राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । ज्योतिष पंकज झा शास्त्री जी का मंतव्य के अनुसार
एक अध्यन से यह पता चलता है कि रामायण के अनुसार महापंडित रावण अनेक विद्याओं के ज्ञाता जरूर थे। उनके द्वारा किए गए, जप तप, यज्ञ आदि के अनुष्ठान मुहूर्त देखकर ही प्रारम्भ किए जाते थे, अतः वे बड़े ज्योतिषी रहे होंगे, यह निश्चित माना जा सकता है। मायावी तो वे थे ही, अतः उनका तांत्रिक होना भी सुनिश्चित है। सुषेण जैसा वैध उनकी लंका नगरी में रहता था तथा वे स्वयं ही चिकित्सा विधियों से परिचित थे, अतः उनका चिकित्सा विज्ञ होना भी अमान्य नही ठहराया जा सकता, रामायण में उन्हें अनेक विद्याओं के जानकार तो बताया गया है, परन्तु उन्होंने ग्रंथ भी लिखे थे ऐसा उल्लेख मुझे कहीं नहीं देखने को मिला और, क्षण भर यदि यह मान भी लिया जाय कि उन्होंने ग्रंथ रचना की थी तो लगभग आठ लाख अस्सी हज़ार वर्ष पूर्व लिखी गई किसी पुस्तक अथवा उसकी प्रमाणिकता- प्रतिलिपि की उपलब्धि को केवल कपोल कल्पित ही कहा जा सकता है। लंकेश्वर रावण रचित के प्रचारात्मक रूप में तंत्र- विषयक दो- तीन छोटी मोटी पुस्तके- उडडीश तंत्र आदि, चिकित्सा विषयक एक पुस्तक अर्क प्रकाश आदि बाजार में मुद्रित रूप में उपलब्ध होती है, परन्तु उनकी प्रमाणिकता भाषा, शैली आदि सभी दृष्टियों से अविश्वसनीय लगता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि थोड़े समय पूर्व ही किन्हीं अन्य लेखकों ने इन पुस्तकों को स्वयं लिखकर रावण रचित के रूप में प्रचारित कर दिया होगा, जिसका लाभ आज के प्रकाशनगण भली भांति उठा रहे है। पंकज झा शास्त्री
दरभंगा/मधुबनी ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । ज्योतिष पंकज झा शास्त्री जी का मंतव्य के अनुसार
एक अध्यन से यह पता चलता है कि रामायण के अनुसार महापंडित रावण अनेक विद्याओं के ज्ञाता जरूर थे। उनके द्वारा किए गए, जप तप, यज्ञ आदि के अनुष्ठान मुहूर्त देखकर ही प्रारम्भ किए जाते थे, अतः वे बड़े ज्योतिषी रहे होंगे, यह निश्चित माना जा सकता है। मायावी तो वे थे ही, अतः उनका तांत्रिक होना भी सुनिश्चित है। सुषेण जैसा वैध उनकी लंका नगरी में रहता था तथा वे स्वयं ही चिकित्सा विधियों से परिचित थे, अतः उनका चिकित्सा विज्ञ होना भी अमान्य नही ठहराया जा सकता, रामायण में उन्हें अनेक विद्याओं के जानकार तो बताया गया है, परन्तु उन्होंने ग्रंथ भी लिखे थे ऐसा उल्लेख मुझे कहीं नहीं देखने को मिला और, क्षण भर यदि यह मान भी लिया जाय कि उन्होंने ग्रंथ रचना की थी तो लगभग आठ लाख अस्सी हज़ार वर्ष पूर्व लिखी गई किसी पुस्तक अथवा उसकी प्रमाणिकता- प्रतिलिपि की उपलब्धि को केवल कपोल कल्पित ही कहा जा सकता है। लंकेश्वर रावण रचित के प्रचारात्मक रूप में तंत्र- विषयक दो- तीन छोटी मोटी पुस्तके- उडडीश तंत्र आदि, चिकित्सा विषयक एक पुस्तक अर्क प्रकाश आदि बाजार में मुद्रित रूप में उपलब्ध होती है, परन्तु उनकी प्रमाणिकता भाषा, शैली आदि सभी दृष्टियों से अविश्वसनीय लगता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि थोड़े समय पूर्व ही किन्हीं अन्य लेखकों ने इन पुस्तकों को स्वयं लिखकर रावण रचित के रूप में प्रचारित कर दिया होगा, जिसका लाभ आज के प्रकाशनगण भली भांति उठा रहे है। पंकज झा शास्त्री