राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । लोक संस्कृति का महा पर्व मिथिला का सूप्रसिद्ध त्योहार समा चकेबा का पर्व प्रारम्भ हो चुका है! जिस महिलाये अपने भाई के सुखी समृद्धी एवं दीर्घायु हेतु करती है! समा चकेबा के कई लोक गीतों से गाँव और सहर गुंजायमान है! इस त्योहार मे संध्या कालीन महिलाये ड़ाला मे समा चकेबा, बृंदावन, चुगला जो मिट्टी का बना होता है उसको लेकर खेलती है, खेलने के उपरांत डाला मे दुभी, धान रखकर रात मे खुले आकाश के नीचे ओस मे रखा जाता है! समा चकेबा का पर्व भाई दूज के दिन से ही प्रारम्भ होता है परंतु इसकी प्रसिद्ध छठ के खरना या परना के दिन से अधिक प्रसिद्ध है! समा चकेबा पवित्र पर्व का समापन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को होता है!
एक कथा के अनुसार एसा माना जाता है कि कृष्न के बेटी के नाम सामा और समा के भाई का नाम साम्ब था समा के पति का नाम चक्रबाक था! इनके एक नौकरानी थी जिनका नाम डीहुलि था! समा नित्य की तरह अपने फुलवारी मे घूमने जाती थी एक दिन नौकरानी डीहुलि कृष्न के पास आकर चुगलखोर कर दी!कि समा जब फुलवारी टहलने जाती है तो वह ऋषि के साथ मे रमण करती है! इस पर कृष्न आक्रोशित होकर अपने बेटी को श्राप दिए कि जा तू आज से चिरिया हो जा! समा तभी चिरिया बनकर वन मे उर गई!इधर समा के पति समा के वियोग मे अपने मन से चिरिया बन गए! इधर ऋषि भी पक्षी बन गए! उस समय सामा का भाई साम्ब कहीं अन्यत्र गया हुआ था, जब साम्ब को सब कुछ पता चला तो अधीर हो गए, इसके बाद साम्ब घोर तपस्या करने लगे जिससे कृष्ण के श्राप से अपनी बहन को मुक्त करा सके! साम्ब के तपस्या से कृष्ण प्रसन्न हुए पुनः फिर से समा और उनके पति तथा ऋषि को पहले के रूप मे आने का वरदान दिए!
देवउत्थान एकादशी को सामा के लिए कई तरह के सामाग्री बनाया जाता है! सामा खेलने की परम्परा मिथिला मे बहुत ही प्रसिद्ध और प्राचीन है! महिलाये संध्या काल सामा खेलते हुए बृंदाबन और चुगला को जलाती है! सामा के गीतों मे प्रसिद्ध गीत - डाला ल बहार भेली, बहिनों से.....!
गाम के अधिकारी हमर भैय्या....!