रोहित कुमार सोनू
छठ को लोक आस्था का पर्व कहा जाता है. इसमें छठी मैया और सूर्य की पूजा की जाती है. दिवाली के 6 दिन बाद शुरू होने वाले छठ पूजा का विशेष स्थान है. ये त्योहार चार दिन तक चलता है. ये त्योहार नहाय खाय से शुरू होकर भोर के अर्घ्य पर संपन्न होगा. इस पर्व में उगते सूर्य के साथ- साथ डूबते सूर्य की भी आराधना की जाती है. ये पर्व अनेक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संदेशों को खुद में समेटे हुए है. ये ऐसा पर्व है जिसे महापर्व की संज्ञा दी गई है. इस पर्व को मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है.एग्जाम या प्रफेशनल जिम्मेदारी की वजह से मिथिलांचल से जुड़े कई युवा छठ त्योहार मनाने घर नहीं जा सके। साथ ही कई युवा अब दिल्ली में ही छठ का त्योहार मनाते हैं। हालांकि इन युवाओं को आज भी मिथिला में मनाए गए छठ की याद सताती है।
छठ पूजा को याद करने का एक आंचल बताती हैं कि उनका परिवार कई साल से दिल्ली में ही छठ मनाता है। उनका कहना है कि छठ का त्योहार बिहार से जुड़े अपने रिश्तों को याद करने का मौका देता है। उनके मम्मी-पापा बिहार में मनाए गए छठ की यादों को उनके साथ शेयर करते हैं और बताते हैं कि मिथिलांचल के लोगों की इस त्योहार के प्रति कितनी आस्था है। आस्था के बारे में बताते हुए आंचल कहती है कि उन्होंने सुना है कि बिहार में कई लोग सैंकड़ों किमी दूर तक नंगे पैर छठ में डाला उठाकर लाते हैं। उन्होंने दिल्ली में ऐसा करते हुए किसी को नहीं देखा। घर में छठ की तैयारी शुरू हो गई है। हम भीड़ की वजह से घाट नहीं जाते इसलिए छत पर ही छोटा सा तालाब मना पूजा करते हैं। पूजा करने वाली जगह को भी सजा दिया गया है। यहां भी हम वही तैयारियां करते हैं जैसे मिथिलांचल में की जाती है।
घर नहीं जा पाए रमण पाठक ने बताया कि वह दुर्गा पूजा में गए थे गांव लेकिन इस बार नहीं जा रहे हैं रमण पाठक ने बताया कि पुपरी (पूरा गांव) स्थित अपने घर पर छठ मनाते थे। उन्हें छठ के दौरान बनने वाला ठेकुआ काफी पसंद है। पहले तो वह छठ के दौरान सुबह का अर्घ्य देते ही ठेकुए और गन्ना खाने लगते थे, हालांकि इस बार अपने रिश्तेदारों के वापस लौटने का इंतजार करना होगा। उन्होंने बताया कि अब उन्हें ठेकुए के लिए सप्ताहभर से ज्यादा इंतजार करना होगा।
जामिया मिलिया इस्लामिया के अनामिका बताती हैं कि मैं बड़ी मम्मी के यहां छठ मनाने जाती हूं। इस त्योहार पर हम बच्चे जमकर मस्ती करते हैं, खाने के मामले में इस त्योहार की बात ही अलग है। खरना पर बनने वाली खीर मुझे काफी पसंद है। मेरे रिश्तेदार छठ पर बिहार को काफी मिस करते हैं। काश मैं भी कभी वहां का छठ देख पाऊं।
वहीं आईटी कंपनी में काम करने वाले आकाश कुमार निरंजन ने बताया कि छठ पूजा बहुत याद आती है, मैं कहीं भी रहूं खासकर मुझे मेरा गांव बहुत याद आता है। गांव में नदी किनारे छठ का अर्घ्य मेरे जेहन में बसता है। वैसे तो अब छठ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में भी होने लगा है। काफी भीड़ होती है, देखकर अच्छा लगता है, लेकिन जो बात गांव के, बिहार के छठ की होती है, वो कहीं नहीं। अपने मिट्टी की खुशबू, अपने लोगों को बहुत मिस करता हूं।
