रेल बजट और आम बजट को एक साथ पेश करने की परंपरा शुरु की गई है।आपको बता दें अलग रेलवे बजट का चलन 1924 में ब्रिटिश शासन में शुरू हुआ था. वास्तव में रेलवे को एक अलग इकाई के तौर पर ट्रीट करने की वजह यह थी कि सरकार के राजस्व का बड़ा हिस्सा और सकल घरेलू उत्पाद रेलवे द्वारा की गयी कमाई पर निर्भर रहता था. उस समय रेलवे से प्राप्त आमदनी अनुपातिक रूप से बहुत अधिक थी.
रेलवे का बजट कुल केंद्रीय बजट के 80 फीसदी से अधिक होता था. इस साल के अंतरिम बजट में रेलवे के लिए 1,58,658 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जबकि साल 2018-19 के बजट में रेलवे की सेहत सुधारने के लिए 1,48,528 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया था.
नीति आयोग ने भी केंद्र सरकार को दशकों पुराने अलग रेल बजट के इस चलन को खत्म करने की सलाह दी थी. काफी विचार-विमर्श और अलग-अलग प्राधिकरण के साथ मंथन के बाद सरकार ने रेलवे बजट को आम बजट में मिलाने का फैसला किया.
अब देश की अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार और रेलवे के कामकाज में कमाई की हिस्सेदारी कम होने की वजह से यह फैसला किया गया. यूनियन बजट की तुलना में अब रेलवे बजट का हिस्सा बहुत कम है.