रोहित कुमार सोनू
स्वामी विवेकानंद को बिहार से था विशेष लगाव पता है वो लाटू महाराज के लिए एक बार स्वामी विवेकानन्द ने कहा था , " लाटू श्रीरामकृष्ण का सबसे बड़ा चमत्कार है । " पूर्ण रूप से अशिक्षित होने के बावजूद लाटू महाराज ने ठाकुर के गुण स्पर्श द्वारा उच्चतम बुद्धिमत्ता प्राप्त की थी । लाटू श्रीरामकृष्ण के एकमात्र ऐसे शिष्य थे जो पढ़ना लिखना नहीं जानते थे । उनके जन्म बिहार के एक गाँव में बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था । बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था । गरीबी से बाध्य होकर उनके चाचा उन्हें कोलकाता ले गए , जहाँ पर लाटू को रामचन्द्र दत्त , श्रीरामकृष्ण के निकटतम भक्त , के घर पर लाटू को गृहकार्य के लिए रखा गया । ठाकुर ने बालक की निष्क्रिय आध्यात्मिक क्षमता को पहचान लिया था और लाटू को दक्षिणेश्वर में सेवक रूप से नियुक्त करने को राम को कहा । ठाकुर के दिशा निर्देश में लाटू ने गहन साधना की , पूरी रातें ध्यान में बिताना , एक ऐसी आदत थी जिसका पालन लाटू ने पूरी उम्र किया ।
ठाकुर के जाने के पश्चात् , लाटू बारानगर मठ में शामिल हो गए , जहाँ उनका संन्यास हुआ और उन्हें अद्भुतनान्द नाम दिया गया । उनका सारा समय गंगा किनारे या बलराम बाबू के घर में एक कमरे में , सदैव चिन्तन करते हुए बीतता था ।
स्वामी विवेकानन्द ने 1897 में रामकृष्ण मिशन और 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की । लाटू महाराज ने सदैव गहन चिन्तन में तल्लीन रहने के कारण न कभी मिशन के सेवा कार्य में भाग लिया न ही कभी मठ के अनुशासन पालन किया और न ही सामान्य कार्यक्रम में भाग लिया । इसीलिए स्वामी विवेकानन्द ने उन्हें उनका जीवन उनके तरीके से जीने की अनुमति प्रदान की । कुछ वर्षों पश्चात् अद्भुतानन्द जी वाराणसी चले गए जहाँ वे अकेले रहते थे , वहाँ उनकी ज़रूरतों का ख्याल रामकृष्ण सेवाश्रम द्वारा रखा गया । अन्त में कुछ समय बिमार रहने के उपरान्त 24 अप्रेल 1920 को ध्यानावस्था में देह त्याग दी ।
स्वामी विवेकानंद को बिहार से था विशेष लगाव पता है वो लाटू महाराज के लिए एक बार स्वामी विवेकानन्द ने कहा था , " लाटू श्रीरामकृष्ण का सबसे बड़ा चमत्कार है । " पूर्ण रूप से अशिक्षित होने के बावजूद लाटू महाराज ने ठाकुर के गुण स्पर्श द्वारा उच्चतम बुद्धिमत्ता प्राप्त की थी । लाटू श्रीरामकृष्ण के एकमात्र ऐसे शिष्य थे जो पढ़ना लिखना नहीं जानते थे । उनके जन्म बिहार के एक गाँव में बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था । बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था । गरीबी से बाध्य होकर उनके चाचा उन्हें कोलकाता ले गए , जहाँ पर लाटू को रामचन्द्र दत्त , श्रीरामकृष्ण के निकटतम भक्त , के घर पर लाटू को गृहकार्य के लिए रखा गया । ठाकुर ने बालक की निष्क्रिय आध्यात्मिक क्षमता को पहचान लिया था और लाटू को दक्षिणेश्वर में सेवक रूप से नियुक्त करने को राम को कहा । ठाकुर के दिशा निर्देश में लाटू ने गहन साधना की , पूरी रातें ध्यान में बिताना , एक ऐसी आदत थी जिसका पालन लाटू ने पूरी उम्र किया ।
ठाकुर के जाने के पश्चात् , लाटू बारानगर मठ में शामिल हो गए , जहाँ उनका संन्यास हुआ और उन्हें अद्भुतनान्द नाम दिया गया । उनका सारा समय गंगा किनारे या बलराम बाबू के घर में एक कमरे में , सदैव चिन्तन करते हुए बीतता था ।
स्वामी विवेकानन्द ने 1897 में रामकृष्ण मिशन और 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की । लाटू महाराज ने सदैव गहन चिन्तन में तल्लीन रहने के कारण न कभी मिशन के सेवा कार्य में भाग लिया न ही कभी मठ के अनुशासन पालन किया और न ही सामान्य कार्यक्रम में भाग लिया । इसीलिए स्वामी विवेकानन्द ने उन्हें उनका जीवन उनके तरीके से जीने की अनुमति प्रदान की । कुछ वर्षों पश्चात् अद्भुतानन्द जी वाराणसी चले गए जहाँ वे अकेले रहते थे , वहाँ उनकी ज़रूरतों का ख्याल रामकृष्ण सेवाश्रम द्वारा रखा गया । अन्त में कुछ समय बिमार रहने के उपरान्त 24 अप्रेल 1920 को ध्यानावस्था में देह त्याग दी ।