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यें है मेरा बिहार जहां बेरोजगार सड़कों पर ठोकरें खाते फिरते है ,


कभी देश की राजधानी होने का गौरव रखने वाले पाटलिपुत्र के बिहार में उसके नौनिहाल रोजी रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं ।

अनुप कुमार सिंह

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । ये है मेरा बिहार। नालंदा, वैशाली, मगध, विक्रमशिला, अंगिका, बज्जिका, कोसी और मिथिलांचल की पूरी संस्कृति का बिहार ।
जेपी, कर्पूरी, भिखारी ठाकुर, आर्यभट्ट का बिहार । चंद्रगुप्त,चाणक्य, गुरु गोविंद सिंह, शेरशाह सूरी, महाराणा प्रताप का बिहार। दुनिया को पहला गणतंत्र देने वाले बिहार को आखिर क्या हो गया है।
कभी देश की राजधानी होने का गौरव रखने वाले पाटलिपुत्र के बिहार में उसके नौनिहाल रोजी रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सिपाही की भर्ती के लिए लाखों लाख लोग सड़कों पर और रेलवे स्टेशनों पर खड़े हैं। यह भविष्य के बदलते दौर की तस्वीर है।
हम भले ही बिहार को समृद्ध करने के दावे प्रतिदावे पेश करते हों लेकिन हकीकत यही है कि पिछले कई दशकों में बिहार में एक सुई का कारखाना भी नही लग पाया।
पाटलिपुत्र में वस्त्र की नही,ईमान की कमी है। मिथिलांचल और अंगिका के खादी और सिल्क को ही अगर हम उद्योग का दर्जा दे पाते तो भटकने की ज़रूरत थी क्या।
पान, मछली और मखान की ब्रांडिंग ही कर लेते तो क्या बिहारियों को भूखे मरने की ज़रूरत थी ?
मक्का, दूध, दही और मिठाई का प्रचार कर लेते तो रोजगार के लिए कहीं जाने की दरकार थी क्या ?
बाढ़ के लिए नेपाल को कोसते रहिये। कभी स्थायी निदान के लिए नेपाल से बात हुई क्या। भ्रम मत रखिये,नेपाल कोई पानी नही छोड़ता। नेपाल की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि नेपाल में ज्यादा बारिश हुई तो बिहार जलमग्न लेकिन हमारे राजनेता और नौकरशाह दोनों नेपाल को जिम्मेदार ठहरा कर अपना पल्ला झाड़ लेते ।
आपके पास पानी को संजोने की अगर कोई मैकेनिज्म होती तो आप उन्नत किस्म की खेती कर सकते थे और बिजली इतनी बनाते कि दूसरे राज्यों के घर आंगन भी रोशन हो पाते ।
खेती के मामले में बिहार इजराइल हो सकता है ,बशर्ते कि आपके पास करने के लिए मन हो। काम करने की बेचैनी हो।
चंपारण और भागलपुर का कतरनी चूड़ा और चावल, मुजफ्फरपुर की लीची, हाजीपुर का केला, पटना दीघा का आम, बेगूसराय का मक्का, दूध और मछली, सिलाव का खाजा, मनेर का लड्डू, समेत अन्य इलाके के प्रमुख व्यंजन हमे अंतरराष्ट्रीय व्यापार की संभावनाओं को प्रबल बनाते हैं।
एक निर्जन स्थल हरियाणा का मुरथल अगर पराठा के लिए मशहूर हो सकता तो बिहार के पास अपनी संस्कृति है। एक अतीत है,जिसे सुनहरे भविष्य के साथ चमकदार बना सकते हैं। पूरे मनोयोग के साथ अपने पर्यटन स्थलों की रक्षा और प्रसिद्धि के लिए ही हम काम करें तो कोई बिहार का नौजवान भूखा नहीं मरेगा लेकिन हम स्वरोजगार की दिशा में सोचते ही नहीं।
 बाबूजी भी चाहते हैं कि बैंक और रेलवे में खलासी और गैंगमैन की नौकरी कर ले लेकिन अपना व्यवसाय ना करें । खेती ना करें । सियासत और तिजारत न करें क्योंकि यहां तो और अनिश्चितता का माहौल है। भला सरकारी नौकरी की चाहत में हम अपने बिहार को कब तक बर्बाद होते देखते रहेंगे । बिहार की अस्मत से खेलने वालों के लिए ये भीड़ एक चेतावनी है। युवाओं जागो,युवा दिवस तुम्हे ललकार रहा है। समस्त्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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