राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । आश्विन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाए जाने वाला पर्व मिथिला में कोजागरा के नाम से बहुत प्रसिद्ध है। इस बार कोजागरा 13 अक्टूबर 2019 को है।कई जगह इस पर्व को लक्ष्मी पूजा, शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग अपने घर आंगन को साफ सफाई करके शाम में घर के दुआर से लेकर अपने कुल देवी या कुल देवता के स्थान तक अरीपन (रंगोली) बनाते है। इसके बाद भगवती को लौटा के जल से घर में करते है। भगवती के स्थान के पास कलश रखकर मां लक्ष्मी स्वरूप की पूजा करते है। इसके बाद प्रसाद में अंकुरी, पान, मखान, केला, मिसरी तथा नारियल भोग लगाते है। इसके बाद प्रसाद प्रसाद बांटा जाता है इस कार्य को घर की मुख्य महिला करती है।
कोजागरा के अवसर पर नव विवाहित वर के ससुराल से कई प्रकार के कपड़ा, फल, मिठाई एवं अन्य प्रकार के सामान, खासकर मखान, पान निश्चित आते है। शाम को वर के दूल्हे के यहां दूल्हा को चुमाया जाता है जीजा और शाला या शाली के पच्चीसी खेल भी होता है। जो मिथिला में मनमोहक देखने को मिलता है। ब्राम्हण ,पंडित या अन्य श्रेष्ठ विद्वान द्वारा नव विवाहित दूल्हे को दूर्वाक्षत मंत्र से आशीर्वाद रूप में दिया जाता है।
इसके बाद पान मखान आस परोस एवं अन्य लोगों को पान, मखान बांटा जाता है या अपने सामर्थ अनुसार भोजन भी करवाते है।
ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा के रात में अमृत बरसता है अतः इस रात में मखान का खीर किसी नया मिट्टी के बर्तन या चांदी के बर्तन में में रख कर चंद्रमा को अर्घ देना चाहिए। इसके बाद खीर को बर्तन सहित खुले आकाश के नीचे रख देना चाहिए। खीर भरा बर्तन को साफ, पतला और सफेद कपड़ा से ढक दें ताकि कोई अन्य किरा मकोरा उसमे न परे। प्रातः सूर्योदय से पहले उस खीर को उठाकर प्रथम प्रसाद किसी कुआरी कन्या को दे चाहे अपने घर का सदस्य ही क्यों न हो। या किसी गाय को दें। इसके बाद घर के सभी सदस्य प्रसाद रूप में ग्रहण करे। इससे शरीर में नया साकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करेंगे और कई रोगों का प्रभाव कम होगा। पंकज झा शास्त्री
नोट- ज्योतिष, हस्तलिखित जन्म कुंडली, वास्तु, पूजा पाठ, महामृत्युंजय जाप एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए संपर्क कर सकते हैं।
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । आश्विन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाए जाने वाला पर्व मिथिला में कोजागरा के नाम से बहुत प्रसिद्ध है। इस बार कोजागरा 13 अक्टूबर 2019 को है।कई जगह इस पर्व को लक्ष्मी पूजा, शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग अपने घर आंगन को साफ सफाई करके शाम में घर के दुआर से लेकर अपने कुल देवी या कुल देवता के स्थान तक अरीपन (रंगोली) बनाते है। इसके बाद भगवती को लौटा के जल से घर में करते है। भगवती के स्थान के पास कलश रखकर मां लक्ष्मी स्वरूप की पूजा करते है। इसके बाद प्रसाद में अंकुरी, पान, मखान, केला, मिसरी तथा नारियल भोग लगाते है। इसके बाद प्रसाद प्रसाद बांटा जाता है इस कार्य को घर की मुख्य महिला करती है।
कोजागरा के अवसर पर नव विवाहित वर के ससुराल से कई प्रकार के कपड़ा, फल, मिठाई एवं अन्य प्रकार के सामान, खासकर मखान, पान निश्चित आते है। शाम को वर के दूल्हे के यहां दूल्हा को चुमाया जाता है जीजा और शाला या शाली के पच्चीसी खेल भी होता है। जो मिथिला में मनमोहक देखने को मिलता है। ब्राम्हण ,पंडित या अन्य श्रेष्ठ विद्वान द्वारा नव विवाहित दूल्हे को दूर्वाक्षत मंत्र से आशीर्वाद रूप में दिया जाता है।
इसके बाद पान मखान आस परोस एवं अन्य लोगों को पान, मखान बांटा जाता है या अपने सामर्थ अनुसार भोजन भी करवाते है।
ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा के रात में अमृत बरसता है अतः इस रात में मखान का खीर किसी नया मिट्टी के बर्तन या चांदी के बर्तन में में रख कर चंद्रमा को अर्घ देना चाहिए। इसके बाद खीर को बर्तन सहित खुले आकाश के नीचे रख देना चाहिए। खीर भरा बर्तन को साफ, पतला और सफेद कपड़ा से ढक दें ताकि कोई अन्य किरा मकोरा उसमे न परे। प्रातः सूर्योदय से पहले उस खीर को उठाकर प्रथम प्रसाद किसी कुआरी कन्या को दे चाहे अपने घर का सदस्य ही क्यों न हो। या किसी गाय को दें। इसके बाद घर के सभी सदस्य प्रसाद रूप में ग्रहण करे। इससे शरीर में नया साकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करेंगे और कई रोगों का प्रभाव कम होगा। पंकज झा शास्त्री
नोट- ज्योतिष, हस्तलिखित जन्म कुंडली, वास्तु, पूजा पाठ, महामृत्युंजय जाप एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए संपर्क कर सकते हैं।