राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) ।
नवरात्र में कुवारी कन्याओं का भोजन कराने और माता के आंचल भरने का विशेष महत्व माना गया है। ऐसा माना जाता है कुवारी कन्या को भोजन कराने से माता अधिक जल्दी प्रसन्न होती है। अष्टमी और नवमी को विशेष कर कन्या भोजन कराना चाहिए। यदि संभव हो तो नवरात्र में सभी दिन जरूर भोजन कराए। कन्या की उम्र दो वर्ष से ऊपर और दश वर्ष से कम होना चाहिए। कन्या भगवती के है स्वरूप माना गया है। नवरात्र में माता के आंचल भरने का भी महत्व है। माता के आंचल में सदा ममता होता है और जिसके ऊपर मां की आंचल हो उसका कोई कुछ नहीं विगार सकता। दुनियां में सबसे सुरक्षित स्थान माता का आंचल ही होता है। इस आंचल में सब कुछ पूर्ण है। इसलिए सुहागिन स्त्री माता के आंचल की तरह ही अपनी आंचल भी भरा पूरा रखना चाहती है और माता सब कुछ समर्पित कर देती है जैसे आदि शक्ति जगदम्बा सदा सुहागन है इसलिए सोलह सिंगार अर्पण करके माता से सोलह सिंगार की रक्षा हेतु और अपनी गोद भरा रखने हेतु आशीर्वाद प्राप्त करती है। मां की ममता अनमोल है इसका मोल कही नहीं। शास्त्रों में भले ही लक्ष्मी को विष्णु के साथ संयोग बताया है लेकिन वास्तव में शिव ने भगवती दुर्गा के अष्टम स्वरूप में महा गौरी के साथ संयोग किया। नवरात्रि की अष्टमी महा लक्ष्मी साधना के लिए विशेष दिवस है जव शिव का शक्ति के सांसारिक स्वरूप लक्ष्मी रूपी महा गौरी के साथ संयोग हुआ था। जहां जीवन में लक्ष्मी है वहां सारी सक्तियां अपने आप में सरल हो जाती है यही कारण है कि माता की आंचल भरा जाता है।पंकज झा शास्त्री
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) ।
नवरात्र में कुवारी कन्याओं का भोजन कराने और माता के आंचल भरने का विशेष महत्व माना गया है। ऐसा माना जाता है कुवारी कन्या को भोजन कराने से माता अधिक जल्दी प्रसन्न होती है। अष्टमी और नवमी को विशेष कर कन्या भोजन कराना चाहिए। यदि संभव हो तो नवरात्र में सभी दिन जरूर भोजन कराए। कन्या की उम्र दो वर्ष से ऊपर और दश वर्ष से कम होना चाहिए। कन्या भगवती के है स्वरूप माना गया है। नवरात्र में माता के आंचल भरने का भी महत्व है। माता के आंचल में सदा ममता होता है और जिसके ऊपर मां की आंचल हो उसका कोई कुछ नहीं विगार सकता। दुनियां में सबसे सुरक्षित स्थान माता का आंचल ही होता है। इस आंचल में सब कुछ पूर्ण है। इसलिए सुहागिन स्त्री माता के आंचल की तरह ही अपनी आंचल भी भरा पूरा रखना चाहती है और माता सब कुछ समर्पित कर देती है जैसे आदि शक्ति जगदम्बा सदा सुहागन है इसलिए सोलह सिंगार अर्पण करके माता से सोलह सिंगार की रक्षा हेतु और अपनी गोद भरा रखने हेतु आशीर्वाद प्राप्त करती है। मां की ममता अनमोल है इसका मोल कही नहीं। शास्त्रों में भले ही लक्ष्मी को विष्णु के साथ संयोग बताया है लेकिन वास्तव में शिव ने भगवती दुर्गा के अष्टम स्वरूप में महा गौरी के साथ संयोग किया। नवरात्रि की अष्टमी महा लक्ष्मी साधना के लिए विशेष दिवस है जव शिव का शक्ति के सांसारिक स्वरूप लक्ष्मी रूपी महा गौरी के साथ संयोग हुआ था। जहां जीवन में लक्ष्मी है वहां सारी सक्तियां अपने आप में सरल हो जाती है यही कारण है कि माता की आंचल भरा जाता है।पंकज झा शास्त्री