रोहित कुमार सोनू
सीतामढ़ी या आसपास से लम्बी दूरी जैसे दिल्ली यहां तक कि पटना तय करने वाली बसों को लेकर एक कड़वा सच सामने है जिससे आप अंजान नही होगें। रास्तों में ढाबा वालों से बस ड्राईवरों और कंडेक्टरों की सेटिंग से बेचारे सफर कर रहे यात्रियों को ढ़ाबा वालों की महंगाई का सामना करना पड़ता है। इनकी अंदर के मैनेजमेंट की वजह से यात्रियों को मजबूरी में खाना पड़ता है। सबसे बड़ी बात है कि जिस भी ढ़ाबे पर बस रोकते हैं, उस पर ड्राईवर कंडक्टर को फ्री में बना हुआ 24 तरह का पकवान मिलता है। और उनके इस 24 तरह पाकवान के चक्कर में यात्रियों को इसका खामयाजा भुगतना पड़ता है। ढ़ाबा वाले मनमानी तरीके से खाने का पैसा वसूलते हैं। भूख से तड़प रहे लोग खाना खाते हैं और ज्यादा पैसे देते हैं। सीतामढ़ी से दिल्ली के सफर के लिए कोई निकलता है तो सीतामढ़ी से बस पकड़ने करीब एक से ढ़ाई घण्टे के बाद बस मुजफ्फरपुर के बस स्टाप पर पहुंचाइ जाती है । बस रूकते ही ड्राईवर की पहली हिदायत होती है की बस थोड़ी देर के लिए रूकेगी है सिर्फ बोतल में पानी भर लो। यात्री बेचारे करे भी तो क्या बस ड्राईवर का सख्त निर्देश मिला था। सब पानी बोतल में भरकर वापस आ रहे थे। जोरों की भूख से सबके पेट में चूहें कूद रहे थे। सीट पर ऐसे बैठे रहे जैसे घरवालों ने आज्ञा दी हो की नीचे नही उतरना। बस में बैठा एक भूख से परेशान होने पहले ही उतर गया था। उधर बस स्टाप पर बार-बार एनाउंसमेंट हो रही थी कि बस करीब 20 से 25 मिनट रूकेगी। आप स्टाप रेस्टोरेंट में भोजन का लुफ्त उठा सकते हैं।
मोटी से मोटी तोंद भी नौवें दिन गायब हो जाएगी! बस सुबह ये करे ड्राईवर की बात से यात्रियों ने खाने का आर्डर तो दे देता पर जब उसके साथी ने ड्राईवर को रूकने को कहा। नाराज ड्राईवर ने गुस्सा दिखाते हुए अपनी बस को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। यात्रीयो के सामने खाने की थाली रखी थी। जिसकी ड्राईलर ने बिलकुल परवाह नही करते हैं । आखिरकार सब यात्रियों ने खाने को छोड़कर भाग कर बस में आना पड़ता । जैसे वो बस पर चढ़ा ड्राईवर और कंडेक्टर ने उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया। वहां से निकलने के बाद दो ढ़ाई घंटों में एक ड्राईवर कंडक्टर के पहचान वाले के ढाबा पर बस को रोकी जाती होगी । ढ़ाबे पर खाना काफी महंगा था। दाल हाफ प्लेट 50 रूपए की।जबकि उस जगह पर के पूरी थाली इतने की। कोल्ड ड्रिंक की 300 ml की बोतल 20 रूपए की थी। खाने का रेट सुनकर ही यात्रियों की भूख मर जाती है । पेट के चूहे को शांत करने के लिए कुछ खाना जरूरी था। कई यात्री तो पेतीज खरीदता है तो उसकी कीमत भी दिल्ली से ज्यादा उस जगह थी। 15 रूपए की पेटीज दी। एक –एक कर तीन चार बसें उस ढाबे पर रूकती है और यात्रियो को लूटने का सिलसिला चलता रहता है । ऐसे न जाने कितनी बसें अपनी सेटिंग वाले ढ़ावों पर रूकती है। इस बात से तो परिवहन निगम भी अंजान नही होगा। यात्रियों को सुविधाएं देने के बजाय ऐसी असुविधा देते हैं। कितने लोग तो भूखे ही सफर कर लेते हैं। जो परिवार के साथ सफर करते होगें वो क्या करें। इस बात का ख्याल कभी ड्राईवर और कंडेक्टर को होगा। कैसे इतने महगें ढ़ाबे