राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय १८ अक्टूबर २०१९ ) ।गवहा संक्रांति यह पर्व कार्तिक मास तुला राशि संक्रांति को मनाया जाता है। इस दिन उदय से पूर्व अपने कुल देवी ,देवता को घर किया जाता है। संक्रांति दिन सूर्योदय उपरांत आंगन में तीन अंगुली से एक कतार में पांच -पांच गोल अरिपन दिया जाता है उस पर सिंदूर लगा कर फिर कुंवारी कन्या जो १० वर्ष से कम आयु की हो नव वस्त्र या पीला रंग के वस्त्र पहन कर पूर्व मुख करके गोबर की चिप(जलावन) बनाती है उस पर सिंदूर, चावल का पिठार लगाकर कुम्हर (कूष्माण्डा) फूल चढ़ाते है इसके बाद गौरी माता की पूजा करके विशर्जन करती है, गोबर के चिपरी को नवान्न दिन अग्नि स्थापन कार्य में लगाती है।
कुमारी कन्या से गोवर के चिपरी बनवाने का उद्ध्ष्य आगे जीवन में गृहस्ती में जलावन के अभाव में, यदि चीपरी भी बनाने परे, अपने से श्रेष्ठ के सुविधा हेतु कार्य करना परे तो भी कष्ट का अनुभव न हो। ईश्वर हर दुख में संयम के साथ जीवन जीने की शक्ति प्रदान करे। वैसे आधुनिक समय में कुछ त्योहारों का भौतिक स्वरूप में बदलाव आया है तो कुछ त्योहार हमारे संस्कार, संस्कृति एवं परंपराओं से दूर होने के कारण विलुप्त होती दिख रही है।
पंकज झा शास्त्री