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चीनी हो सकती है मंहगी! जानें

रोहित कुमार सोनू
सरकार चीनी के भाव बढ़ा रही है। जी हां, यह सुनने में यह विचित्र लगता है लेकिन सच है। इस समय चीनी के भाव में जो तेजी आ रही है हर व्यक्ति कह रहा है जो चीनी के गणित को जानता है।
चीनी के भाव में तेजी के बीज तो गत वर्ष ही बो दिए गए थे जब देश में गन्ने का उत्पादन कम होने के कारण चीनी के उत्पादन में कमी की आशंका पैदा हो गई थी। बहरहाल, सरकार ने उस समय कहा कि उत्पादन 220 लाख टन
होगा। बाद में इसे घटा कर 200 लाख, फिर 180 लाख टन और अंत में 160 लाख टन पर आकर रुक गई। लेकिन आज वास्तविक उत्पादन 150 लाख टन से नीचे पर सिमट गया है।
सरकार चाहती तो अब भी तेजी को रोक सकती थी जिस प्रकार मई में मिलों पर साप्ताहिक बिक्री सम्बंधी आदेश लगाकर किया था। न मालूम किस कारण से सरकार ने इस नियम को बाद में निरस्त कर दिया। यह सब जानते हैं कि इस वर्ष भी देश में गन्ने की बिजाई गत वर्ष की तुलना में कम हुई और इसका उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। पहले यह अनुमान था कि एक अक्टूबर से आरंभ होने वाले सीजन 2009-10 के दौरान चीनी का उत्पादन 200 लाख टन तक पहुंच जाएगा लेकिन अब अनुमान है कि यह 170 लाख टन से ऊपर नहीं पहुंच पाएगा।
हालांकि यह बात चीनी उद्योग जानता है लेकिन जब सरकार यह कहे कि उत्पादन कम होगा और भारत को फिर चीनी का आयात करना पड़ेगा तो इसका संदेश विश्व बाजार में अलग ही जाता है। जिस दिन भारत सरकार की ओर से कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार ने यह बयान दिया कि विश्व बाजार में चीनी के भाव बढ़ गए, इसका अर्थ है कि चीनी का आयात और महंगा होगा।सरकार की ओर से बयानबाजी की बात यहीं पर समाप्त नहीं होती है। गत सप्ताह चीनी पर आयोजित एक सम्मेलन में शरद पवार ने फिर एक सुर्रा छोड़ दिया कि विश्व बाजार में चीनी के भाव बढ़ रहे हैं, इससे अक्टूबर में जो चीनी आयात होगी वह 40रुपए प्रति किलो के आसपास पड़ेगी। अर्थात वह संकेत दे रहे हैं कि मिलों को आयातित चीनी के भाव 40 रुपए प्रति किलो पड़ेंगे और उपभोक्ता अधिक भाव चुकाने के लिए तैयार रहें। साथ ही मिलों को शह भी दे दी कि वे 40 रुपए तक चीनी बेच सकती हैं। उनके इस बयान के बाद ही दिल्ली सहित देश के लगभग सभी भागों में थोक बाजार में चीनी के भाव 3350 रुपए रुपए प्रति क्विंटल के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि खुदरा बाजार में चीनी के भाव 36 रुपए प्रति
किलो के पार चले गए हैं। ब्रांडेड चीनी तो अब भी 40 रुपए प्रति किलो के आसपास चल रहे हैं।ऐसा नहीं लगता कि उपभोक्ता के लिए चीनी में अब मिठास रह पाएगा। गत वर्ष की तुलना में भाव लगभग डबल हो चुके हैं और आगामी सीजन में भी भाव में किसी भारी कमी का अनुमान नहीं है। देश में उत्पादन तो कम होगा ही विश्व बाजार में भी उत्पादन कम होने से आयात महंगा होगा और इसका असर देश में उपभोक्ता मूल्यों पर पड़ेगा। दूसरी ओर, चीनी मिलों के मजे हैं। मुनाफा अधिक होने के संभावनाओं के कारण लगभग सभी मिलों के शेयरों में निवेशों की खरीद हैं और भाव बढ़ रहे हैं।
हालांकि सरकार ने चीनी के भाव पर अंकुश लगाने के लिए कुछ कदम उठाएं हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं। थोक उपभोक्ताओं पर स्टाक सम्बंधी पाबंदी का कोई असर होने वाला नहीं है। थोक व खुदरा व्यापारियों पर स्टाक व बिक्री की समय की सीमा पहले से ही लागू है। हां, यदि सरकार मिलों पर अंकुश लगाए और उन्हें एक तय भाव पर चीनी बेचने के लिए कहे तो बाजार
में भाव पर कुछ काबू पाया जा सकता है। लेकिन सरकार ऐसा नहीं करेगी क्योंकि वास्तव में सरकार को चीनी के भाव
में तेजी रोकने में कोई दिलचस्पी है ही नहीं, ऐसा उसके द्वारा उत्पादन व भाव सम्बंधी बयानों से स्पष्ट है।

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