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बिहार के पटना की अनोखी कहानी जान कर होंगे हैरान


पटना जी हां, देव भाषा में कहें तो पटनम् यानी पूर्व का पाटलिपुत्र और भारत में बिहार राज्य की राजधानी. पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र ... .....लोककथाओं में यह भी कहा जाता है कि एक राजा थे, जिनका नाम पत्रक था और रानी का नाम था पाटलि, दोनों को मिलाकर पाटलिपुत्र बना.

  अनूप नारायण सिंह 


 पटना,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । पटना नगर निगम अधिनियम 1951 के अनुसार पटना नगर निगम 15 अगस्त 1952 को स्थापित किया गया था. पटना नगर निगम 88 साल पुरानी पटना शहर नगरपालिका और 35 साल पुरानी पटना प्रशासन समिति के विलय और अधिक जिम्मेदारियों व शक्ति के साथ अस्तित्व में आया.
पीएमसी में एक माननीय महापौर, एक माननीय उप महापौर और वार्डों के 70 अन्य माननीय पार्षद शामिल होते हैं. पीएमसी वार्डों के 9 पार्षदों के साथ महापौर व उप महापौर को मिलाकर बनाई गई एक स्थायी उच्चाधिकार समिति के मार्फत कार्य करती है. पटना. जी हां, देव भाषा में कहें तो पटनम् यानी पूर्व का पाटलिपुत्र और भारत में बिहार राज्य की राजधानी. पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था. अति आधुनिक दौर में अब यह पटना कहलाता है. ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर बात करें तो ईसापूर्व मेगास्थनीज ने अपने भारत भ्रमण के दौरान लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है. पलिबोथ्रा पाटलिपुत्र जो गंगा और सोनभद्र के संगम पर बसा था. उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना 9 मील लंबा और 1.75 मील चौड़ा था. पटना अब बिहार की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है, जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है.
पटना को लोक कथाओं में पाटली का फूल कहा जाता था यानी गुलाम का फूल. इस फूल से तरह-तरह की सामग्री तैयार की जाती थी, जिसमें मुख्यरूप से इत्र और अगरबती शामिल होती थी. फूल का व्यापार जब बढ़ा तो उसके पत्रकों का पत्र भी पटना में जुड़ा. लोककथाओं में यह भी कहा जाता है कि एक राजा थे, जिनका नाम पत्रक था और रानी का नाम था पाटलि, दोनों को मिलाकर पाटलिपुत्र बना. पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना का लिखित इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है जब हर्यक वंश के महान शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह या राजगीर से बदलकर यहाँ स्थापित की. यह स्थान वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष में उपयुक्त होने के कारण राजगृह की अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण था क्योंकि यह युद्ध अनेक माह तक चलने वाला एक भयावह युद्ध था. उसने गंगा के किनारे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण यह स्थान चुना और अपना दुर्ग स्थापित कर लिया.
उस समय से इस नगर का इतिहास लगातार बदलता रहा है. 2500 वर्षों से अधिक पुराना शहर होने का गौरव दुनिया के बहुत कम नगरों को हासिल है. बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्धअपने अन्तिम दिनों में यहाँ से होकर गुजरे थे. उनकी यह भविष्यवाणी थी कि नगर का भविष्य उज्जवल होगा, बाढ़ या आग के कारण नगर को खतरा बना रहेगा. आगे चल कर के महान नन्द शासकों के काल में इसका और भी विकास हुआ एवं उनके बाद आने वाले शासकों यथा मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता का केन्द्र बन गया. चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफगानिस्तान तक फैल गया था. मौर्य काल के आरंभ में पाटलिपुत्र के अधिकांश राजमहललकड़ियों से बने थे, पर सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना में तब्दील किया. 
चीन के फाहियान ने जो कि सन 399-414 तक भारत की यात्रा था उसने अपने वृतांत में पटना के शैल संरचनाओं का जीवंत वर्णन किया है. यूनानी साहित्यकार इतिहासकार और चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी शासक सिल्यूकस के एक राजदूत के नाते आया था, ने पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया है उसने अपनी पुस्तक में इस शहर के विषय में एवं यहां के लोगों के बारे में भी विशद विवरण दिया है जो आज भी भारतीय इतिहास के छात्रों के लिए सन्दर्भ के रूप में काम आता है. शीघ्र ही पाटलीपुत्र ज्ञान का भी एक केन्द्र बन गया. बाद में, ज्ञान की खोज में कई चीनी यात्री यहाँ आए और उन्होने भी यहां के बारे में अपने यात्रा-वृतांतों में बहुत कुछ लिखा है। अनूप नारायण सिंह की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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