपनाएं तो विद्यार्थियों का परफॉर्मेंस साक्षात्कार में और बेहतर दिखेगा । साथ हीं साथ सबके लिए एक समान प्लेटफॉर्म भी प्राप्त होगा। जिससे देश को स्वतंत्र, निष्पक्ष, न्याय प्रिय, समयबद्ध, समर्पित, राष्ट्रभक्त, एवं संविधान संरक्षक उच्च कोटि का चरित्रवान उम्मीदवार सदा इस देश को प्राप्त होता रहेगा । एक और अन्य बात हमारे सुझाव में है जिसे मै देना आवश्यक समझता हूँ कि क्यों ना पूरे साक्षात्कार कि वीडियोग्राफी कराई जाए और एक कॉपी छात्रों को दे दी जाए, या जिनको इच्छा है। उनको उनके साक्षात्कार का रिकॉर्डिंग करवाने हेतु परमीशन दिया जाए। यहां हम लोग यह मानकर चल रहे हैं। कि प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा पूर्णतः पारदर्शी है ।और विद्यार्थियों को कोई रिलेटिव लॉस नहीं होता है। मुख्य परीक्षा में छात्र के हैंडराइटिंग लेखनी एवं भाषा का आंशिक प्रभाव उनके प्राप्तांक में देखा जाता है । हालांकि यूपीएससी इसे नहीं मानती है। इसमें किंचित सुधार की आवश्यकता है । यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत के सभी राज्यों में मुख्य परीक्षा का पैटर्न अलग अलग प्रकार का है। जहां मध्य प्रदेश, राजस्थान, में लघु उत्तरीय एवं दीर्घ उत्तरीय वर्णनात्मक प्रश्नों का मेलजोल एवं सामंजस्य होता है।वहीं बिहार, उड़ीसा, पूर्वोत्तर, दक्षिण भारतीय, राज्यों में सिर्फ वर्णनात्मक प्रश्नों को ही पूछा जाता है। पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे राज्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है। वजह आयोगों, छात्र संघ, सिविल सेवकोंओं और राजनीतिज्ञों में उचित रवैये का आभाव देख जा रहा है। उदाहरण स्वरूप अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा अयोग ने वर्ष- 2012 -13 के बाद 2017 मैं फॉर्म निकाली थी । जिसमे प्रारंभिक परीक्षा में आए प्रश्न किसी वेबसाइट से ली गई थी।वहीं उस वक्त छात्रों ने ऐसा कहते हुए हंगामा किया था जिसको लेकर परीक्षा निरस्त हुई। अध्यक्ष पर कुछ छात्रों को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप भी लगा। उसके बाद अभी तक (वर्ष 2019 ) में परीक्षा संपन्न नहीं हो पाई।यही हाल मणिपुर में भी हुआ और मामला उच्च न्यायालय तक गया। तो इस प्रकार हम देखते हैं कि एक पारदर्शी, जिम्मेदार, और निष्पक्ष प्रक्रिया बनाने के लिए कृत संकल्पित होने की आवश्यकता है ।राज्य स्तरों पर लिए जाने वाले परीक्षाओं में समय सीमा का ध्यान रखा जाना भी आवश्यक है। प्रक्रिया 1 साल के अंदर पूरी हो जाए ताकि छात्र अन्य कैरियर विकल्पों पर भी ध्यान दे सकें। बीपीएससी 2018 से सभी परीक्षाओं को अपने समय पर पूरा किया है जिससे प्रतिष्ठा बढ़ी है । 63वी, 64वी, 65वी, की परीक्षाओं को अपने समय पर आयोजित करने का पर्यत्न किया जा रहा है। 65वी की प्रारंभिक परीक्षा अक्टूबर में संभावित है। तथा कैलेंडर के अनुपालन के संकल्प को दोहराया गया है। आयोग सदस्य निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं। अब समय आ गया है । कि जब राजनीतिक शक्तियां दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दे, ऑफिसर अपनी न्याय प्रियता, निष्पक्षता, स्वच्छ छवि का, परिचायक बने। छात्र संगठन भी उन्हें अपने दबाव में न लाएं।चूकिँ गैर पारदर्शिता और भ्रष्टआचरण की वजह से स्थिति चिंतनीय है। अतः इसे बदलने के लिए बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा उठाया गया कदम अनुकरणीय है। जो मील का पत्थर साबित हो ऐसी हमारी कामना है।