राजेश कुमार वर्मा
समस्तीपुर,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । दिव्यांगता, पुनर्वास एवं मानवाधिकार को समर्पित सोसाईटी फॉर डिसैबिलिटी एण्ड रिहैबिलीटेशन स्ट्डीज के तत्वावधान में संस्था के स्थानीय कार्यालय में इसके बिहार प्रभारी डॉ परमानन्द लाभ की अध्यक्षता में हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर एक संगोष्ठी सम्पन्न हुई, जिसका विषय " भारत में राष्ट्रभाषा" था। अध्यक्ष ने कहा कि भारत का यह दुर्भाग्य है कि स्वाधीनता के इतने वर्षों बाद भी उसे राष्ट्रभाषा नहीं मिला है, जबकि हिन्दी हर तरहों से इसके लिए सक्षम है। जिस प्रकार भारत अंग्रेजों का गुलाम था, उसी प्रकार इंगलैंड दो-दो बार फ्रांसिसियों का गुलाम हुआ और वहाँ के राज काज की भाषा फ्रेंच थी। आजादी के महज एक वर्ष के भीतर हीं ब्रिटेन के संसद ने फ्रेंच को वहाँ की जनता के लिए "मिस्चीफ़" (षड्यंत्र) बताया और तत्काल अंग्रेजी को उसका वाजिब हक दिया।उन्होने संसद से, विशेषकर हिन्दी - हिन्दू - हिन्दुस्तान के नाऱों पर सत्ता में आई भाज पा सरकार के मुखिया माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से सवाल किया है कि फ्रेंच यदि इंगलैंड में मिस्चीफ था , तो हिन्दुस्तान में अंग्रेजी क्या है.. ? मुख्य अतिथि डॉ० धनाकर ठाकुर ने अपने उद्बोधन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि वे चाहते थे कि भारत के न्यायालयों सहित सभी स्कूल कार्यालयों में एकाएक हिन्दी का प्रयोग हो, लेकिन नेहरुजी के अंग्रेजियत के प्रति व्यामोह ने ऐसा नहीं होने दिया।उन्होंने आशा जताई कि मोदी सरकार हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने का साहस दिखाएगी। सार संक्षेपण संस्था के वरिष्ठ कार्यकर्ता डॉ मनोज मनु ने प्रस्तुत किया। धन्यवादज्ञापन प्रो नन्द किशोर ने किया । संगोष्ठी को प्रो नुरुल ईस्लाम, प्रो० प्रवीण झा प्रेम, प्रो० रविशंकरनाथ कर्ण, डॉ० संध्या कुमारी आदि ने भी सम्बोधित किया।