राजेश कुमार वर्मा/अभिनव कुमार चौधरी
समस्तीपुर, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । एक शिक्षक चाहे वह नियमित हो या नियोजित अपने छात्र-छात्राओं को बेहतर शिक्षा के साथ उनके उज्जवल भविष्य के लिए सदैव दृढ़ संकल्पित होता है। वास्तव में शिक्षा जगत के साथ साथ अन्य अधिकांश क्षेत्रों में शिक्षक (गुरु) का स्थान सर्वोपरि है क्योंकि एक स्वस्थ समाज के साथ राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका अग्रणी है। तभी तो हम कह सकते हैं कि स्वस्थ समाज ही स्वस्थ और स्वच्छ भारत का निर्माण संभव है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा "राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार नियोजित शिक्षकों को नहीं" के संदर्भ में जारी पत्र का मैं सिद्धार्थ शंकर विरोध प्रकट करता हूँ साथ ही सरकार की इस नीति से नियोजित शिक्षकों का अपमान हुआ है,जो कहीं से उचित नहीं है। सरकार हम नियोजितों को अपनी दमनकारी नीति का शिकार हमेशा से बनाती आ रही है। अगर सरकार इस प्रकार की हर नीति में धनात्मक सोच रखते हुए नियोजितों को उचित सम्मान दे तो हम एक बेहतर समाज निर्माण की स्थापना कर सकते हैं । आज हम शिक्षक अगर नियोजित रूपी कलंक से कलंकित हैं तो इसके लिए भी सिर्फ और सिर्फ सरकार ही दोषी है। जहां एक ओर शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता की संज्ञा दी जाती है वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा जारी पत्र से शिक्षक राष्ट्र निर्माता सिर्फ एक अतिशयोक्ति बनकर रह गई है। राज्य द्वारा संपोषित विद्यालय में केवल आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्र /छात्रा हीं अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए शिक्षा ग्रहण करने आते हैं ।वहां के शिक्षक हीं जब सरकार के नजर में योग्य नही हैं तो इस तरह की शिक्षा व्यवस्था खुद सरकार को कठघरे में खड़ा करने हेतु पर्याप्त है ।मैं केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार को ये बताना चाहता हूँ जिस शिक्षण कार्य में नियमित शिक्षकों की भागीदारी रहती है तो फिर उसी शिक्षण कार्य को और आधुनिक एवं गुणवत्तापूर्ण बनाने में हम नियोजित शिक्षक अव्वल हैं.....फिर हमें इस राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से नहीं अपितु अन्य अधिकार से भी वंचित क्यों किया जा रहा है, यह एक यक्ष प्रश्न है ? जब हमारे कंधो पर समाज में हाशिये पर रखे गए वर्ग को मुख्यधारा में लाने की जिम्मेदारी दी गयी है तो हम अयोग्य कैसे ? हम सरकार के नियोजित शिक्षकों के प्रति भेदभाव पूर्ण एवं विरोधी गतिविधि का विरोध करते हुए ये कहना चाहते हैं कि सरकार अपनी दंभ और हम नियोजितों के प्रति नकारात्मक सोच छोड़ नियोजितों को समाज और सरकार से हम नियोजित शिक्षकों को उचित एवं मौलिक सम्मान देना न भूले। अगर ऎसा होता है तो सरकार इसके लिए स्वयं जिम्मेवार है और यह भी एक प्रकार का राष्ट्र का ही अपमान है। अतः हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार हीं नही अन्य अधिकार भी शिक्षकों का मौलिक अधिकार है इससे हम नियोजितों को वंचित करना कहीं से उचित नहीं है ।