राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । आज जिस तरह से विकास की राजनीति को छोड़ कर जातिवाद की राजनीति हो रही है । यह आने वाले समय के लिए बहुत ही खतरा का संकेत है ।जिसे सम्भाल पाना देशवासियों के लिए कठिन हो जाएगा ।
एक तरफ जहां भेद भाव को दूर करने के लिए कहा जाता है तो दूसरी तरफ सिर्फ जाति भेद किया जा रहा है । अगर जाति भेद नहीं तो फिर जाति प्रमाण पत्र की क्या आवश्यकता है.? जाति संगठन की क्या आवश्यकता है..?
ब्राम्हृणों ने कभी भी किसी के साथ जाति भेद भाव नहीं किया। सिर्फ ब्राम्हणों के प्रति कुछ लोगों की मानसिकता में गलत धारणा है । ब्राम्हृण सदैव ज्ञान को ही प्राथमिकता दिया । अगर ब्राम्हृण जाति भेद भाव किया होता तो शायद आज बाबा साहब भीम राव अम्बेदकर जी संविधान के रचयिता नहीं होते ।
इस देश को एक जुट करने मे न जाने कितने ब्राम्हृण इज्जत और प्राण दोनों गवां चुके है ।
एक वह समय था जब मुगलों ने हिन्दुओं की धज्जियां उड़ाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी उस समय भी अधिकतर ब्राह्मण शिक्षित थे । जो अपना कई तरह के क्षति होते हुए भी हिन्दुओं को एकजुट करने मे सफल रहे । इसके बाद अंगेजी शासन का बुरा प्रभाव देखने को मिला जिसके बाद सभी धर्मों के हिन्दुस्तानी ने अंग्रेजी शासन का वहिष्कार किया और अंततः अंग्रेजी शासन को झुकना पड़ा । मुगल काल से लेकर अंग्रेजी शासन काल तक सबसे अधिक क्षति ब्राम्हणों का ही हुआ । क्योंकि मुगल और अंग्रेजों को य़ह पता था कि एक ब्राह्मण वर्ग ही सभी को एक जुट करने मे पूर्ण सक्षम है ।
आज भी कुछ लोगों के द्वारा ब्राह्मणों के प्रति गलत धारणाएं फैलाया जा रहा है ।
ब्राह्मण सदैव सभी का हित ही चाहा है ।
कहा जाता है जब विनाश का समय होता है तो विपरित बुद्धि निश्चित हो जाता हैं। कहावत है की तुलसी के पौधे के पास घास का जन्म हो जाने पर हम उस घास को तुलसी नहीं कह सकते ।
तुलसी का गुण तुलसी मे ही रहेगा और घास का गुण घास मे ही दिखाई देगा इसमे कोई संदेह नही ।