में खाना खाएं। ऐसा लगता है कि वो ढ़ाबा नही कोई होटल खोलकर रखा हो। इन ढ़ाबों से सस्ता तो कस्बों का होटल होता है। सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो जिन ढाबों पर बस रूकती है वहां अगर एक ढ़ाबे और एक दो दुकान सिगरेट और पान मसाला की होती है। जिस बेरहमी से ऐसे सून-सान जगह पर बस को रोका जाता है। कभी भी कोई बड़ी घटना लूटपाट जैसी घटित होती रहती है। दो रोटी फ्री में खाने के चक्कर में इतना बड़ा रिस्क लेते हैं ये बस के ड्राईवर।ये कोई पहली घटना नही होती है। इससे पहले के सफर में कई बार यात्री और ढाबे वाले में खाने को लेकर बहस हो जाती है
रोटी और सब्जि के लगभग 100 रूपये तक वसूल कर लेते हैं जिसे लेकर वो यात्री काफी नाराज होते हैं और दोनो में जमकर बहस होती रहती पर यात्रियों को अंत में हार का सामना करना पड़ता है । जब दिल्ली से चलते समय ऐसे बस स्टाप होते हैं जहां सस्ता और अच्छा खाना यात्रियों को मिल सके तो बस को वहां क्यों नही रोकते हैं। शायद वहां फ्री में खाना न मिलता हो। खाना ही नही चाय पानी पीने के लिए भी दुकाने फिक्स कर रखे हैं। बसें वही रूकती है जहां खाना पीना फ्री हो। ऐसे में यात्री का कोई ख्याल नही है। रोडवेज प्रशासन को इस पर पहल करनी चाहिए। ऐसे लोगों पर लगाम लगाए। बस स्टाप पर खुली दुकानों और ढ़ाबों का क्या? जो परिवहन निगम को पैसा देकर टेंडर लेते होगे। वित्तीय घाटा तो उनको भी होता होगा। देखने वाली बात है कि परिवहन निगम इस बात को लेकर अपनी आखें कब खोलता है। या फिर यात्रियों को लुटवाने वाला ये कड़वा सच ऐसे ही चलता रहेगा।
सीतामढ़ी या आसपास से लम्बी दूरी जैसे दिल्ली यहां तक कि पटना तय करने वाली बसों को लेकर एक कड़वा सच सामने है जिससे आप अंजान नही होगें। रास्तों में ढाबा वालों से बस ड्राईवरों और कंडेक्टरों की सेटिंग से बेचारे सफर कर रहे यात्रियों को ढ़ाबा वालों की महंगाई का सामना करना पड़ता है। इनकी अंदर के मैनेजमेंट की वजह से यात्रियों को मजबूरी में खाना पड़ता है। सबसे बड़ी बात है कि जिस भी ढ़ाबे पर बस रोकते हैं, उस पर ड्राईवर कंडक्टर को फ्री में बना हुआ 24 तरह का पकवान मिलता है। और उनके इस 24 तरह पाकवान के चक्कर में यात्रियों को इसका खामयाजा भुगतना पड़ता है। ढ़ाबा वाले मनमानी तरीके से खाने का पैसा वसूलते हैं। भूख से तड़प रहे लोग खाना खाते हैं और ज्यादा पैसे देते हैं। सीतामढ़ी से दिल्ली के सफर के लिए कोई निकलता है तो सीतामढ़ी से बस पकड़ने करीब एक से ढ़ाई घण्टे के बाद बस मुजफ्फरपुर के बस स्टाप पर पहुंचाइ जाती है । बस रूकते ही ड्राईवर की पहली हिदायत होती है की बस थोड़ी देर के लिए रूकेगी है सिर्फ बोतल में पानी भर लो। यात्री बेचारे करे भी तो क्या बस ड्राईवर का सख्त निर्देश मिला था। सब पानी बोतल में भरकर वापस आ रहे थे। जोरों की भूख से सबके पेट में चूहें कूद रहे थे। सीट पर ऐसे बैठे रहे जैसे घरवालों ने आज्ञा दी हो की नीचे नही उतरना। बस में बैठा एक भूख से परेशान होने पहले ही उतर गया था। उधर बस स्टाप पर बार-बार एनाउंसमेंट हो रही थी कि बस करीब 20 से 25 मिनट रूकेगी। आप स्टाप रेस्टोरेंट में भोजन का लुफ्त उठा सकते हैं।
