रोहित कुमार सोनू
ललित नारायण मिश्र भारतीय राजनीति के एक ऐसे कद्दावर नेता थे, जिन्हें लोग आज भी नहीं भूल पाये हैं. ललित नारायण मिश्र की छवि काफी साफ-सुथरी थी जिसके कारण वे कई लोगों की आंखों की किरकिरी बने हुए थे. 3 जनवरी 1975 में जब उनकी हत्या हुई तो पूरा देश हिल गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस हत्याकांड को विदेशी साजिश का हिस्सा बताया था, लेकिन यह गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पायी है कि आखिर क्यों रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या की गयी थी. आज इस मामले में दिल्ली की एक अदालत में सुनवायी हो रही है, संभव है कि इस हत्याकांड के ऊपर पड़ी धूल को हद तक साफ हो. परिचय ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत सरकार में रेल मंत्री रहे थे. उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्णा सिन्हा को है. उन्होंने मिश्र को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संसदीय सचिव बनवाया था. ललित नारायण मिश्र का जन्म 1922 में बिहार के सहरसा जिले में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम किया था. उनका विवाह कामेश्वरी देवी से हुआ था और उनकी छह संतान थी, जिसमें दो बेटियां और चार बेटे शामिल हैं. उनके पुत्र विजय कुमार राजनीति में भी आये. राजनीतिक जीवन ललित नारायण मिश्र कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे और वे तीन बार लोकसभा के सदस्य चुने गये थे. वे पहली, दूसरी और पांचवीं लोकसभा में चुनकर आये थे. इसके साथ ही वे राज्यसभा के भी सदस्य रहे थे. वे 1964 से 1966 और फिर 1966 से 1972 तक राज्यसभा के रहे. उन्होंने पार्टी और सरकार के कई पदों को सुशोभित किया था. वे 1957 से1960 तक योजना,श्रम और रोजगार विभाग के संसदीय सचिव रहे. फिर 1964-66 तक वे गृहमंत्रालय में उप मंत्री रहे. 1966-67 तक वे उपवित्त मंत्री रहे. 1970 से 1973 तक वे विदेश व्यापार मंत्री रहे. पांच फरवरी 1973 को उन्हें तत्काली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेल मंत्रालय सौंपा. विदेश व्यापार मंत्रालय का काम देखते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की क्षमता को पहचाना था और उन्हें विदेश व्यापार मंत्रालय में सलाहकार नियुक्त किया था. हत्या दो जनवरी 1975 को वे रेलमंत्री के रूप में बिहार दौरे पर थे और समस्तीपुर से मुजफ्फपुर तक ब्रॉडगेज लाइन(बड़ी लाइन)का उद्घाटन करने गये थे. वहां हुए बम विस्फोट में वे गंभीर रूप से घायल हो गये थे. उन्हें दानापुर के अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. उनके हत्या की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पायी है.
ललित नारायण मिश्र भारतीय राजनीति के एक ऐसे कद्दावर नेता थे, जिन्हें लोग आज भी नहीं भूल पाये हैं. ललित नारायण मिश्र की छवि काफी साफ-सुथरी थी जिसके कारण वे कई लोगों की आंखों की किरकिरी बने हुए थे. 3 जनवरी 1975 में जब उनकी हत्या हुई तो पूरा देश हिल गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस हत्याकांड को विदेशी साजिश का हिस्सा बताया था, लेकिन यह गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पायी है कि आखिर क्यों रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या की गयी थी. आज इस मामले में दिल्ली की एक अदालत में सुनवायी हो रही है, संभव है कि इस हत्याकांड के ऊपर पड़ी धूल को हद तक साफ हो. परिचय ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत सरकार में रेल मंत्री रहे थे. उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्णा सिन्हा को है. उन्होंने मिश्र को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संसदीय सचिव बनवाया था. ललित नारायण मिश्र का जन्म 1922 में बिहार के सहरसा जिले में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम किया था. उनका विवाह कामेश्वरी देवी से हुआ था और उनकी छह संतान थी, जिसमें दो बेटियां और चार बेटे शामिल हैं. उनके पुत्र विजय कुमार राजनीति में भी आये. राजनीतिक जीवन ललित नारायण मिश्र कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे और वे तीन बार लोकसभा के सदस्य चुने गये थे. वे पहली, दूसरी और पांचवीं लोकसभा में चुनकर आये थे. इसके साथ ही वे राज्यसभा के भी सदस्य रहे थे. वे 1964 से 1966 और फिर 1966 से 1972 तक राज्यसभा के रहे. उन्होंने पार्टी और सरकार के कई पदों को सुशोभित किया था. वे 1957 से1960 तक योजना,श्रम और रोजगार विभाग के संसदीय सचिव रहे. फिर 1964-66 तक वे गृहमंत्रालय में उप मंत्री रहे. 1966-67 तक वे उपवित्त मंत्री रहे. 1970 से 1973 तक वे विदेश व्यापार मंत्री रहे. पांच फरवरी 1973 को उन्हें तत्काली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेल मंत्रालय सौंपा. विदेश व्यापार मंत्रालय का काम देखते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की क्षमता को पहचाना था और उन्हें विदेश व्यापार मंत्रालय में सलाहकार नियुक्त किया था. हत्या दो जनवरी 1975 को वे रेलमंत्री के रूप में बिहार दौरे पर थे और समस्तीपुर से मुजफ्फपुर तक ब्रॉडगेज लाइन(बड़ी लाइन)का उद्घाटन करने गये थे. वहां हुए बम विस्फोट में वे गंभीर रूप से घायल हो गये थे. उन्हें दानापुर के अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. उनके हत्या की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पायी है.