राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज )। वैसे तो भगवान विश्वकर्मा के बारे में शास्त्रों में कई प्रकार से वर्णन मिलते है। कुछ धर्म शास्त्रों के अनुसार ब्रम्हा जी के पुत्र"धर्म"की सातवीं संतान जिनका नाम वास्तु था, विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता पिता के भांति महान शिल्पकार हुए इस सृष्टि में अनेकों प्रकार के निर्माण इन्हीं के द्वारा माना जाता है। देवताओं के स्वर्ग हो या रावण के सोने के लंका या फिर भगवान कृष्ण के द्वारका आदि सभी बाबा विश्वकर्मा के द्वारा ही किया गया जो कि वास्तु कला की अद्भुत मिसाल है बाबा विश्वकर्मा को औजारों के देवता भी कहा गया है। विश्वकर्मा शब्द बड़े ही व्यापक अर्थो में है। यजुर्वेद के अनुसार विश्वकर्मा अर्थत सभी कर्म क्रिया कलाप जिनके द्वारा हुए इस अर्थ में श्रीमंग के रचयिता परमेश्वर के रूप में विश्वकर्मा का बोध होता है। विश्वकर्मा को शस्त्र, शास्त्र, आभूषण औजार वाहन आदि के भी जनक कहा गया है।
हम अपने प्राचीन ग्रंथों उपनिषद् एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पाएंगे कि आदि काल से ही विश्वकर्मा जी शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित एवं बंदित है। हमारे धर्म शास्त्रों और ग्रंथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन प्राप्त होता है जैसे- विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा,सुधन्वा विश्वकर्मा, भृंगुवंशी विश्वकर्मा। विश्वकर्मा जी इस सृष्टि के संसाधनों में कई प्रकार से अपना योगदान किए।
हम सभी को बाबा विश्वकर्मा की पूजा अर्चना एवं ध्यान अवश्य करनी चाहिए जिससे कई प्रकार के मनोकामनाएं पूर्ण होने की आशा कर सकते है।
इसवार मिथिला क्षेत्रीय पंचांग अनुसार विश्वकर्मा जयंती 18 सितंबर 2019, बुधवार को मनाई जाएगी। पूजा के लिए अति शुभ मुहूर्त
18 सितंबर को प्रातः 05:55 से 08:59 तक इसके बाद दिन के 10:32 से 12:01 तक अति शुभ है। नोट- अपने अपने क्षेत्र के पंचांग अनुसार समय सारणी में कुछ अंतर हो सकता है। पंकज झा शास्त्री
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज )। वैसे तो भगवान विश्वकर्मा के बारे में शास्त्रों में कई प्रकार से वर्णन मिलते है। कुछ धर्म शास्त्रों के अनुसार ब्रम्हा जी के पुत्र"धर्म"की सातवीं संतान जिनका नाम वास्तु था, विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता पिता के भांति महान शिल्पकार हुए इस सृष्टि में अनेकों प्रकार के निर्माण इन्हीं के द्वारा माना जाता है। देवताओं के स्वर्ग हो या रावण के सोने के लंका या फिर भगवान कृष्ण के द्वारका आदि सभी बाबा विश्वकर्मा के द्वारा ही किया गया जो कि वास्तु कला की अद्भुत मिसाल है बाबा विश्वकर्मा को औजारों के देवता भी कहा गया है। विश्वकर्मा शब्द बड़े ही व्यापक अर्थो में है। यजुर्वेद के अनुसार विश्वकर्मा अर्थत सभी कर्म क्रिया कलाप जिनके द्वारा हुए इस अर्थ में श्रीमंग के रचयिता परमेश्वर के रूप में विश्वकर्मा का बोध होता है। विश्वकर्मा को शस्त्र, शास्त्र, आभूषण औजार वाहन आदि के भी जनक कहा गया है।
हम अपने प्राचीन ग्रंथों उपनिषद् एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पाएंगे कि आदि काल से ही विश्वकर्मा जी शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित एवं बंदित है। हमारे धर्म शास्त्रों और ग्रंथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन प्राप्त होता है जैसे- विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा,सुधन्वा विश्वकर्मा, भृंगुवंशी विश्वकर्मा। विश्वकर्मा जी इस सृष्टि के संसाधनों में कई प्रकार से अपना योगदान किए।
हम सभी को बाबा विश्वकर्मा की पूजा अर्चना एवं ध्यान अवश्य करनी चाहिए जिससे कई प्रकार के मनोकामनाएं पूर्ण होने की आशा कर सकते है।
इसवार मिथिला क्षेत्रीय पंचांग अनुसार विश्वकर्मा जयंती 18 सितंबर 2019, बुधवार को मनाई जाएगी। पूजा के लिए अति शुभ मुहूर्त
18 सितंबर को प्रातः 05:55 से 08:59 तक इसके बाद दिन के 10:32 से 12:01 तक अति शुभ है। नोट- अपने अपने क्षेत्र के पंचांग अनुसार समय सारणी में कुछ अंतर हो सकता है। पंकज झा शास्त्री