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जागरूकता ने लिखी नि:स्वार्थ सेवा की कहानी, दाई से बनी संस्थागत प्रसव प्रेरक


• 30 वर्षों से घर पर ही प्रसव कराती थी, केयर इंडिया की टीम ने के किया प्रेरित।

• अब बिना किसी शुल्क के कर रही है काम।
• सामुदायिक मीटिंग से मिली प्रेरणा

• गांव में ‘पतरकी’ के नाम से चर्चित है सेम्पुलिया देवी

राजीव रंजन कुमार

छपरा/सीवान, ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । जिले में मकेर प्रखंड के हैजलपुर गांव निवासी सेम्पुलिया देवी ने निःस्वार्थ सेवा भाव से कार्य करते हुए नई मिसाल पेश की है । एक दौर था जब इस गाँव में संस्थागत प्रसव बेहद ही कम था । लेकिन अब इस गांव की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है. कभी दाई का काम करने वाली सेम्पुलिया देवी गृह प्रसव करावाने के नाम से प्रचलित थी. लेकिन अब तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है. 30 सालों तक गृह प्रसव कराने वाली सेम्पुलिया देवी सिर्फ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा ही नहीं दे रही बल्कि अब बिना किसी शुल्क के गर्भवती महिला को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र तक खुद लेकर जा भी रही है. इस बदलाव में स्वास्थ्य विभाग के साथ केयर इंडिया के पदाधिकारियों का भी अहम योगदान रहा है।
ऐसे शुरू हुआ बदलाव:-
जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर मकेर प्रखंड में हैजलपुर एक ऐसा गांव था जहां पर अधिकतर महिलाओं का प्रसव घर पर हीं होता था। उस गांव में कभी -कभी ही किसी महिला का प्रसव सरकारी अस्पताल में होता था। जिसमें सबसे बड़ा योगदान स्थानीय दाई का होता था. जो घर पर हीं प्रसव करा देती थी. लेकिन अब इस गांव की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से करीब 10 किलोमीटर दूर इस गाँव से प्रसव के एक भी केस अस्पताल नहीं जा रहे थे. तब स्वास्थ्य विभाग व केयर इंडिया टीम ने सर्वे कर इस गांव को चिन्हित कर कारण का पता लगाया. जिसमें 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला सेम्पुलिया देवी का नाम सामने आया जो घर पर हीं प्रसव करा देती थी। जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग व केयर इंडिया के पदाधिकारियों ने उस महिला को संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित किया। तब से वह महिला बिना किसी लालच के व नि:शुल्क काम कर रही है । अब किसी भी महिला को प्रसव के लिए वे खुद साथ लेकर सरकारी अस्पताल जाती है।
हजारों बच्चों का करा चुकी हैं संस्थागत प्रसव :-
हैजलपुर गांव निवासी सेम्पुलिया देवी का कहना है कि वह करीब 30 वर्षों से प्रसव कराने का काम करती रही है. हजारों महिला का प्रसव घर हीं करा चुकी है । जागरूकता की कमी व जानकारी नहीं होने के कारण घर पर प्रसव कराती थी, कभी कभी तो प्रसव के दौरान समस्या ज्यादा हो जाती थी तो जच्चा-बच्चा की मौत तक हो जाती थी। 2 वर्ष पहले स्वास्थ्य विभाग व केयर इंडिया के पदाधिकारी ने उसे संस्थागत प्रसव के बारे में जानकारी दी. तब से वह बिना किसी शुल्क के महिलाओं को प्रसव कराने के लिए सरकारी अस्पताल में लेकर जाती है. वह बताती हैं अब तक सैकड़ों महिलाओं का प्रसव सरकारी अस्पताल में करा चुकी है। अब वह अपने गांव ही नहीं बल्कि आस-पास के चार पांच गांवों के महिलाओं को प्रेरित करती हैं तथा उसे सरकारी अस्पताल ले जाती है। सरकारी अस्पताल में बेहतर सुविधा के साथ-साथ सुरक्षित प्रसव भी होता है। वहां किसी तरह के खतरा होने पर डॉक्टर व एएनएम मौजूद होती हैं जो खुद उस केस हैंडल करती हैं।
सामूहिक जागरूकता से बदली तस्वीर:-
केयर इंडिया के ब्लॉक मैनेजर गजाधर तिवारी ने बताया इस पहले इस गांव से एक भी संस्थागत प्रसव नहीं होता था। जिसके बाद यहां पर जागरूकता अभियान चला गया तथा सामुदायिक मीटिंग की गयी। जिसमें उस स्थानीय दाई को संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित किया गया। तब से प्रत्येक माह 04 से 05 केस वह खुद सरकारी अस्पताल में लेकर आती हैं। गांव में उसकी पहचान संस्थागत प्रसव प्रेरक के रूप में बन चुकी है। सामुहिक जागरूकता में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. गोपाल कृष्ण, एएनएम, कुमारी मंजू, संजू कुमारी, आशा ज्ञानती देवी, सेविका बबिता कुमारी का सहयोग सराहनीय रहा है।
प्रति माह 20 से 25 गृह प्रसव होता था:-
इस गांव में वर्ष 2017 के पहले प्रति में 20 से 25 महिलाओं का प्रसव घर पर ही होता था। लेकिन अब प्रति यह तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। अब सभी महिलाओं का प्रसव सरकारी अस्पताल में ही होता है। 2019 में इस मकेर प्रखंड में 1515 संस्थागत प्रसव हुआ है। वहीं हैजलपुर गांव में करीब 60 से अधिक महिलाओं का प्रसव सरकारी अस्पताल में हुआ है। राजीव रंजन कुमार की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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