रोहित कुमार सोनू
(मिथिला हिन्दी न्यूज) आप हेडलाइन देख कर हेरान होंगे लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसे मेले जो अपने आप में अनोखा है जहां बिकता है दूल्हा ! जी हाँ , ये सुनकर आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा और आपको यकीन भी नहीं हो रहा होगा पर ये सच है । जैसा कि सभी जानते है कि भारत में कई प्रांत और कई पंरपराएं है और यहां की होने वाली शादियों की बात भी अद्भुत होती है। अगर पूरे देश की बात करें तो शादियों का रिवाज बिल्कुल अलग है। कहीं कुछ रिवाज है तो कहीं कुछ। कहीं दुल्हन ससुराल जाती है तो कहीं दूल्हा, कहीं शादी के लिए लड़की की खोज होती है तो कहीं लड़के की बोली लगती है। वैसे लड़के की बोली पर आपको बता दे कि कुछ जगह सच में दूल्हा बाजार लगता है जहां दूल्हों की बोली लगती है। मतलब कहने का कि यहां दूल्हा बिकता है।बिहार के मिथिलांचल यानी मधुबनी जिले में यहां दूल्हों की मंडी ऐसे लगती है । जैसे कोई सब्जी, फल या राशन मंडी होती है । इस मेले में हर साल बिकने के लिए दूल्हों की भरमार लगती है। इतना ही नहीं यहां खुले आम दूल्हों की बोली लगती है। यहां आनेवाले लोग अपने पसंद के दूल्हे को खरीदने के लिए बकायदा उसकी कीमत चुकाते हैं।
बता दे कि दूल्हों की इस मंडी को कहा जाता है सौराठ सभा यानी दूल्हों का मेला । लोग इसे सभागाछी के नाम से भी जानते हैं । मैथिल ब्राह्मणों के इस मेले में देश-विदेश से कन्याओं के पिता योग्य वर का चयन करके विवाह करते हैं । इतना ही नहीं यहां योग्यता के हिसाब से दूल्हों की सौदेबाजी भी होती है ।
इस मेले में दूल्हों की बोली लगाने के लिए लड़कियों के माता-पिता खुद आते हैं। दूल्हों के इस भीड़ में से वो अपनी बेटी के लिए एक योग्य दूल्हे को पसंद करते हैं।
फिर लड़की और लड़के के घरवाले दोनों पक्षों की पूरी जानकारी हांसिल करते हैं। सौदा पक्का हो जाने के बाद लड़का और लड़की की रज़ामंदी से रजिस्ट्रेशन कराया जाता है फिर दोनों की शादी कराई जाती है। 9 दिनों तक चलने वाले इस मेले में पंजिकारों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है । यहां जो संबंध तय होते हैं। उसे मान्यता पंजिकार ही देते हैं।
वही स्थानीय लोगों की मानें तो दूल्हों की खरीद-बिक्री करनेवाले इस मेले का आयोजन आज से नहीं किया जा रहा है बल्कि ये बहुत पुरानी परंपरा है जो सालों से चली आ रही है। यह मेला लगभग 700 साल पहले शुरू हुआ था। साल 1971 में यहां लगभग 1.5 लाख लोग विवाह के समंबंध में आए थे ।लेकिन वर्तमान में आने वालों की संख्या काफी कम बहरहाल दहेज प्रथा को रोकने के मकसद से शुरू किए गए दूल्हों के इस मेले की रौनक भले की कम होने लगी है लेकिन आज भी दूल्हों को खरीदने के लिए लोगों के इस मेले में आने का सिलसिला जारी है। आज भी इस मेले में दूल्हों की बोली लगती है। लोग अपनी पसंद के दूल्हे की कीमत चुकाकर उससे अपनी बेटी का ब्याह कराते हैं।हो गई है
(मिथिला हिन्दी न्यूज) आप हेडलाइन देख कर हेरान होंगे लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसे मेले जो अपने आप में अनोखा है जहां बिकता है दूल्हा ! जी हाँ , ये सुनकर आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा और आपको यकीन भी नहीं हो रहा होगा पर ये सच है । जैसा कि सभी जानते है कि भारत में कई प्रांत और कई पंरपराएं है और यहां की होने वाली शादियों की बात भी अद्भुत होती है। अगर पूरे देश की बात करें तो शादियों का रिवाज बिल्कुल अलग है। कहीं कुछ रिवाज है तो कहीं कुछ। कहीं दुल्हन ससुराल जाती है तो कहीं दूल्हा, कहीं शादी के लिए लड़की की खोज होती है तो कहीं लड़के की बोली लगती है। वैसे लड़के की बोली पर आपको बता दे कि कुछ जगह सच में दूल्हा बाजार लगता है जहां दूल्हों की बोली लगती है। मतलब कहने का कि यहां दूल्हा बिकता है।बिहार के मिथिलांचल यानी मधुबनी जिले में यहां दूल्हों की मंडी ऐसे लगती है । जैसे कोई सब्जी, फल या राशन मंडी होती है । इस मेले में हर साल बिकने के लिए दूल्हों की भरमार लगती है। इतना ही नहीं यहां खुले आम दूल्हों की बोली लगती है। यहां आनेवाले लोग अपने पसंद के दूल्हे को खरीदने के लिए बकायदा उसकी कीमत चुकाते हैं।
बता दे कि दूल्हों की इस मंडी को कहा जाता है सौराठ सभा यानी दूल्हों का मेला । लोग इसे सभागाछी के नाम से भी जानते हैं । मैथिल ब्राह्मणों के इस मेले में देश-विदेश से कन्याओं के पिता योग्य वर का चयन करके विवाह करते हैं । इतना ही नहीं यहां योग्यता के हिसाब से दूल्हों की सौदेबाजी भी होती है ।
इस मेले में दूल्हों की बोली लगाने के लिए लड़कियों के माता-पिता खुद आते हैं। दूल्हों के इस भीड़ में से वो अपनी बेटी के लिए एक योग्य दूल्हे को पसंद करते हैं।
फिर लड़की और लड़के के घरवाले दोनों पक्षों की पूरी जानकारी हांसिल करते हैं। सौदा पक्का हो जाने के बाद लड़का और लड़की की रज़ामंदी से रजिस्ट्रेशन कराया जाता है फिर दोनों की शादी कराई जाती है। 9 दिनों तक चलने वाले इस मेले में पंजिकारों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है । यहां जो संबंध तय होते हैं। उसे मान्यता पंजिकार ही देते हैं।
वही स्थानीय लोगों की मानें तो दूल्हों की खरीद-बिक्री करनेवाले इस मेले का आयोजन आज से नहीं किया जा रहा है बल्कि ये बहुत पुरानी परंपरा है जो सालों से चली आ रही है। यह मेला लगभग 700 साल पहले शुरू हुआ था। साल 1971 में यहां लगभग 1.5 लाख लोग विवाह के समंबंध में आए थे ।लेकिन वर्तमान में आने वालों की संख्या काफी कम बहरहाल दहेज प्रथा को रोकने के मकसद से शुरू किए गए दूल्हों के इस मेले की रौनक भले की कम होने लगी है लेकिन आज भी दूल्हों को खरीदने के लिए लोगों के इस मेले में आने का सिलसिला जारी है। आज भी इस मेले में दूल्हों की बोली लगती है। लोग अपनी पसंद के दूल्हे की कीमत चुकाकर उससे अपनी बेटी का ब्याह कराते हैं।हो गई है