राजेश कुमार वर्मा
एक ही शक्ति से सुसंबंधित है बहुदेवबाद वस्तूतः एक देववाद का ही एक रूप है एक माध्यम एक ही केंद्र में समस्त देवताओं को देखने के लिए कलश स्थापना की जाती है।
दरभंगा/मधुबनी,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) ।कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र में मां के नौ स्वरूप, दश महा विद्या और 108 नामों के साथ के साथ श्रद्धालु भक्त मां के आराधना में विशेष रूप से लगाएंगे। वैसे किसी भी देवी देवता के पूजा में कलश का विशेष महत्व होता है, इसलिए यह जरूरी है कि कलश हमेशा शुभ मुहूर्त में ही स्थापना करनी चाहिए।
कलश विश्व ब्रह्मांड का, विराट ब्रम्ह का भू- पिंड (ग्लोब) का प्रतीक है, इसे शांति और सृजन संदेश वाहक कहा जाता है। संपूर्ण देवता कलश रूपी पिंड या ब्रम्हांड में ब्यष्टी या समिष्ट में एक साथ समाए हुए है। वे एक है तथा एक ही शक्ति से सुसंबंधित है बहुदेवबाद वस्तूतः एक देववाद का ही एक रूप है एक माध्यम एक ही केंद्र में समस्त देवताओं को देखने के लिए कलश स्थापना की जाती है। कलश को सभी देव शक्ति में, तीर्थों आदि का संयुक्त प्रतीक मानकर उसे स्थापित एवं पूजित किया जाता है। वेदोक्त मंत्र के अनुसार कलश के मुख में विष्णु निवास है, उसके कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रम्हा स्थित है। कलश के मध्य में सभी मातृ शक्तियां निवास करती है। कलश में समस्त सागर, सप्त द्वीपों सहित पृथ्वी, गायत्री, सावित्री, शांति कारक तत्व, चारों वेद, सभी देव, आदित्य देव, विश्व देव, पितृ देव एक साथ निवास करते है। कलश की पूजा मात्र से एक साथ सभी प्रसन्न होकर यज्ञ कर्म को सुचारू रूपेन संचालित करने की शक्ति प्रदान करते है।.कलश में पवित्र जल भरा होता है इसका मूल भाव यह है कि हमारा मन भी जल की तरह शीतल स्वक्ष एवं निर्मल बना रहे। हमारे शरीर रूपी पात्र हमेशा,श्रद्धा, संवेदना, तरलता एवं सरलता से लबालब भरा रहे। इसी कलश स्थापना के साथ श्री गणेश करते हुए नवरात्र में प्रथम मां शैलपुत्री की पूजा आराधना के साथ नौ दिनों तक आदि शक्ति जगदम्बा के नौ स्वरूपों में व्यस्त होंगें । शक्ति के यह स्वरूप भक्तों की मनोवांक्षित फल प्रदान करने में सक्षम है।
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त-
प्रातः 06:16 से दिन के 10:30 तक इसके बाद दिन के01:31 से4:30 तक।
हस्त नक्षत्र, योग ब्रम्हा, चंद्रमा कन्या राशि में।
प्रतिपदा तिथि समापन रात्रि 10:11 बजे तक।
वैसे समय अभाव में इस दिन कलश स्थापन कभी भी कर सकते है कारण नवरात्र का समय हर पल सिद्धि का होता है और इस समय माता के आगमन के लिए दशो द्वार खुला होता है।
✍ पंकज झा शास्त्री
नोट- उपरोक्त समय सारणी में अपने क्षेत्र के पंचांगों में कुछ अंतर हो सकता है।