संवाद
मिथिलांचल के लोग अभी भी अपने लड़कों की शादी अपने इलाके में ही करना चाहते हैं.क्योंकि कोजगरा ऐसा अनोखा पर्व है जो सिर्फ मिथिलांचल में ही मनाया जाता है.इसलिए कोजगरा के अवसर पर भार आए {ससुराल से भेजी गई सामग्री} लोग आयें, नए कुटुंब को जाने की उन्होंने कैसे परिवार से सम्बन्ध जोड़ा है . कोजागरी पूर्णिमा के दिन नवविवाहित लड़कों की ससुराल से ,वर एवं उसके समस्त परिवार वालों के लिए कपड़ा भेजा जाता है.वर के लिए तो जूते से ले कर छाता तक दिया जाता है.बांस की खपचियों से बने,एक बड़े से डाले को खूब सजा कर उस पर तरह-तरहकी मिठाइयों से भर कर लडके वालों के घर भेजा जाता है.कभी –कभी तो डाला इतना भारी और बड़ा होता है की उसे दस कहार मिल के उठाते हैं .दरअसल यह लड़कीवालों के वैभव-प्रदर्शन का अवसर होता है .डाले को सुपारी के पेड़,जनेऊ से बने आकर्षक डिजाइन .जिसमे जनेऊ की बनावट देखी जाती है जितना महीन जनेऊ का धागा होता है उसकी प्रशंसा की जाती है.परिवार की सुरुचि-सम्पनता,देखी जाती है.रात में लडके को नए वस्त्र धारण करवा कर ,काजल ,तिलक लगा कर सर पर पाग डाल कर ,घर के आंगन में उसी डाले से लडके को घर की महिलाएं चुमाती हैं.इस अवसर पर गए जाने वाले लोक गीतों से घर गूंज उठता है .फिर गांव समाज के लोगों में पान -मखान बांटा जाता है .पान –मखान मिथिला की सांस्कतिक पहचान है. दलानो पर कौडियों से चौपड़ खेला जाता है.उस समय अगर ससुराल के पाहुन हों तो हंसी –मजाक का दिलचस्प दौर चलता है.लोग खूब मजे लेते हैं .उसके बाद भार {ससुराल से भेजी गई मिठाई ,फल दही इत्यादि }.में आए खाद्य पदार्थों से गांव के लोगों को भोज दिया जाता है.परोसे गए व्यंजनों के अनुरूप लोग लड़की पक्ष का गुणगान करते जाते हैं
मिथिलांचल के लोग अभी भी अपने लड़कों की शादी अपने इलाके में ही करना चाहते हैं.क्योंकि कोजगरा ऐसा अनोखा पर्व है जो सिर्फ मिथिलांचल में ही मनाया जाता है.इसलिए कोजगरा के अवसर पर भार आए {ससुराल से भेजी गई सामग्री} लोग आयें, नए कुटुंब को जाने की उन्होंने कैसे परिवार से सम्बन्ध जोड़ा है . कोजागरी पूर्णिमा के दिन नवविवाहित लड़कों की ससुराल से ,वर एवं उसके समस्त परिवार वालों के लिए कपड़ा भेजा जाता है.वर के लिए तो जूते से ले कर छाता तक दिया जाता है.बांस की खपचियों से बने,एक बड़े से डाले को खूब सजा कर उस पर तरह-तरहकी मिठाइयों से भर कर लडके वालों के घर भेजा जाता है.कभी –कभी तो डाला इतना भारी और बड़ा होता है की उसे दस कहार मिल के उठाते हैं .दरअसल यह लड़कीवालों के वैभव-प्रदर्शन का अवसर होता है .डाले को सुपारी के पेड़,जनेऊ से बने आकर्षक डिजाइन .जिसमे जनेऊ की बनावट देखी जाती है जितना महीन जनेऊ का धागा होता है उसकी प्रशंसा की जाती है.परिवार की सुरुचि-सम्पनता,देखी जाती है.रात में लडके को नए वस्त्र धारण करवा कर ,काजल ,तिलक लगा कर सर पर पाग डाल कर ,घर के आंगन में उसी डाले से लडके को घर की महिलाएं चुमाती हैं.इस अवसर पर गए जाने वाले लोक गीतों से घर गूंज उठता है .फिर गांव समाज के लोगों में पान -मखान बांटा जाता है .पान –मखान मिथिला की सांस्कतिक पहचान है. दलानो पर कौडियों से चौपड़ खेला जाता है.उस समय अगर ससुराल के पाहुन हों तो हंसी –मजाक का दिलचस्प दौर चलता है.लोग खूब मजे लेते हैं .उसके बाद भार {ससुराल से भेजी गई मिठाई ,फल दही इत्यादि }.में आए खाद्य पदार्थों से गांव के लोगों को भोज दिया जाता है.परोसे गए व्यंजनों के अनुरूप लोग लड़की पक्ष का गुणगान करते जाते हैं