मोटी से मोटी तोंद भी नौवें दिन गायब हो जाएगी! बस सुबह ये करे ड्राईवर की बात से यात्रियों ने खाने का आर्डर तो दे देता पर जब उसके साथी ने ड्राईवर को रूकने को कहा। नाराज ड्राईवर ने गुस्सा दिखाते हुए अपनी बस को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। यात्रीयो के सामने खाने की थाली रखी थी। जिसकी ड्राईलर ने बिलकुल परवाह नही करते हैं । आखिरकार सब यात्रियों ने खाने को छोड़कर भाग कर बस में आना पड़ता । जैसे वो बस पर चढ़ा ड्राईवर और कंडेक्टर ने उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया। वहां से निकलने के बाद दो ढ़ाई घंटों में एक ड्राईवर कंडक्टर के पहचान वाले के ढाबा पर बस को रोकी जाती होगी । ढ़ाबे पर खाना काफी महंगा था। दाल हाफ प्लेट 50 रूपए की।जबकि उस जगह पर के पूरी थाली इतने की। कोल्ड ड्रिंक की 300 ml की बोतल 20 रूपए की थी। खाने का रेट सुनकर ही यात्रियों की भूख मर जाती है । पेट के चूहे को शांत करने के लिए कुछ खाना जरूरी था। कई यात्री तो पेतीज खरीदता है तो उसकी कीमत भी दिल्ली से ज्यादा उस जगह थी। 15 रूपए की पेटीज दी। एक –एक कर तीन चार बसें उस ढाबे पर रूकती है और यात्रियो को लूटने का सिलसिला चलता रहता है । ऐसे न जाने कितनी बसें अपनी सेटिंग वाले ढ़ावों पर रूकती है। इस बात से तो परिवहन निगम भी अंजान नही होगा। यात्रियों को सुविधाएं देने के बजाय ऐसी असुविधा देते हैं। कितने लोग तो भूखे ही सफर कर लेते हैं। जो परिवार के साथ सफर करते होगें वो क्या करें। इस बात का ख्याल कभी ड्राईवर और कंडेक्टर को होगा। कैसे इतने महगें ढ़ाबे में खाना खाएं। ऐसा लगता है कि वो ढ़ाबा नही कोई होटल खोलकर रखा हो। इन ढ़ाबों से सस्ता तो कस्बों का होटल होता है। सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो जिन ढाबों पर बस रूकती है वहां अगर एक ढ़ाबे और एक दो दुकान सिगरेट और पान मसाला की होती है। जिस बेरहमी से ऐसे सून-सान जगह पर बस को रोका जाता है। कभी भी कोई बड़ी घटना लूटपाट जैसी घटित होती रहती है। दो रोटी फ्री में खाने के चक्कर में इतना बड़ा रिस्क लेते हैं ये बस के ड्राईवर।ये कोई पहली घटना नही होती है। इससे पहले के सफर में कई बार यात्री और ढाबे वाले में खाने को लेकर बहस हो जाती है
रोटी और सब्जि के लगभग 100 रूपये तक वसूल कर लेते हैं जिसे लेकर वो यात्री काफी नाराज होते हैं और दोनो में जमकर बहस होती रहती पर यात्रियों को अंत में हार का सामना करना पड़ता है । जब दिल्ली से चलते समय ऐसे बस स्टाप होते हैं जहां सस्ता और अच्छा खाना यात्रियों को मिल सके तो बस को वहां क्यों नही रोकते हैं। शायद वहां फ्री में खाना न मिलता हो। खाना ही नही चाय पानी पीने के लिए भी दुकाने फिक्स कर रखे हैं। बसें वही रूकती है जहां खाना पीना फ्री हो। ऐसे में यात्री का कोई ख्याल नही है। रोडवेज प्रशासन को इस पर पहल करनी चाहिए। ऐसे लोगों पर लगाम लगाए। बस स्टाप पर खुली दुकानों और ढ़ाबों का क्या? जो परिवहन निगम को पैसा देकर टेंडर लेते होगे। वित्तीय घाटा तो उनको भी होता होगा। देखने वाली बात है कि परिवहन निगम इस बात को लेकर अपनी आखें कब खोलता है। या फिर यात्रियों को लुटवाने वाला ये कड़वा सच ऐसे ही चलता रहेगा।