राजेश कुमार वर्मा/रौशन कुमार चौधरी
समस्तीपुर ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । समस्तीपुर शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों के इलाकों में बिना निवंधन निजी क्लिनिक व जांच घर धड़ल्ले से कुकुरमुत्ते की तरह खुल गया है । जो चढ़ावा देता है उसके लिए सब माफ़। जहां से नहीं मिला वहां हुई औचक निरीक्षण । सिर्फ शहर में ही दर्जनों फर्जी एमबीबीएस डॉक्टर का बोर्ड लगाए चिकित्सकों की संख्या दर्जनों में होगी जिसकी डिग्री अगर चेक किया जाए तो सच्चाई खुद सामने आ जाएगा। जिसने कभी मेडिकल कॉलेज का मुंह भी नहीं देखा होगा वह नामी गिरामी चिकित्सक बने बैठे है और लोगों का शोषण दोहन कर रहे है । जिस निजी अस्पताल के प्रबंधको से मोटी रकम सभी को मंथली के रुप में पहुंचती है ऐसा ही मालूम होता है । फिर उसे किसी का डर क्यों हो। वहीं दूसरी ओर शहरी इलाकों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में जांच घर के नाम पर सैकड़ों हैं पर 98 प्रतिशत फर्जी जिनके पास कोई जांच करने की कोई डिग्री नहीं है। सब मालूम है अधिकारियों को पर मोटी रकम पहुंचने के कारण यह धंधा धड़ल्ले से बदस्तूर जारी है। दवा विक्रेताओं की तो पूछिए हीं नहीं। कौन सी दवा खिलाकर जान ले लेगा पता नहीं। बिना पूर्जा रसीद के ही दूकानों पर दवा दी जाती है मांगे जाने पर दुत्कार कर कहा जाता है की टैक्स कौन देगा पूर्जा अगर लेते हैं तो जीएसटी चुकाना होगा। जबकि अब हरेक सामान पर एम आर पी अंकित बाजार मूल्य से अधिक है।
समस्तीपुर ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । समस्तीपुर शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों के इलाकों में बिना निवंधन निजी क्लिनिक व जांच घर धड़ल्ले से कुकुरमुत्ते की तरह खुल गया है । जो चढ़ावा देता है उसके लिए सब माफ़। जहां से नहीं मिला वहां हुई औचक निरीक्षण । सिर्फ शहर में ही दर्जनों फर्जी एमबीबीएस डॉक्टर का बोर्ड लगाए चिकित्सकों की संख्या दर्जनों में होगी जिसकी डिग्री अगर चेक किया जाए तो सच्चाई खुद सामने आ जाएगा। जिसने कभी मेडिकल कॉलेज का मुंह भी नहीं देखा होगा वह नामी गिरामी चिकित्सक बने बैठे है और लोगों का शोषण दोहन कर रहे है । जिस निजी अस्पताल के प्रबंधको से मोटी रकम सभी को मंथली के रुप में पहुंचती है ऐसा ही मालूम होता है । फिर उसे किसी का डर क्यों हो। वहीं दूसरी ओर शहरी इलाकों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में जांच घर के नाम पर सैकड़ों हैं पर 98 प्रतिशत फर्जी जिनके पास कोई जांच करने की कोई डिग्री नहीं है। सब मालूम है अधिकारियों को पर मोटी रकम पहुंचने के कारण यह धंधा धड़ल्ले से बदस्तूर जारी है। दवा विक्रेताओं की तो पूछिए हीं नहीं। कौन सी दवा खिलाकर जान ले लेगा पता नहीं। बिना पूर्जा रसीद के ही दूकानों पर दवा दी जाती है मांगे जाने पर दुत्कार कर कहा जाता है की टैक्स कौन देगा पूर्जा अगर लेते हैं तो जीएसटी चुकाना होगा। जबकि अब हरेक सामान पर एम आर पी अंकित बाजार मूल्य से अधिक है।