रोहित कुमार सोनू
16 दिसंबर यह वो तारीख है जिसे देश नहीं भुला सकता है, 16 दिसम्बर को ही निर्भया के साथ ऐसी हैवानियत हुई थी जिससे पूरा देश कांप गया था, और इसी तारीख को यानी 16 दिसम्बर को तिहाड़ जेल में निर्भया के चारों गुनहगारों को फांसी देने की तैयारी चल रही है,आज हम आपको बता रहे है कि अजाद भारत में सबसे पहले फांसी किसको दिया गया है देश आजाद होने के 2 साल बाद पहली बार महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 1949 में फांसी दी गई,महात्मा गांधी को विश्व इतिहास के महानतम नेताओं में शुमार किया जाता है। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर अहिंसा और सत्याग्रह का संकल्प निभाया, लेकिन उन्हें आजादी की हवा में सांस लेना ज्यादा दिन नसीब न हुआ। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 30 जनवरी 1948 की शाम नाथू राम गोडसे ने अहिंसा के उस पुजारी के सीने में तीन गोलियां झोंक दीं।इस अपराध पर नाथूराम को फांसी की सजा सुनाई गई और वह 15 नवंबर 1959 का दिन था जब उसे फांसी पर लटका दिया गया। यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नाथू राम गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था, लेकिन फिर एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा। आज, 15 नवंबर के दिन महात्मा गांधी की जान लेने वाले नाथूराम गोडसे और इस अपराध की साजिश में उनका साथ देने वाले नारायण दत्तात्रेय आप्टे को फांसी पर लटकाया गया था।
16 दिसंबर यह वो तारीख है जिसे देश नहीं भुला सकता है, 16 दिसम्बर को ही निर्भया के साथ ऐसी हैवानियत हुई थी जिससे पूरा देश कांप गया था, और इसी तारीख को यानी 16 दिसम्बर को तिहाड़ जेल में निर्भया के चारों गुनहगारों को फांसी देने की तैयारी चल रही है,आज हम आपको बता रहे है कि अजाद भारत में सबसे पहले फांसी किसको दिया गया है देश आजाद होने के 2 साल बाद पहली बार महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 1949 में फांसी दी गई,महात्मा गांधी को विश्व इतिहास के महानतम नेताओं में शुमार किया जाता है। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर अहिंसा और सत्याग्रह का संकल्प निभाया, लेकिन उन्हें आजादी की हवा में सांस लेना ज्यादा दिन नसीब न हुआ। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 30 जनवरी 1948 की शाम नाथू राम गोडसे ने अहिंसा के उस पुजारी के सीने में तीन गोलियां झोंक दीं।इस अपराध पर नाथूराम को फांसी की सजा सुनाई गई और वह 15 नवंबर 1959 का दिन था जब उसे फांसी पर लटका दिया गया। यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नाथू राम गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था, लेकिन फिर एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा। आज, 15 नवंबर के दिन महात्मा गांधी की जान लेने वाले नाथूराम गोडसे और इस अपराध की साजिश में उनका साथ देने वाले नारायण दत्तात्रेय आप्टे को फांसी पर लटकाया गया था।