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देश भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा

 राजेश कुमार वर्मा/पी०सी० गुप्ता

 नई दिल्ली,भारत ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसका चार स्तंभ है कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और पत्रकारिता जो आज भ्रष्टाचार के दलदल में इस कदर डूब गई है कि आम जनता कराह उठी है ।वहीं दूसरी ओर सरकार जो देशवासियों को सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया था । वह सिर्फ कल्पना बनकर रह गया है । देश के लोगों को महंगाई भ्रष्टाचार और बेरोजगारी दूर करने का किया गया वादा टांय टांय फिस्स होकर रह गया । देश में महंगाई बढ़ती ही जा रही है । इसके संबंध में जब सरकार से प्रश्न किया गया तो उनका जवाब है कि उनके पास कोई जादुई डंडा नहीं है जिसे घुमाकर उसे वे दूर कर दें । भ्रष्टाचार के मकड़जाल में सरकारी तंत्र या राज्यतंत्र, पत्रकार तंत्र आकंठ डुब चुका है । आज कोई भी सरकारी विभाग इससे अछूता नहीं है । नाजायज कार्य ही नहीं जायज कार्यों के लिए भी संबंधित अधिकारियों एंव कर्मचारियों की मुठ्ठी गर्म करने पर ही किसी प्रकार की कार्य हो पाता है अन्यथा मामला जस का तस अटका पड़ा रहता है । देश में बेरोजगारों की संख्या दिन प्रतिदिन सरकार के नीति के कारण बढ़ती ही जा रही हैं।दूसरी ओर जीएसटी के बढ़ोत्तरी के कारण अनेकों ऑटोमोबाइल कम्पनियां बंद हो गई हैं और जो शेष बचे हुऐ हैं बंद होने के कगार पर खड़े है । यहीं स्थिति टेक्सटाइल एंव अन्य कम्पनियों का है । इसके कारण लाखों कामगार मजदूर बेरोजगार हो गए हैं । ऐसी स्थिति में कौन विदेशी कम्पनी भारत में उधोग लगाना चाहेगा और अपनी पूंजी निवेश करेगा ..? पुलिस प्रशासन जनता की रक्षा, प्रशासन के कार्य में सहयोग एंव न्यायपालिका के आदेश के पालन हेतु विधमान है और यहीं उसका मुख्य कर्तव्य हैं परन्तु क्या वह जनता का नि:स्वार्थ भावना से रक्षा करती हैं और पीड़ितों को राहत पहुंचाती हैं ..?? इसका स्पष्ट उत्तर है नहीं..?? जिस जनता के द्वारा दिऐ गए राजस्व ( टैक्स ) की राशि से ही उन्हें वेतन मिलता है और वे इससे ही निर्दयतापूर्ण व्यवहार करते है । किसी का रूपया कोई चुरा लिया या हड़प लिया और वह पीड़ित व्यक्ति यदि थाने में आवेदन देकर दोषी पर कार्रवाई करने की गुहार लगाते हैं तो उससे वहां वहां प्रश्न किया जाता है कि वह कितना खर्च करेगा । यदि वे पुलिस प्रशासन की मुठ्ठी गर्म करने में सक्षम हो जाते है तो ही पुलिस नामजद व्यक्ति के यहां पहुंचती है । वह भी इसलिए कि उससे रकम वसूल किया जा सके। विपक्षी से मुठ्ठी गर्म होने के बाद पुलिस प्रशासन मामले को ठंडे बस्ता में डालकर पीड़ित परिवार या व्यक्ति से झूठा आश्वासन देते रहते हैं । यह भी देखा गया है कि चोरी गई मोटी रकम को पुलिस तो चोर से वसूल लेती हैं परन्तु जिसका रकम चोरी हुआ है उसके हाथ कुछ नहीं आता । किरायेदार यदि मकान का किराया नहीं देता है और मकान मालिक उसका सामान कमरा से बाहर निकाल देता है तब किरायेदार द्वारा पुलिस को मुठ्ठी गर्मा दिऐ जाने के बाद मामला रफा दफा होता है अन्यथा प्राथमिकी दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया जाता है। जिससे ऐसा लगता है कि देश भ्रष्टाचार के दलदल में फंसकर रह गया है। 

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