भुवन भर की आनन्दभूति का आनंद जिसमें भरा हो उसे भुवनेश्वरी कहते है : पंकज झा शास्त्री
ब्यूरों:राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) ।
हमारे ग्रंथों और पुराणों का अध्यन करने से यह पता चलता है कि शक्ति पीठों की संख्या अलग अलग बताई जाती है जैसे यह संख्या कहीं 51 तो कहीं 52
इसी तरह देवी भागवत में 108 स्थानों का उल्लेख मिलता है चन्द्र चुरामणी स्थान, अंग भेरव और शक्ति नाम का देवी गीता में पिठो की संख्या 72 मिलती है।
कालिका पुराण के अनुसार शक्ति पीठो की संख्या 26 है।
हमे एक और जानकारी से यह पता चलता है भारत में 42 शक्ति पीठ है जबकि नेपाल में 2, श्री लंका में 1, तिब्बत में 1, पाकिस्तान में 1, बंगला देश में 04 ,
वैसे मिथिला आप सभी को यह जानकारी दे दूं कि मिथिला में कुछ ऐसे शक्ति पीठ है जो जो अज्ञात 108 पीठों में से है।
मिथिला शक्ति पीठ के निश्चित स्थान को लेकर अनेक मत्त और मतांतर मिलते है, जिनमे मधुबनी जिला अंतर्गत अकौर गांव स्थित अंकुरित माता भुवनेश्वरी भी है।
एक जानकारी के अनुसार मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था वर्तमान में एक संस्कृति क्षेत्र है जिनमें बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोशी, पूर्णिया और भागल पुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के साथ साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी सामिल है। मिथिला के लोक श्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परंपरा के लिए भारत और भारत से बाहर भी विश्व के कई क्षेत्रों में जानी जाती है। इसका प्रमुख भाषा मैथिली है हिन्दू धर्म ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण तथा स्पष्ट उल्लेख बाल्मीकि रामायण में मिलता है।
बाल्मीकि रामायण में जनक की वंश परंपरा दी गई है रामायण में सिरजध्वज जनक स्वयं ही अपने पूर्वज राजाओं के नाम दशरथ को बताते है।
सिरजध्वज जनक सीता के पिता सर्व विदित जनक रामायण काल तक के वैदेह (जनक) वंशिय राजाओं के नाम बाल्मीकिरामायण स्पष्टता उल्लेखित रहने के कारण पुराणों के अपेक्ष वे नाम ही स्वीकार्य है। परन्तु सिरजध्वज जनक के बाद के राजाओं के नाम स्वाभाविक रूप से बाल्मीकिरामायण में न होने के कारण हमें पुराणों का सहारा लेना पड़ता है। इसमें सर्वाधिक पुराणों में से एक तथा अपेक्षाकृत सुसंगत श्री विष्णु पुराण का आधार अधिक उपयुक्त है। सिरजध्वज के पुत्र भानुमान से लेकर कृति अन्तिम तक कुल 32 राजाओं के नाम विष्णु पुराण में दिए गए है।
इस अन्तिम राजा कृति के साथ ही जनक वंश की समाप्ति मानी गई है। सूर्यवंशी और इक्ष्वाकु से से के पुत्र निमी से निकला एक साखा है। राजा जनक के पुत्र उदावयु, पौत्र नंदिवर्धन पत्नी का नाम कलावती।
अकौर गांव में 52 शक्ति पीठ होने के कारण इनकी कथा को लेकर किवांदनी है। पुराणों के कथा अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव जव दक्ष के यज्ञ में अधजली शक्ति का शव जव कांधे पर रखकर तांडव करने लगे तो संपूर्ण सृष्टि पर विनाश की संकट छाने लगा। इसी संकट को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की मदद से तांडव कर रहे महादेव के कांधे पर रखे देवी शक्ति के 51 टुकड़ों में काट दिया जहां जहां शक्ति के अंग गिरे वे स्थान शक्ति पीठ बन गया लेकिन शती के शव को कांधे पर टिकाए रखने के लिए भगवान शिव ने उनके पीठ के जिस हिस्से को अपनी हथेली से पकड़ा हुआ था वहां से शव के 52 हिस्से को गिरा पाना भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र के लिए मुश्किल था। दूसरी तरफ तांडव करते हुए शिव लगातार आगे बढ़ रहे महादेव इस बात से अंजान थे कि उनके कंधे से सती के शरीर के अंग कटकर जहां जहां गीर चुका है और उनके हथेली के नीचे शती के शरीर के एक छोटा हिस्सा ही बचा है। अन्तिम हिस्से को कांधे से उतार कर जमीन पर रख दिए इस क्रम के शती के रीढ़ की हड्डी जमीन में धस गई जिसे भगवान भोले नाथ द्वारा किसी भी प्रकार"कोर"खोद कर नही उठाया गया इसी वजह से वह स्थान अ कोर बन गया जिसे मौजूदा समय में "अकौर"के नाम से जाना जाता है।
