राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) ! सामान्य तौर पर देखा जाय तो महिलाओं मे ऋतुस्राव मे रक्त की क्षति होती है!
रजस्वला होने की स्थिति तक पहुंचने के लिए कन्या को शारीरिक विकास क्रिया का प्रतिनिधित्व करने वाली तीन दैविक शक्तियों से उसका शरीर अधिकृत रहता है इस सन्दर्भ मे ऋग्वेद मं010 सू 085 देख सकते है!
ईन तीनों शक्तियों ने कन्या शरीर को विकशित कर रज: प्रवृति तक पहुंचाया विकास मार्ग मे गान्धवीर्य शक्ति तथा रजोवती होने मे अग्नि तत्व क्रियाशील होता है! रज: प्रवृति के मूलतवो मे मंगल पित्त रूप, अग्नि और चंद्र रक्त रूप जल है! मंगल और चंद्र का योग रजो दर्शन का कारण है! पित्त के द्वारा रक्त के क्षुभिद होने पर नारियों मे रज: प्रवृति होती है!
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मासिक धर्म सिर्फ और सिर्फ शारीरिक क्रिया है!
वेसे यह भी कहना उचित होगा कि जब उस अवस्था मे कन्या होती है तो अक्सर सुनने को मिलता है कि अचानक पहली मासिक चक्र को देख घबरा जाती है, एसे मे पहली मासिक चक्र को देख घबराहट से सदैव बचने का प्रयत्न करें, आम तौर पर रक्त देख घबराने लगते है क्यों कि वास्तविकता यह माना जाता है कि रक्त तभी बहता है जब शारीरिक क्षति होती है चाहे वह जिस प्रकार हो! आज भी हम यह कह सकते है कि अक्सर मासिक धर्म की सही जानकारी न रहने से, जिस कारण प्रथम मासिक चक्र मे अधिकतर घबराने लगते है नतीजा गलत फहमी हो सकती है जिस कारण मानसिक असर पड़ सकता है! इस बात को लेकर समय के अनुसार माता पिता को ही सन्तान के प्रति इस विषय पर अहम भूमिका निभाना चाहिए! जो सबसे बेहतर हो सकता है! समस्त्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।