छठ को लोक आस्था का पर्व कहा जाता है. इसमें छठी मैया और सूर्य की पूजा की जाती है. दिवाली के 6 दिन बाद शुरू होने वाले छठ पूजा का विशेष स्थान है. ये त्योहार चार दिन तक चलता है. ये त्योहार नहाय खाय से शुरू होकर भोर के अर्घ्य पर संपन्न होगा. इस पर्व में उगते सूर्य के साथ- साथ डूबते सूर्य की भी आराधना की जाती है. ये पर्व अनेक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संदेशों को खुद में समेटे हुए है. ये ऐसा पर्व है जिसे महापर्व की संज्ञा दी गई है. इस पर्व को मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है.एग्जाम या प्रफेशनल जिम्मेदारी की वजह से मिथिलांचल से जुड़े कई युवा छठ त्योहार मनाने घर नहीं जा सके। साथ ही कई युवा अब दिल्ली में ही छठ का त्योहार मनाते हैं। हालांकि इन युवाओं को आज भी मिथिला में मनाए गए छठ की याद सताती है।
घर की बात ही अलग है -
अंकुर विहार में रहने वाले अंकित झा ने कहा कि इंजीनियर की तैयारियों की वजह से वह इस बार छठ पर घर नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में भी अब छठ त्योहार भव्य तरीके से मनाया जाने लगा है, लेकिन त्योहार पर अपनों का साथ न मिले तो वह बात नहीं आ पाती है। त्योहार के रस्म तो कहीं रहकर भी पूरे हो जाते हैं, लेकिन घर वाली फिलिंग नहीं आ पाती है।छठ पूजा को याद करने का एक आंचल बताती हैं कि उनका परिवार कई साल से दिल्ली में ही छठ मनाता है। उनका कहना है कि छठ का त्योहार बिहार से जुड़े अपने रिश्तों को याद करने का मौका देता है। उनके मम्मी-पापा बिहार में मनाए गए छठ की यादों को उनके साथ शेयर करते हैं और बताते हैं कि मिथिलांचल के लोगों की इस त्योहार के प्रति कितनी आस्था है। आस्था के बारे में बताते हुए आंचल कहती है कि उन्होंने सुना है कि बिहार में कई लोग सैंकड़ों किमी दूर तक नंगे पैर छठ में डाला उठाकर लाते हैं। उन्होंने दिल्ली में ऐसा करते हुए किसी को नहीं देखा। घर में छठ की तैयारी शुरू हो गई है। हम भीड़ की वजह से घाट नहीं जाते इसलिए छत पर ही छोटा सा तालाब मना पूजा करते हैं। पूजा करने वाली जगह को भी सजा दिया गया है। यहां भी हम वही तैयारियां करते हैं जैसे मिथिलांचल में की जाती है।
ठेकुए के लिए करना होगा इंतजार-
घर नहीं जा पाए रमण पाठक ने बताया कि वह दुर्गा पूजा में गए थे गांव लेकिन इस बार नहीं जा रहे हैं रमण पाठक ने बताया कि पुपरी (पूरा गांव) स्थित अपने घर पर छठ मनाते थे। उन्हें छठ के दौरान बनने वाला ठेकुआ काफी पसंद है। पहले तो वह छठ के दौरान सुबह का अर्घ्य देते ही ठेकुए और गन्ना खाने लगते थे, हालांकि इस बार अपने रिश्तेदारों के वापस लौटने का इंतजार करना होगा। उन्होंने बताया कि अब उन्हें ठेकुए के लिए सप्ताहभर से ज्यादा इंतजार करना होगा।
जामिया मिलिया इस्लामिया के अनामिका बताती हैं कि मैं बड़ी मम्मी के यहां छठ मनाने जाती हूं। इस त्योहार पर हम बच्चे जमकर मस्ती करते हैं, खाने के मामले में इस त्योहार की बात ही अलग है। खरना पर बनने वाली खीर मुझे काफी पसंद है। मेरे रिश्तेदार छठ पर बिहार को काफी मिस करते हैं। काश मैं भी कभी वहां का छठ देख पाऊं।
वहीं आईटी कंपनी में काम करने वाले आकाश कुमार निरंजन ने बताया कि छठ पूजा बहुत याद आती है, मैं कहीं भी रहूं खासकर मुझे मेरा गांव बहुत याद आता है। गांव में नदी किनारे छठ का अर्घ्य मेरे जेहन में बसता है। वैसे तो अब छठ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में भी होने लगा है। काफी भीड़ होती है, देखकर अच्छा लगता है, लेकिन जो बात गांव के, बिहार के छठ की होती है, वो कहीं नहीं। अपने मिट्टी की खुशबू, अपने लोगों को बहुत मिस करता हूं।