जिला से लगभग यह स्थान 23 और 27 किलोमीटर यह गांव धकजरी अकौर और बेनीपट्टी अकौर पथ विंदू पर यह गांव स्थित है।
इस अंकुरित पिंडी स्वरूप भगवती को यदि ध्यान (आख्यान) से देखा जाए तो पता चलता है कि उसमें ॐ की आकृति साफ झलकती है।
ऐसा माना जाता है कि मां ॐकारेश्चरी का मुला धार पीठ होने के कारण ईसवी सन् के आरंभ से हजारों वर्ष पूर्व से ही यह स्थान देश दुनियां के प्रसिद्ध रहा है। वैसे इस विषय में कुछ पुरातत्व विभाग के शोध कर्ताओं के शोध से यह पता इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह अकौर वस्ती इस अंकुरित देवी के अंकुर फिर उसका पीठ होने के कारण ॐ कार और भगवान शिव के द्वारा शती के जमीन पर परे हिस्से को कोरने खोदने के कारण अंगकोर तथा कोरने में सफल न होने के कारण अकोर अर्थात जो कोरा नही गया के नाम से प्रसिद्ध पाता रहा। बाल्मीकिरामायण में अलर्क नामक राजा द्वारा धरती में दवा दिए जाने का वर्णन मिलता है जिसके आधार पर सम्राट विक्रमादित्य ने यह खजाना प्राप्त किया और इस स्थान का नाम अपने जीवन काल में"आकर"कर दिया था। राजा शिव सिंह के काल में एक घटना विशेष के कारण इस "अकर"घोषित कर दिए जाने की वजह से अंग्रेज़ो के समय उच्चारण दोषों की वजह से इस वस्ती का नाम अकौर होकर रह गया जैसा कि सन 1901 की सरकारी सर्वे खतीयान को देखने से यह स्पष्ट होता है।
हालांकि इतिहास कार जो भी कहे परन्तु स्थानीय निवासियों का कहना और धारणा यह है कि यह स्थल जनक राजाओं की मूल राजधानी का हिस्सा था और देवी ॐ कारेश्चरी जनक राजाओं की कुल देवी थी जो मां भगवती के 52 वें पीठ है।
वैसे यह कहना उचित होगा कि इस शक्ति पीठ का वर्णन कोलो के कुलानी तंत्र, तंत्र महार्णव, तंत्र सार, तंत्र माल, डामर तंत्र आदि के ग्रंथों के साथ साथ धर्म शास्त्र और अन्य धार्मिक पुस्तकों में साफ मिलते है।
इस वस्ती से वक्षराजा नदी होकर गुजरती है, वक्षराजा नदी कमला की एक छाड़न धारा है जो जय नगर से लगभग 19 किलोमीटर दूर उत्तर नेपाल में कमला के दाहिनी किनारे से निकलती है।
एक लोक मान्यता के अनुसार कमला को अविवाहित ब्रह्मण कन्या मानते है।
ऐसा माना जाता है कि भगवती सीता आज भी भगवती ॐ कारेश्वरी की दर्शन करने आती है।
अकौर में ऐसा माना जाता है कि अनमोल धरोहर है जो अभी तक लापरवाही का शिकार बनी हुई है। जिसे न तो भारतीय पूरातत्व विभाग और न राजकीय पुरातत्व निदेशालय ने ही कभी वैध खुदाई की प्रयत्न किया। जिसका परिणाम अवैध खुदाई से प्राप्त बहुत ही दुर्लभ एवं बहुत ही कीमती सामाग्री चोर और तस्कर के हत्थे जा रही है।
ऐश्वर्य देवी, आध्यात्मिक, भावनात्मक है इसलिए उसके आनन्द की अनुभूति उसी अनुपात से अधिक होती है। भुवन भर की आनन्दभूति का आनंद जिसमें भरा हो उसे भुवनेश्वरी कहते है।
इस अकौर गांव में अंकुरित पिंडी स्वरूप भगवती जो ॐकारेश्चरी , भुवनेश्वरी और अकौर भगवती के नाम से जानी जाती है। यह लोगों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है। यहां निष्ठा से आने वाले भक्तों की सभी मनोवांक्षित कामना पूर्ण होती है।
बांझन महिलाएं यदि यहां पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ आती है उसे माता आंचल भर देती है। दूर दूर से तंत्र सिद्धि प्राप्ति के लिए भी भक्त आते है।
दुर्गा पूजा में और अधिक हजारों की संख्या में दूर दूर से भक्त आते है। यहां बलि प्रदान की परम्परा भी सदियों से चली आ रही है।
आस्था एवं विश्वास के साथ निष्ठा पूर्वक जो मां को पुकारता है तो
मै यह अपने अनुभव से यह कह सकता हूं की इस दरबार से वो खाली नही जाता।
मां तो मां है मां की महिमा भी निराली है।
नोट- यह भगवती मेरे जन्म भूमि अकौर गांव की ग्राम देवी भी है।
पंकज झा शास्त्री