राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । शास्त्रों की माने तो यह मानना उचित होगा कि यदि स्त्री के हाथों में भाग्य रेखा का उदय चन्द्र पर्वत से हुआ हो एवं वह स्पष्ट रूप से आगे बढ़ती हुई शनि के पर्वत पर चली गई हो तो ऐसी स्त्री विवाह के बाद अपने पति के अधीन होती है। यदि दांए हाथ में भी ऐसी रेखा हो तो उनको उन्नति तथा भाग्योदय में सहायक निश्चित प्राप्त होती है। स्त्री के हाथ में भाग्य रेखा चन्द्र पर्वत से उदित होकर गुरु पर्वत पर गई हो ऐसी स्त्री धनी पुरुष की पत्नी होती है और उसे, यश एवं विदेश गमन आदि के लाभ प्राप्त होते है। विवाह रेखा में से एक शाखा हृदय रेखा की ओर लटकी हुई हो परन्तु हृदय रेखा से मिली न हो तो यह मान लेना उचित होगा कि ऐसी स्त्री का पति शराबी होता है साथ ही वह जुआरी भी हो सकता है। और यदि विवाह रेखा स्पष्ट तथा सुंदर हो, साथ ही चन्द्र क्षेत्र से अाई हुई कोई प्रभाव रेखा भाग्य रेखा में आकर मिल जाय तो उस स्त्री का विवाह किसी धनी कुल में होता है उसे अपने संबंधियों के आतिरिक्त अन्य व्यक्ति के सहयोग से भाग्य उदय होता है। विवाह रेखा में से पतली पतली शाखाएं निकलकर हृदय रेखा की ओर गई हो तो स्त्री के पति का स्वस्थ खराब होने के कारण दाम्पत्य सुख में बाधा आने की संभावना अधिक होती है। हृदय रेखा श्रृंखलाकार होकर बीच में शनि क्षेत्र की ओर झुकी हो तो इस तरह के स्त्री को पुरूषों की परवाह नही होती और उहे पति से अधिक झगड़ा करती रहती है।
पंकज झा शास्त्री