राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) ।
तंत्र मंत्र के सिद्धि कर प्रकृति के उस शक्ति तक पहुंचना आज भी कलयुग में पहुंचना संभव है, जहां एक साधारण मात्र नहीं पहुंच सकता। हम यह कह सकते है कि तंत्र एक वैज्ञानिक साधना पद्धति है और इसमें इच्छित फल की प्राप्ति के लिए विविध प्रकार की साधनाएं सुव्यवस्थित ढंग से करनी पर है। इस प्रकार के साधनाओं में देवी देवताओं के रूप ,गुण, कर्मो आदि का चिंतन पटल, पद्धति, कवक्ष, सहस्त्रनाम तथा स्रोतों के द्वारा किया जाता है। इसी प्रकार तंत्र के निम्न पांच प्रमुख अंग कहे गए है।
1. पटल,2. पद्धति,3. कवक्ष,4. सहस्त्र नाम,5. स्त्रोत्र
इन सभी की अलग अलग विशेषताएं भी है।
उपर्युक्त पांच अंगों से परिपूर्ण शास्त्र को ही तंत्रशास्त्र कहा गया है। तंत्र साधना के द्वारा बहुत शीघ्र फल प्राप्त करना संभव है या फल प्रदान किया जा सकता है। योगिनी तंत्र में उल्लेख मिलता है कि जव कलियुग में पापाचार के बढ़ जाने से मात्र तांत्रिक प्रक्रिया ही लोगों की मनोकामनाएं पूरी करेगी। मत्स्य पुराण में तंत्र के संबंध में कहा गया है कि जैसे देवताओं में विष्णु, जलकुंडो में समुद्र सरिताओं में भागीरथी, पर्वतों में नागाधीराज हिमालय श्रेष्ठ है, उसी प्रकार शास्त्रों में तंत्र शास्त्र को श्रेष्ठ कहा गया है। तांत्रिक साधना करने वाले में साहास होना बहुत ही आवश्यक है, साथ ही उस इष्ट पर अडिग विश्वास भी होना चाहिए, जिसकी वह साधना कर रहा हो। यह ध्यान रहे कि साधक को रुचि के अनुसार तंत्र का कोई सूत्र हाथ लगे, तो सबसे पहले उस सिद्ध करना चाहिए। यदि उस सिद्ध करने में सफल हो गए तो स्वयं में प्रयाप्त आत्म शक्ति का अनुभव करने लगेंगे और स्वयं पर अपने अंदर की अपार शक्तियों पर विश्वास उत्तपन्न होगा। आत्म शक्ति जागृत होगी। तंत्र साधना करने वाले साधक उस शक्ति के बारे में किसी को भी न बताए यहां तक कि अपनी पत्त्नी या प्रेमिका को भी नहीं। यह भी ध्यान देना अति आवश्यक है कि तंत्र शक्ति का प्रयोग निः स्वार्थ भाव से लोगों के हित में होना चाहिए। इस शक्ति का प्रयोग अपने दुश्मन के अहित में भी नहीं करनी चाहिए। यह शक्ति सिर्फ और सिर्फ हितकारी होता है। मुझे यह लगता है कि अब तंत्र शक्ति को प्राप्त करने वाले लोग नही के बराबर है। वैसे मुझे लगता है कि अभी इस विषय के आड़ में पाखंडियों की संख्या बढ़ी है जो लोगों में सिर्फ अंधविश्वास फेला रहे है। तंत्र शक्ति का यथार्थ धनी कभी भी अपना विज्ञापन प्रदर्शन नही करता, अपनी शक्ति का ढोल नही पीटता, धन का लालची नही होता, कभी धन के लालच में दूसरे का बुरा नही करता।
तंत्र, मंत्र साधना के लिए नवरात्र के समय अति महत्व पूर्ण होता है खासकर अष्टमी की रात्रि जव निशित काल में मां भगवती कालरात्रि की पूजा होती है। इस समय माता अपने साधकों पर जल्दी प्रसन्न होती है।
जय माता दी।
पंकज झा शास्त्री