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जहां जहां मन भागे, वहां वहां हम अपने इष्ट लक्ष्य को देखे : ज्योतिष पंकज झा शास्त्री

 राजेश कुमार वर्मा

दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज ) । ध्यान योग में मन की चंचलता स्वाभाविक है। मन का निग्रह करना उतना आवश्यक नही, जितना उसे वश में करना अर्थात चित शुद्धि। इससे तात्पर्य है, मन में विषयों का राग न रहना। इतना कर लिया तो प्रयत्न करने पर ध्यान सिद्ध हो जाएगा। वस्तुतः मन की चंचलता ध्यान में इतनी बाधक नही है। इसके विपरित सबसे भगबद्दबुद्धि न होना और राग द्वेष का होना बाधक है। चित सुद्धी होते ही राग-द्वेष चले जाते है, मन प्रकृति में निरुद्ध होने लगता है। वास्तविक में प्राकृतिक के सकारात्मक प्रभाव निश्चित दिखाई देने लगता है। जब ईश्वरीय शक्ति अभ्यास की चर्चा करते है तो उसका आशय है- जहां जहां मन भागे, वहां वहां हम अपने इष्ट लक्ष्य को देखे। वह इष्ट हमारा आदर्शों का समुच्य शक्ति है।
अभ्यास के साथ श्रद्धा विश्वास, निरंतरता एवं नियमितता ये चार चीजें जरूरी है। कभी ध्यान लगाया कभी नही ऐसा उचित नही, रोजाना समय प्रकृति के उस स्वरूप में यदि ध्यान लगाया जाय, नियत चिंतन-प्रवाह में मन को नहलाया जाय, एवं यह क्रम कभी टूटने न पाए। प्रयास यही हो कि मन संसार से हटकर आदि शक्ति जगदम्बा में लगे दूसरा कुछ भी चिंतन आ जाय तो उसकी उपेक्षा कर दें।
जगदम्बा को सौंदर्य का समुच्य मानकर उनके संपूर्ण अंगों का उनकी विशेषताओं और गुणों का और उनकी लीलाओं का सदैव स्मरण करनी चाहिए।
आज मां जगदम्बा के शष्टम स्वरूप की पूजा है।
नवरात्र में जहां भी माता के चल मूर्ति स्वरूप स्थापित है वहां आज बेल नौती है और कल 5 अक्टूबर शनिवार को पत्रिका प्रवेश के साथ माता के पट दर्शन के लिए खुल जाएंगे। पंकज झा शास्त्री 

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