राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) जव मोह में ग्रस्त जीव निद्रा में रात में सोते है, उस समय संयमी जागता है। उनके दिन संसार कार्यों को संपादित करने में व्यतीत होते है और रात्रि के एकांत साधक देवी दुर्गा का सब प्रकार के व्यवधानों से निवृत होकर एकांत भाव से साधना करते है, तव उनके मन में ऊर्जा का संचार होता है। क्योंकि शक्ति का स्रोत तो देवी दुर्गा ही है। यह भी ध्यान देना अति आवश्यक है कि हमें देवी के नौ स्वरूप तक ही सीमित रहने तक ही नहीं होनी चाहिए विशेषतः भगवती के नौ स्वरूप, दश महा विद्या, चौसठ योगिनी, एक सौ आठ नाम हमारे जीवन में कई प्रकार के बाधाओ को दूर करने में पूर्णतः सक्षम हो है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ नवीनता से भरी नौ राते है। नवरात्र प्रकृति द्वारा प्रदत्त अवसर है। अपने भीतर स्थित शक्ति से संपर्क स्थापित कर अपना नवीनीकरण करने का शक्ति का साक्षात स्वरूप देवी दुर्गा है। दुर्गा के इन्हीं स्वरूपों में से तृतीय स्वरूप मां चन्द्रघंटा के नाम से जाना जाता है। परम शक्तिदायी और तेज पूर्ण मां शक्ति के मस्तक पर अर्ध चन्द्र सुशोभित है। यदि संभव हो तो इन्हे पीला वस्त्र, पीला लहठी और हल्दी अर्पण करने से शरीर पर पड़ने वाला रोग का प्रभाव कम हो सकता है। निष्ठा भाव से जो भी भक्त इनको मनाता है माता तुरंत मान जाती है और भक्तों पर अपनी कृपा बनाई रखती है। पंकज झा शास्त्री